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Coronavirus Update : यूपी में 432 पीडियाट्रिक आइसीयू तैयार, 52 मेडिकल कालेजों के बच्चों के डॉक्टर्स को ट्रेनिंग

UP Corona third wave - हर जिले में बनेंगे 'अभिभावक स्पेशल' बूथ- प्रत्येक जिले में बच्चों के लिए 25 बेड होंगी आरक्षित- सबसे बड़ी चुनौती कई जिलों में चाइल्ड स्पेशलिस्ट ही नहीं

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लखनऊ के रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल राजाजीपुरम में कोरोना जांच के लिए लाइन में खड़े लोग।

पत्रिका इन्डेप्थ स्टोरी

महेंद्र प्रताप सिंह

लखनऊ. UP Corona third wave कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर सबसे खतरनाक मानी जा रही है। चेतावनी दी गयी है कि सितंबर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है। इसके लिए केंद्र सरकार के निर्देश पर उप्र सरकार ने प्रदेशभर के बाल रोग चिकित्सकों को विशेष रूप से ट्रेनिंग करने की योजना बनायी है। इसके लिए पांच बिंदुओं पर फोकस किया जा रहा है। इसके अलावा प्रदेश भर में कम से कम 432 पीडियाट्रिक आइसीयू यानी पीकू बनाने की योजना पर काम चल रहा है। एक महीने के भीतर बच्चों के लिए यह अस्पताल बनकर तैयार हो जाएंगे। इसी के साथ दस साल की उम्र वाले उन बच्चों के माता-पिता को प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण शुरू किया जा रहा है ताकि किसी भी संकट में बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने पर उनकी देखभाल बच्चों के मां-बाप कर सकें। इसके लिए अभिभावक स्पेशल बूथ बनाए गए हैं। हालांकि, इन तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद यूपी में बाल रोग विशेषज्ञों की बेहद कमी है। कई जिला चिकित्सालयों में बाल रोग विशेषज्ञ ही नहीं हैं। ऐसे में इस महामारी से निपटना आसान नहीं होगा।

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60 से 80 बाल रोग विशेषज्ञ को ट्रेनिंग

सोमवार से उप्र के मेडिकल कालेजों में तैनात बच्चों के डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने का कार्य शुरू हो गया है। सबसे पहले प्रयागराज के मेडिकल कॉलेज के 27 डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके बाद हर बैच में 60 से 80 बाल रोग विशेषज्ञ को प्रशिक्षित किया जाएगा।

52 मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टर्स को ट्रेनिंग

केजीएमयू, एसजीपीजीआई और लोहिया को मिलकर प्रदेश के 52 मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टर्स को ट्रेनिंग के लिए प्रशिक्षित किया गया है। एसजीपीजीआई के निदेशक डॉक्टर आरके धीमन तीसरी लहर नियंत्रण के लिए गठित एडवाइजरी के अध्यक्ष का कहना है कि 2 से 18 वर्ष तक के बच्चे इस बार हाई रिस्क पर होंगे। उन्हें कोविड संक्रमण से बचाने के लिए यह ट्रेनिंग दी जा रही है।

समझाई जाएंगी उपचार की बारीकियां

सभी शिशु और बाल रोग विशेषज्ञ को तकनीकी और कोविड प्रोटोकॉल और उसके उपचार की बारीकियों को समझाया जा रहा है। प्रदेश भर में पीडियाट्रिक आइसीयू संचालन में इन प्रशिक्षित डॉक्टरों की भूमिका सबसे अहम होगी।

पांच बिंदुओं पर फोकस

- पीडियाट्रिक,आइसीयू,एनआइसीयू, पीआइसीयू और एचडीयू तैयार करेंगे
- सभी तरह के शिशु और बाल रोग विशेषज्ञों को विशेष तौर ट्रेनिंग देंगे
- 18 साल के ऊपर के अधिक से अधिक से बच्चों को टीकाकरण किया जाए
- कोविड अनुकूल व्यवहार यानी कैब का पालन यानी कोविड सुरक्षा मानकों का पालन
- घर पर रहे, यानी किसी भी तरह से घर पर बने रहने की प्राथमिकता

तीसरी लहर से कैसे निपटेगा यूपी

हर जिले में महिलाओं,बच्चों के लिए एक डेडिकेटेड अस्पताल
2,200 एंबुलेंस महिलाओं, बच्चों के लिए डेडिकेट
्रसभी मेडिकल कालेजों में बच्चों के लिए 100-100 बेड
जिला अस्पतालों में पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट बनेगी
अब तक 432 पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट (पीकू) तैयार
केजीएमयू में पीकू वार्ड बनाया जा रहा है
डॉ.राममनोहर लोहिया आर्युविज्ञान संस्थान में 120 बेड का पीकू
गोरखपुर में बनेगा 54 बेड का पीकू
हर जिले में बच्चों के लिए 25 बेड आरक्षित
लेवल -2, लेवल-3 के 80,000 बेड्स मौजूद

सिर्फ दो जिलों से समझें हालात, जहां एक बाल रोग विशेषज्ञ नहीं

यूं तो यूपी में बाल रोग चिकित्सकों की भारी कमी है, लेकिन संभल जिले में तो एक भी चाइल्ड डॉक्टर नहीं है। जिले में सरकारी अस्पतालों में 43 एमबीबीएस चिकित्सक हैं। इसमें दो सर्जन, 10 डेंटल हैं, लेकिन, चाइल्ड डॉक्टर एक भी नहीं है।

औराई सीएचसी में नहीं है बालरोग विशेषज्ञ

औरैया में सीएचसी, पीएचसी स्वास्थ्य केंद्रों पर बाल रोग चिकित्सकों की बेहद कमी है। औराई सीएचसी में एक भी बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है। यहां न तो एक्सरे मशीन है और न ही अल्ट्रासाउंड मशीन। सीएचसी औराई के चिकित्सा अधीक्षक डां अशफाक अहमद ने बताया कि अभी सीएचसी में कोई भी बाल रोग विशेषज्ञ नियुक्त नहीं है।

क्या कहती है डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस

देश के सरकारी अस्पतालों में 81 फीसदी बाल रोग विशेषज्ञों की कमी है। देश में करीब 75 हजार ही बाल चिकित्सक हैं। ऐसे में बेहतर इलाज की बात बेमानी साबित हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस के अनुसार प्रति हजार बच्चों पर एक चिकित्सक होना जरूरी है। यूपी में औसतन तीन हजार बच्चों पर केवल एक डॉक्टर की उपलब्धता है।

एक हजार में 41 बच्चे मर जाते हैं यूपी में

अभी देश में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार शिशुओं पर 32 है। देश में शिशु मृत्युदर में कुछ सुधार भी हुआ है. 11 साल में 42 प्रतिशत की कमी आई है। 2006 में पैदा होने वाले प्रति 1000 बच्चों में 57 मर जाते थे तो 2017 में मरने वाले बच्चों की संख्या प्रति एक हज़ार पर 33 हो गई। जबकि, यूपी में1000 बच्चों पर 41 बच्चे मर जाते हैं। तीसरी लहर से कैसे निपटेगा यूपी