scriptविघ्नहर्ता पर्युषण-3: पवित्रता की लय, आत्मा पर विजय | Vighnharta Paryushan Campaign by Patrika | Patrika News
कोटा

विघ्नहर्ता पर्युषण-3: पवित्रता की लय, आत्मा पर विजय

सत्य करता है तय, पवित्रता की लय। जिससे होती है आत्मा पर विजय। इस प्रकार सत्य की जीत है पर्युषण।

कोटाSep 03, 2017 / 05:36 pm

shailendra tiwari

विघ्नहर्ता पर्युषण-3: पवित्रता की लय, आत्मा पर विजय

सत्य करता है तय, पवित्रता की लय। जिससे होती है आत्मा पर विजय। इस प्रकार सत्य की जीत है पर्युषण।

पांचवां दिन 

सत्य करता है तय, पवित्रता की लय। जिससे होती है आत्मा पर विजय। इस प्रकार सत्य की जीत है पर्युषण। आत्मशुद्धि का गीत है पर्युषण। मोक्ष-मार्ग का मीत है पर्युषण। सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चरित्र से प्रीत है पर्युषण। तात्पर्य यह कि सत्य के आचरण से पवित्रता का संचरण होता है। पवित्रता के संचरण से अहिंसा का जागरण होता है।
अहिंसा के जागरण से मैत्री-भावना का स्फुरण होता है। मैत्री-भावना के स्फुरण से अपरिग्रह का वातावरण होता है। अपरिग्रह के वातावरण से कषायों (क्रोध/ मान/माया /लोभ) का कोहरा छंटता है। कषायों का कोहरा छंटने से आत्मा पर छाया अंधकार हटता है। इस प्रकार सत्य पर अडिग रहने से सत्य की जय होती है अर्थात कषायों से मुक्ति और आत्मा पर विजय होती है।
यह भी पढ़ें

 विघ्नहर्ता पर्युषण-1: आत्मशुद्धी का अभियान, अहिंसा का अनुष्ठान

प्रश्न उठता है सत्य क्या है? उत्तर है मन-वचन-कर्म की पवित्रता। तन का मैल तो किसी भी भौतिक साबुन से साफ हो जाता है। परंतु मन का मैल साफ करने के लिए केवल और केवल ‘सत्य रूपी साबुन’ चाहिए, जो भौतिक नहीं, आध्यात्मिक होता है। अभिप्राय यह है कि मन-वचन और कर्म की पवित्रता की निरंतरता का नाम सत्य है।
दशलक्षण धर्म का पांचवां लक्षण यानी अंग सत्य ही है। किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम सत्य का आचरण पर्युषण पर्व के पांचवें दिन से आरंभ करें। सत्य का आचरण या व्यवहार तो हर पल करना चाहिए, चूंकि सत्य दरअसल असत्य रूपी विघ्न का हरण करता है। ‘तत्वार्थसूत्र’ के दसवें अध्याय के तीसरे सूत्र में सत्य को कर्म बंध के क्षय करने में सहायक तथा मोक्ष का प्रेरक बताया गया है। सनातन हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य देवता गणेशजी तो अपने मस्तक में ब्रह्म (सत्य) के धारक होने के कारण असत्य रूपी विघ्न के हर्ता है।
यह भी पढ़ें

विघ्नहर्ता पर्युषण-2: शील का व्यवहार, सत्संग सदाचार

छठवां दिन – संयम की पतवार, होगा बेड़ा पार
सं यम के संदर्भ में ये काव्य पंक्तियां प्रासंगिक हैं- ‘इंद्रियों पर रहे सदा संयम/फल है संयम का सदा उत्तम/जिसने संयम से जीया जीवन/कुछ न कर पाएगा उसका यम।’ 
संयम की महत्ता स्वयंसिद्ध है। यह दुनिया कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) की नदी के समान है और हमारा जीवन एक नाव या बेड़े की तरह है। संयम की पतवार से, कषायों की नदी के भंवर में फंसे बिना जीवन का बेड़ा पार हो जाता है। तात्पर्य यह है कि ‘यदि हमारे पास है संयम की पतवार, निस्संदेह होगा बेड़ा पार’।
प्रश्न उठता है कि संयम क्या है? उत्तर यह कि मन, वचन और शरीर को नियंत्रण से बचाता है। वचन अर्थात वाणी पर संयम, विवाद से बचाता है। शरीर पर संयम रोग से बचाता है। अभिप्राय यह है कि मन-वचन-शरीर पर संयम से क्रमश: संतोष-सुकून-स्वास्थ्य बने रहते हैं। एक वाक्य में यह कि ‘संयम का सृजन है जहां विकारों का विसर्जन है वहां।’ संयम का भाव यानी अहिंसा का प्रभाव। दशलक्षण धर्म में संयम की एक भाव (उत्तम संयम) के रूप में इसीलिए महत्ता चिह्नित की गई है। भाव की शुद्धता संयम का मूल है।
यह भी पढ़ें

हमारे जिनालय-1: जंगल में बनी मंदिर विकास की योजना

आचार्य कुंदकुंद ने ‘भावपाहुड़ (89)’ में कहा है, जिसमें भावना नहीं है, ऐसा आदमी धन-धान्य आदि परिग्रह को छोड़ दे, गुफा में जाकर रहे तो भी क्या? उसका ज्ञान, उसका अध्ययन बेकार है। तात्पर्य यह कि पर्युषण संयम के भाव से असंयम रूपी विघ्न का हरण करता है। सनातन हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य देवता गणेश ने स्वयं संयम को ‘अनंत महिमा’ में इंद्रियों का विजेता कहा है। संयम की राह में आने वाले असंयम रूपी विघ्न का गणेशजी हरण करते हैं।

Home / Kota / विघ्नहर्ता पर्युषण-3: पवित्रता की लय, आत्मा पर विजय

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो