विघ्नहर्ता पर्युषण-1: आत्मशुद्धी का अभियान, अहिंसा का अनुष्ठान
प्रश्न उठता है सत्य क्या है? उत्तर है मन-वचन-कर्म की पवित्रता। तन का मैल तो किसी भी भौतिक साबुन से साफ हो जाता है। परंतु मन का मैल साफ करने के लिए केवल और केवल ‘सत्य रूपी साबुन’ चाहिए, जो भौतिक नहीं, आध्यात्मिक होता है। अभिप्राय यह है कि मन-वचन और कर्म की पवित्रता की निरंतरता का नाम सत्य है।विघ्नहर्ता पर्युषण-2: शील का व्यवहार, सत्संग सदाचार
छठवां दिन – संयम की पतवार, होगा बेड़ा पारसं यम के संदर्भ में ये काव्य पंक्तियां प्रासंगिक हैं- ‘इंद्रियों पर रहे सदा संयम/फल है संयम का सदा उत्तम/जिसने संयम से जीया जीवन/कुछ न कर पाएगा उसका यम।’
संयम की महत्ता स्वयंसिद्ध है। यह दुनिया कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) की नदी के समान है और हमारा जीवन एक नाव या बेड़े की तरह है। संयम की पतवार से, कषायों की नदी के भंवर में फंसे बिना जीवन का बेड़ा पार हो जाता है। तात्पर्य यह है कि ‘यदि हमारे पास है संयम की पतवार, निस्संदेह होगा बेड़ा पार’।
प्रश्न उठता है कि संयम क्या है? उत्तर यह कि मन, वचन और शरीर को नियंत्रण से बचाता है। वचन अर्थात वाणी पर संयम, विवाद से बचाता है। शरीर पर संयम रोग से बचाता है। अभिप्राय यह है कि मन-वचन-शरीर पर संयम से क्रमश: संतोष-सुकून-स्वास्थ्य बने रहते हैं। एक वाक्य में यह कि ‘संयम का सृजन है जहां विकारों का विसर्जन है वहां।’ संयम का भाव यानी अहिंसा का प्रभाव। दशलक्षण धर्म में संयम की एक भाव (उत्तम संयम) के रूप में इसीलिए महत्ता चिह्नित की गई है। भाव की शुद्धता संयम का मूल है।