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Kota’s Big Issue : चम्बल के दर मीठे पानी से वंचित कोटा शहर के डेढ़ लाख लोग

खास खबर : - कोटा शहर में मल्टी सोसायटी व निजी आवासीय योजनाओं में कनेक्शन नहीं दे रहा जलदाय विभाग - 300 से अधिक मल्टी सोसायटी, 1000 हॉस्टल नलकूप का पानी पीने को मजबूर

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Kota's Big Issue : चम्बल के दर मीठे पानी से वंचित कोटा शहर के डेढ़ लाख लोग

Kota's Big Issue : चम्बल के दर मीठे पानी से वंचित कोटा शहर के डेढ़ लाख लोग

के. आर. मुण्डियार

कोटा.

सदानीरा चम्बल नदी के वरदान वाले कोटा शहर में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग चम्बल का मीठा पानी पीने से वंचित हैं। कोचिंग हब बनने के साथ ही बीते दो दशक में कोटा शहर में बहुमंजिला इमारतों में आवासीय योजनाओं (मल्टी स्टोरी) के विकास की नदी बह गई, लेकिन इन मल्टीस्टोरी सोसायटी में रहने वाले हजारों बाशिंदों को दो दशक से चम्बल के मीठे पानी का इंतजार है।


कोटा शहर में सरकार से अनुमोदित 300 से अधिक मल्टी सोसायटी में जलदाय विभाग जलापूर्ति के कनेक्शन नहीं दे रहा है। मल्टीनिर्माताओं व आवासीय योजना की समितियों ने मीठे पानी की मांग को लेकर स्थानीय प्रशासन, नेताओं से लेकर सरकार तक आवाज उठाई, लेकिन पानी की मुलभूत सुविधा इन लोगों तक नहीं पहुंची है।

बोरिंग का पानी सेहत पर भारी-

चम्बल के पानी से वंचित योजनाओं व क्षेत्र के लोगों को बोरिंग व टैकरों के आपूर्ति किए जा रहे फ्लोराइडयुक्त पानी पीना पड़ रहा है। हालांकि कई मल्टी निर्माता अपनी मल्टी सोसायटी में बोरिंग के पानी को फिल्टर करने का दावा कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में अधिकतर में आरओ फिल्टर की व्यवस्था नहीं है। फ्लोराइड युक्त पानी सेहत पर भारी पड़ रहा है।

फिर कोटा में बसने का क्या सुख-

मेडिकल व इंजीनियरिंग पढ़ाई के लिए कोचिंग हब बने कोटा में आस-पास के कस्बों सहित देशभर के हजारों लोगों ने लाखों-करोड़ों खर्च कर यहां आशियाने बसा लिए, लेकिन आवासीय योजनाओं में चम्बल का पानी नहीं मिलने से वे ठगा महसूस कर रहे हैं। मल्टी योजना में रह रहे लोगों का सीधा सा सवाल है कि सरकार ने बिल्डर्स से योजना अनुमोदित करने से पहले विकास, कन्वर्जन, लीज इत्यादि पेटे मोटा शुल्क वसूल किया है तो फिर पेयजल आपूर्ति में सरकार व सिस्टम उनके साथ सौतेला व्यवहार क्यों कर रहा है।


केवल वोट मांगने आते हैं...

मल्टी व निजी आवासीय योजनाओं के लोगों का कहना है कि हर चुनाव में नेता उन्हें चम्बल के पानी की जलापूर्ति करवाने का आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव बाद पलटकर कोई सोसायटी की तरफ देखता तक नहीं।


कोचिंग के हजारों बच्चे भी प्रभावित-

कोचिंग सिटी कोटा में लगभग 3000 से अधिक बहुमंजिला हॉस्टल संचालित हैं। इनमें देशभर के लगभग 50 हजार विद्यार्थी रहते हैं। लगभग 1000 हॉस्टल में बोरिंग या टैंकरों के जरिए ही जलापूर्ति हो रही है। ऐसे में बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा बना हुआ है।


फैक्ट फाइल-

मल्टी सोसायटी बिल्डिंग-
150000 से ज्यादा लोग चम्बल के पानी से वंचित कोटा शहर में

300 करीब कुल मल्टी स्टोरी बिल्डिंग/ बहुमंजिला आवासीय योजना है कोटा शहर में
150 मल्टी स्टोरी बिल्डिंग है नए कोटा में

100 मल्टी स्टोरी बिल्डिंग है स्टेशन क्षेत्र में
30 करीब मल्टी स्टोरी बूंदी रोड नदीपार क्षेत्र में

20 मल्टी स्टोरी है बारां रोड पर


हॉस्टल -

3000 से अधिक बहुमंजिला हॉस्टल है कोटा शहर में
50 हजार छात्र रहते हैं हॉस्टल में।

1000 से अधिक हॉस्टल में बोरिंग व टैंकरों से जलापूर्ति
20 हजार छात्रों को चम्बल का पानी नहीं मिल रहा

( आंकड़ा स्रोत : मल्टी सोसायटी एवं हॉस्टल एसोसिएशन के अनुसार)


फाइल को स्वीकार ही नहीं करते-

सरकार के नियम-कायदों की पालना कर मल्टी योजनाएं बसाई, लेकिन जलदाय विभाग लाखों लोगों को मीठे पानी को पीने से वंचित कर रहा है। जलदाय विभाग कनेक्शन की फाइल ही स्वीकार नहीं कर रहा। सरकार तक से मांग की जा चुकी है, लेकिन कोई नहीं सुन रहा। जनप्रतिनिधियों को मल्टी में रहने वाली जनता की सुनवाई करनी चाहिए।
-प्रकाश गवालेरा व प्रदीप दाधीच (बिल्डर्स), प्रदीप चतुर्वेदी (अध्यक्ष, शिवम एनक्लेव सोसायटी, कोटा)

नगर विकास न्यास से अनुमोदित योजना में बहुमंजिला इमारतों में विभागीय प्रक्रिया के अनुसार पानी के कनेक्शन दिए जा सकते हैं। यह तभी संभव हो सकता है जब पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता हो। कनेक्शन के लिए सोसायटी के पंजीकरण, कार्यकारिणी का विवरण और अन्य दस्तावेजों की आवश्यकता होती है।

- श्याम माहेश्वरी, अधिशाषी अभियंता, जलदाय विभाग, कोटा
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इसलिए नहीं मिल रहे कनेक्शन-
-जलदाय विभाग आवेदन ही स्वीकार नहीं करता, बहुत सी शर्तें बताकर टरका देता है।

-मल्टी स्टोरी को ध्यान में रखकर जलप्रदाय योजना तैयार नहीं करता।
-निजी कॉलोनी की आबादी मानकर अनदेखी होती है।

-बिल्डर फ्लैट बेचकर फ्री हो जाता है, पानी के लिए आवेदन प्रक्रिया नहीं करता।
-जलदाय विभाग ने नियमों का सरलीकरण नहीं किया, ताकि नियमों का हवाला देकर आवेदक को टरकाया जा सके।