सू्त्रों की मानें तो भाजपा आलाकमान की ओर से पार्टी के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और प्रवक्ताओं से कहा गया है कि मंदिर बनने वाला है, इस तरह का माहौल बनाया जाये। यही कारण है कि अभी तक राम मंदिर मुद्दे पर मौन पर रहने वाले बीजेपी नेता बिना रोक-टोक खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मामले पर जनवरी 2019 तक सुनवाई टलने के बाद से बीजेपी नेता इस फैसले से खुद को दुखी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं अब तक राम मंदिर निर्माण न हो पाने के लिए कांग्रेस को कोस रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह तो तय हो गया है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम समेत चार राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद ही अयोध्या मामले में कोई फैसला आयेगा। सूत्रों का कहना है कि अगर इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हारती है तो लोकसभा चुनाव से पहले सरकार राम मंदिर पर अध्यादेश लाकर ‘ब्रम्हास्त्र’ चला सकती है। इसी नये फॉर्मूले के मद्देनजर बीजेपी एक बार फिर राम मंदिर मुद्दा लेकर आएगी। बीजेपी के लिए जरूरी है ‘ब्रम्हास्त्र’!
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है तो सत्ताधारी दल के लिए लोकसभा चुनाव की राह और मुश्किल हो जाएगी। इन चुनावों में हार के बाद ही बीजेपी के सहयोगी दल भी गठबंधन तोड़ सकते हैं, जो पहले ही बीजेपी के खिलाफ बगावत का राग छेड़े हुए हैं। खासकर यूपी में सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने कोई ऐसा मुद्दा लाने की बड़ी चुनौती होगी, जिससे ईवीएम में हिंदू वोटर कमल के फूल का ही बटन दबायें। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व एक बार फिर से राम मंदिर का पुराना दांव आजमा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है तो सत्ताधारी दल के लिए लोकसभा चुनाव की राह और मुश्किल हो जाएगी। इन चुनावों में हार के बाद ही बीजेपी के सहयोगी दल भी गठबंधन तोड़ सकते हैं, जो पहले ही बीजेपी के खिलाफ बगावत का राग छेड़े हुए हैं। खासकर यूपी में सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने कोई ऐसा मुद्दा लाने की बड़ी चुनौती होगी, जिससे ईवीएम में हिंदू वोटर कमल के फूल का ही बटन दबायें। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व एक बार फिर से राम मंदिर का पुराना दांव आजमा सकता है।
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क्या होता है अध्यादेशआपात स्थिति में सरकार कोई कानून पास करना चाहती है, लेकिन उच्च सदन में उसे अन्य दलों का समर्थन प्राप्त नहीं मिलता है तो सरकार अध्यादेश लाकर इस कानून पास करा सकती है। अध्यादेश सिर्फ 6 माह के लिए ही लाया जा सकता है। छह माह के भीतर अध्यादेश फिर से संसद के पास वापस आ जाता है और तब इसे सामान्य बिल की तरह ही सभी चरणों से गुजरना पड़ता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी करने का अधिकार राष्ट्रपति का विधायी अधिकार है। राष्ट्रपति के कहने पर सरकार द्वारा अध्यादेश तब लाया जाता है, जब दोनों सदनों में कोई भी सत्र न चल रहा हो।