1. वायरस का स्ट्रेन नया है। जिसमें तेजी से रेप्लीकेशन होता है। इससे वायरस में जीन में उत्परिवर्तन की संभावना बढ़ जाती है। संभवत: इसी कारण वायरस के बाहरी आवरण में बदलाव आने से उसकी तापमान पर जीवित रहने की क्षमता विकसित हो गई है।
2. यदि तापमान अधिक है, लेकिन वातावरण में आद्र्रता में कमी है। शुष्क वातावरण में ड्रॉपलेट मरीज के खांसने व छींकने से फैलती है। उनमें लक्षण घट जाते हैं और वायरस अधिक समय तक जीवित बच जाता है। यह ड्रॉपलेट किसी वस्तु जैसे दरवाजा, रेलिंग आदि पर लम्बा समय रह सकती है और संक्रमण फैला सकती है।
3. उत्तरी व दक्षिण गोलाद्र्ध में सर्दी की ऋतु अलग-अलग समय पर होती है। अभी अप्रेल से जून में दक्षिण गोलाद्र्ध के देशों आस्ट्रेलिया में सर्दी का मौसम है और इंफ्लूएंजा का प्रकोप जारी है। एेसे में यदि कोई व्यक्ति इन देशों की यात्रा करता है तो वहां से संक्रमण भारत ला सकता है। इससे यहां भी रोगी मिल सकते हैं।
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4. पूर्व में हुए इंफ्लूएंजा के एेपिडेमिक के अध्ययन में पाया गया है कि प्राय: एक ठंडा व शुष्क मौसम प्रत्येक एेपिडेमिक से पूर्व होता है। इस वर्ष हमारे यहां भी सर्दी का मौसम लम्बा मार्च तक चला।