scriptरामपुर तिराहा कांड में 30 साल बाद आया फैसला, पीएसी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास | After 30 years, two PAC constable sentenced to life imprisonment in Rampur Tiraha case | Patrika News
लखनऊ

रामपुर तिराहा कांड में 30 साल बाद आया फैसला, पीएसी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास

Rampur Tiraha Incident : जलियांवाला बाग जैसी घटना-कोर्ट, पुलिस ने कई मामलों में वीरता का परिचय दिया,लेकिन ये आत्मा को झकझोर देने वाला प्रकरण है।

लखनऊMar 19, 2024 / 12:45 am

Ritesh Singh

 Rampur Tiraha Incident

Rampur Tiraha Incident

Rampur Tiraha Incident Updates: मुजफ्फरनगर के चर्चित रामपुर तिराहा कांड में सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और साजिश रचने के मामले में अदालत ने फैसला सुना दिया। पीएसी के दो सिपाहियों पर 15 मार्च को दोष सिद्ध हो चुका था। ( Jallianwala Bagh Incident ) अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की और दोनों दोषी सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके अलावा दोषियों पर 40 हजार रुपए अर्थदंड भी लगाया है।
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( Muzaffarnagar Big News ) शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परवेंद्र सिंह, सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि सीबीआई बनाम मिलाप सिंह की पत्रावली में सुनवाई पूरी हो चुकी है। अभियुक्त मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह पर दोष सिद्ध हुआ था।
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लंच के बाद सजा के प्रश्न पर सुनवाई हुई। सीबीआई की ओर से कुल 15 गवाह पेश किए गए। अभियुक्तों पर धारा 376 जी, 323, 354, 392, 509 व 120 बी में दोष सिद्ध हुआ था।सजा के प्रश्न पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इस कांड को जलियांवाला बाग जैसी घटना के तुलना की। ( Famous Rampur Tiraha Case) अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने कई मामलों में वीरता का परिचय दिया प्रदेश का मान सम्मान बढ़ाया, लेकिन यह देश और न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाला प्रकरण है।
एक अक्टूबर, 1994 की रात अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। इनमें महिला आंदोलनकारी भी शामिल थीं।रात करीब एक बजे रामपुर तिराहा पर बस रूकवा ली।दोनों दोषियों ने बस में चढ़कर महिला आंदोलनकारी के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म किया।पीड़िता से सोने की चेन और एक हजार रुपये भी लूट लिए थे। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में यह तीसरा पुलिसिया नरसंहार था। इससे पहले 30 अक्टूबर-2 नवंबर 1990 को अयोध्या में कारसेवकों का नरसंहार हुआ था, 2 जून 1991 को सोनभद्र के सीमेंट फैक्ट्री को निजी हाथों में बेचने का मजदूर विरोध कर रहे थे।इस नरसंहार में एक छात्र सहित 9 लोग मारे गये थे।
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आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए गए। उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे।पीएसी गाजियाबाद में तैनात सिपाही मिलाप सिंह मूल रूप एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होरची गांव का रहने वाला है। जबकि दूसरा आरोपी सिपाही वीरेंद्र प्रताप मूल रूप सिद्धार्थनगर के थाना पथरा बाजार के गांव गौरी का रहने वाला है।

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