
sonia gandhi
महेंद्र प्रताप सिंह.
लखनऊ. उप्र में 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत पायी है, जबकि उसके 73 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें दो को छोडकर बाकी सभी की जमानत तक रद्द हो गयी है। कांग्रेस का अजेय गढ़ मानी जाने वाली अमेठी सीट भी भाजपा जीत गयी है। रायबरेली सीट पर यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी जीतीं हैं। यहां भी उनकी जीत का मार्जिन अब तक सबसे कम है। 2004 से लगातार रायबरेली से जीत रहीं सोनिया को कभी उनके खास रहे दिनेश सिंह ने कड़ी टक्कर दी। तकरीबन एक साल पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले दिनेश को कुल 3,67,740 मत मिले। सोनिया को मिले मतों से यह 1 लाख 67 हजार कम थे। सवाल उठ रहा है कांग्रेस के गढ़ में आखिर दिनेश ने 3,67,740 मत कैसे हासिल कर लिए। कुछ तो दिनेश में होगा जिसकी वजह से साल 2014 में 3 लाख 52 हजार वोट से चुनाव जीतने वाली सोनिया को इस बार आधे से भी कम यानी केवल डेढ़ लाख मतों से जीत के मार्जिन पर पहुंचना पड़ा।
यह स्थिति तब है जब सोनिया गांधी को बाकी पार्टियों ने वॉकओवर दिया था। तो क्या माना जाए कि रायबरेली में घर का भेदी लंका ढावे की कहावत चरितार्थ हुई। सोनिया के ही सिपहसलार रहे दिनेश ने पार्टी बदलकर सोनिया को चुनौती दे दी।
पूरा परिवार रहा है कांग्रेसी-
दिनेश सिंह का पूरा परिवार कांग्रेसी रहा है। दिनेश के बड़े भाई राकेश सिंह रायबरेली से कांग्रेस के टिकट पर एमएलए हैं। जबकि एक भाई अवधेश सिंह कांग्रेस के जिला पंचायत सदस्य हैं। खुद दिनेश कांग्रेस से ही एमएलसी हैं। इनका घराना रायबरेली में पंचवटी के नाम से प्रसिद्व है। दिनेश सोनिया के बहुत खासमखास थे। चुनाव लड़ाने से लेकर क्षेत्र में सोनिया के सभी कामकाज यही संभालते थे। किशोरी लाल शर्मा भले ही सोनिया के सांसद प्रतिनिधि हैं, लेकिन पार्टी में इन्हीं की चलती थी। लेकिन पिछले साल अप्रैल में दिनेश ने पार्टी से बगावत कर दी थी। एक दिन वह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने अचानक दिल्ली पहुंचे। लौटे तो घोषणा की कि अब पंचवटी कांग्रेस की नहीं रही। उन्होंने आरोप लगाया रायबरेली में कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड फर्म बन गयी है। प्रियंका गांधी पर भी टिकट देने को लेकर धोखाधड़ी का आरोप मढ़ा।
अमित शाह की रणनीति आई काम-
कांग्रेस की पोल खोलने की धमकी के बाद भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। कांग्रेस अब तीनों भाइयों की विधायका और अध्यक्षी रद्द कराने की जंग लड़ रही है। जिस तरह इस बार सोनिया के मतों में भारी कमी आयी है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में दिनेश सोनिया के लिए विभीषण साबित होंगे। तब कांग्रेस का यह बचा खुचा किला ढहने में भी देर न होगी। अमित शाह की रणनीति पंचवटी के जरिए कांग्रेस की जड़ को ही सूखाने की थी। अमेठी में इसका टास्क स्मृति इरानी के पास था तो रायबरेली में दिनेश सिंह इसका जरिया बने हैं।
Published on:
24 May 2019 08:59 pm
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
