हुआ यूं कि एमबीएस अस्पताल गेट पर सुबह 11 बजे रेजीडेंट प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए। यहां झालावाड़ जिले के मनोहरथाना निवासी बीरमचंद (63) तड़प रहा था, लेकिन रेजीडेंट ने उसे देखना तक मुनासिब नहीं समझा। वे मुंह मोड़कर चले गए। बीरम के परिजनों ने बताया कि वह टीवी व लकवे से पीडि़त है। पेट दर्द की शिकायत थी। वे उसे एमबीएस अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां चिकित्सकों को दिखाया, लेकिन मरीज को भर्ती करने से इनकार कर दिया।
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जिन्हें देवी मान पूज रहे, आज उन्हीं को कर रहे कत्ल परिजन उसे स्टे्रचर पर लेकर गेट के बाहर ही खड़े रहे। वह दर्द से करहाता रहा। उस समय रेजीडेंट डॉक्टर्स भी प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे, लेकिन उन्होंने उसे नहीं देखा और प्रदर्शन कर चले गए। बाद में अस्पताल अधीक्षक डॉ. नवीन सक्सेना ने सीनियर डॉक्टर को फोन किया। उसके बाद उसका इलाज शुरू हुआ।
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अपने ही बने कातिल: हाड़ौती में खून से सन रहे अवैध प्रेम-संबंध वहीं, डीसीएम से आए बाबूलाल ने बताया कि एबीएस अस्पताल में बीमार पत्नी को दिखाने के लिए आए थे, लेकिन चिकित्सक उसे इधर से उधर चक्कर कटवाते रहे। अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं थी। कमोबेश ऐसे ही हालात नए अस्पताल व जेके लोन में भी देखने को मिले। मरीज व तीमारदार इलाज व जांच के लिए परेशान होते रहे।
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जामुन के पेड़ ने छीन ली हंसते-खेलते परिवार की खुशियां सामान्य ऑपरेशन भी अटके रेजीडेंट्स के कार्य बहिष्कार का असर ऑपरेशन पर भी देखने को मिला। एमबीएस, जेके लोन व नए अस्पताल में रोजाना 30 से 40 ऑपरेशन होते हैं, लेकिन यहां सामान्य ऑपरेशन नहीं हुए।
लगी रही भीड़ तीनों अस्पतालों में सीनियर डॉक्टर्स ने कमान संभाल रखी है, लेकिन मरीजों की भीड़ के चलते उनके प्रयास नाकाफी हैं। इलाज के लिए आए मरीज घंटों तक लाइनों में इंतजार करते रहे।
अजमेर में रेजीडेंट के खिलाफ दर्ज छेड़छाड़ का मामला वापस लिया जाए और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती, कार्य बहिष्कार जारी रहेगा।
सीताराम, महासचिव रेजीडेंट एसोसिएशन कोटा
पुलिस के खिलाफ लगाए नारे अजमेर में रेजीडेंट डॉक्टर्स के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोप के विरोध में कोटा में भी रेजीडेंट एसोसिएशन के आह्वान पर कार्य बहिष्कार कर रखा है। आरडीए से जुड़े रेजीडेंट्स डॉक्टर ने एमबीएस, नए अस्पताल व जेके लोन के बाहर गेट पर प्रदर्शन करते हुए पुलिस व प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। इधर, रेजिडेंट्स के कार्य बहिष्कार से मेडिकल कॉलेज से जुड़े तीनों बड़े अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्थाएं चरमरा गई। अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की कतारें देखने को मिली।