हमारे जिनालय-1: जंगल में बनी मंदिर विकास की योजना
तिथि की वृद्धि या क्षय होने पर कभी-कभार अंतर हो जाता है, वरना विघ्नहर्ता (गणेशजी) का उत्सव दस दिन का ही होता है। अद्भुत और सुखद साम्य है दिगंबर जैन समाज के पर्युषण यानी दशलक्षण पर्व और सनातन हिन्दू धर्म के प्रथम पूज्य देवता विघ्नहर्ता गणेशजी के दस दिवसी उत्सव में। तात्पर्य यह कि दोनों में भाद्रपद माह की समानता, शुल्कपक्ष की समानता, दस दिनों की समानता।Abstract of Ganesha-1,
कोटा में गणेशोत्सव की धूम…देखिए तस्वीरें अनंत चतुर्दशी को गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन होता है तो इसी दिन दिगंबर जैन समाज के पर्युषण पूर्ण होते हैं। और क्षमावाणी के रूप में क्षमा मांगकर अपने अहंकार का विसर्जन किया जाता है। अहंकार का विसर्जन यानी कषायों (क्रोध/ मान/माया/लोभ) से मुक्ति। कषायों से मुक्ति अर्थात आत्मा की शुद्धि। आत्म की शुद्धि अर्थात अहिंसा की सिद्धि। इस प्रकार पर्युषण भी गणेश जी की तरह विघ्नहर्ता ही तो है। गणेशजी विघ्नों का हरण करके शुभ-लाभ देते हैं तो पर्युषण कषाय रूपी विघ्नों का हरण करके अपरिग्रह का शुभ और अनेकांत का ‘लाभ’ देता है। मोक्ष का पथ प्रशस्त करता है।दूसरा दिन – संयम की साधना, तृष्णा को त्यागना
आ चार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित ‘समयसार’ (गाथा 206) में कहा गया है, ‘हे भव्यप्राणी! तू इस ज्ञानपद को प्राप्त करके इसमें ही लीन हो जा, इसमें ही निरंतर संतुष्ट रह और इसमें ही पूर्णत: तृप्त हो जा, इससे ही तुझे उत्तम सुख (अतीन्द्रिय आनंद) की प्राप्ति होगी।’ उल्लेखनीय है कि ‘समयसार’ की यह गाथा (दो सौ छह) ज्ञानपद को प्राप्त करके उसमें लीन होने के लिए संयम की साधना का संकेत कर रही है तथा तृष्णा को त्यागना यानी अपरिग्रह का निर्देश दे रही है। गौरतलब है कि आचार्य कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन आचार्य परम्परा अर्थात् भगवान महावीर की मूल दिगम्बर परम्परा के सर्वश्रेष्ठ आचार्य के रूप में सर्वमान्य है।