
King of Kota treated such behavior with the Dalits of Annakut
किसी को उम्मीद नहीं थी कि कोटा के राजा अछूत माने जाने वाली दलित
और शूद्र जातियों के साथ ऐसा बर्ताव भी कर सकते हैं। जिस दौर में इन जातियों के लोगों का सामने से गुजरना भी पाप माना जाता था, उस वक्त से ही कोटा के राजाओं ने अन्नकूट महोत्सव में प्रसाद वितरण का एकाधिकार इन जातियों के लोगों को सौंप दिया था। गोवर्धन पूजा होने और ठाकुर जी का भोग लगने के बाद अछूत माने जाने वाली इन जातियों का व्यक्ति सबसे पहले कोटा के महाराव को अन्नकूट का प्रसाद देता। उसके बाद अपने ही हाथों से समारोह में आने वाले अतिथियों राजा-महाराजाओं, मनसबदारों और ठिकानेदारों के साथ-साथ भगवान बृजनाथ के सभी भक्तों को प्रसाद बांटने की जिम्मेदारी दलित जाति के इसी व्यक्ति के हाथ में सौंप दी जाती। कोटा के राजाओं का जाति प्रथा पर इतना बड़ा कुठाराघात देखकर राजस्थान के राजपूत राजा ही नहीं पूरी दुनिया दंग रह जाती।
सुबह 11 बजे होती गोवर्धन पूजा
इतिहासकार प्रो. जगत नारायण बताते हैं कि दीपावली के दूसरे दिन कोटा में राजपरिवार की ओर से बड़ी धूम-धाम के साथ गोवर्धन पूजा एवं श्री बृजनाथ जी के अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया जाता था। अन्नकूट और पूजा का आयोजन बृजनाथ जी के मंदिर में सुबह 11 बजे से शुरू होता था। गोवर्धन पूजा के बाद गायों से उन्हें घुंघाया जाता था और मुखिया कुंकुम का छापा लगाकर कंडवारे नजर करता था।
बृजनाथ मंदिर में होता था भव्य आयोजन
सुबह गोवर्धन पूजा करने के बाद भगवान बृजनाथ जी के मंदिर में शाम को 4 बजे से अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया जाता था। इस दिन तीनों बड़े मंदिरों में से किसी एक के पूजारी को पूजा करने और भगवान बृजनाथ जी को अन्नकूट का भोग लगाने के लिए राजपरिवार की ओर से सादर आमंत्रित किया जाता। मंदिर के पुजारी जब शाम को आते तो सबसे पहले वह ठाकुर जी की आरती करते। ठाकुर जी के सामने अन्नकूट की तरह-तरह की सामग्री चौक में जमाई जाती। आरती के बाद अन्नकूट लूटाने का हुक्म होता था।
दलितों को दिया अधिकार
इतिहासकार प्रो. जगत नारायण श्रीवास्तव बताते हैं कि यह वो दौर था जब भारत के तमाम हिस्सों में दलितों और शूद्रों को अछूत माना जाता था। इन जातियों के व्यक्तियों का सामने से गुजरना या इनसे सीधी बात करने पर भी लोग पाप मानते थे, लेकिन कोटा के राजाओं ने जाति की इन बेडियों को तोड़ने और दलितों को उनका सम्मान दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजस्थान की रिसायतों के ही नहीं देश के दूसरे राजा भी उस वक्त दंग रह गए जब कोटा के राजाओं ने अछूत माने जाने वाली इन जातियों के लोगों के हाथ से अन्नकूट का प्रसाद लेने की परंपरा शुरू की। जिसके बारे में सुनकर दुनिया दंग रह गई।
जाटव जाति का व्यक्ति ही बांटता था अन्नकूट प्रसाद
इतिहासकार प्रो. जगत नारायण बताते हैं कि गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट के लिए पूरा राजपरिवार, रियासत के प्रमुख लोग और कोटा राज्य की प्रजा शाम को 4 बजे बृजनाथ जी मंदिर में इकट्ठा होते। पूजा और आरती के बाद पुजारी भगवान बृजनाथ को अन्नकूट का भोग लगाते। इसके बाद सबसे पहले नेगी और भेरूलाल अन्नकूट के ठौर से गूजा लेते थे फिर इस अवसर पर आने वाले जाटव अन्नकूट लुटाते थे। यह वो दौर था जब देश के कई हिस्सों में जाटव जाति के लोगों को अछूत माना जाता था, लेकिन कोटा का राजपरिवार इन्हें सम्मान के साथ राजमहल बुलाता और अन्नकूट लुटाने का हक देता था।
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महाराव भीम सिंह प्रथम ने तोड़ी थी जातियों की बेड़ियां
इतिहासकार प्रो. जगत नारायण बताते हैं कि 1707 से 1720 ईस्वी के बीच कोटा के राजा रहे महाराव भीम सिंह प्रथम ने बल्लभ संप्रदाय अंगीकार कर लिया था। इसके बाद उन्होंने कोटा के राजमहल में ही इस संप्रदाय के आराध्य माने जाने वाले भगवान बृजनाथ जी का मंदिर बनवाया। गोवर्धन और अन्नकूट ही नहीं होली और श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता। महाराव भीम सिंह प्रथम ने ही धार्मिक उदारता का परिचय देते हुए इन मौकों पर राजपरिवार की ओर से दलितों को सीधे राजमहल और राजदरबार तक आने का पूरा अधिकार दे दिया था। इसी का हिस्सा था अन्नकूट महोत्सव जिसमें दलितों को मिले अधिकार देखकर दुनिया दंग रह गई थी।
Updated on:
20 Oct 2017 11:10 am
Published on:
20 Oct 2017 11:08 am
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