
मेगा प्रोजेक्ट की धूल धुलैया, स्वीपिंग मशीन को बना दिया खास अफसरों के आने पर ही होती है क्षेत्र में सड़कों की साफ-सफाई
कोयला खनन से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम को लेकर कोल इंडिया और इसकी सहयोगी कंपनी एसईसीएल बड़ी- बड़ी बातें करती है। इसे नियंत्रित करने का दावा करती है। मगर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े कंपनी के दावों की पोल खोल रहे हैं। दीपका क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है। आम तौर पर दिन में साफ दिखाई देने वाला आसमान दीपका क्षेत्र में धुंधला नजर आता है। कोयले की धूल ने लोगों को परेशान कर रही है। उन्हें बीमार बना रही है। इस गंभीर समस्या को लेकर कई बार श्रमिक संगठन और पर्यावरण के जानकारों ने एसईसीएल प्रबंधन का ध्यान आकृष्ट कराया है। समय- समय पर वायु प्रदूषण की रोकथाम को लेकर प्रबंधन की ओर से कदम उठाए गए हैं। इसमें ट्रक माउंटेन स्वीपिंग मशीन से सड़कों की सफाई, वॉटर फॉग से कोल डस्ट को नियंत्रित करने और स्प्रिंकलर से पानी के छिड़काव पर जोर दिया है।
इसके लिए एसईसीएल ने गेवरा, दीपका और कुसमुंडा को तीन स्वीपिंग मशीन प्रदान किया था। दीपका प्रबंधन को दी गई स्वीपिंग मशीन बिना काम किए ही कबाड़ में तबदील हो गई है।
कुसमुंडा की मशीन ने काम करना बंद कर दिया है। गेवरा की मशीन अफसरों की सेवा में लगी है। गेवरा की डस्ट स्वीपिंग मशीन तभी बाहर निकलती है, जब कोयला मंत्रालय या कोल इंडिया से कोई अधिकारी खदान का दौरा करने पहुंचते हैं। प्रबंधन इस मशीन को उसी रास्ते में चलाता है, जहां से अफसर और उनके अधीनस्थ गुजरने वाले होते हैं। इसके बाद यह मशीन लोगों की नजर से ओझल हो जाती है। कभी सड़क पर दिखाई नहीं देती है।
Published on:
28 Nov 2023 11:59 am
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