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हर जिले में खुलेगी शरिया कोर्ट, मुसलमानों को फायदा होगा या भुगतना होगा खामियाजा

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस समय देशभर में 60 शरई अदालतें हैं।  

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Muslim Personal Law declared

हर जिले में खुलेगी शरिया कोर्ट, मुसलमानों को फायदा होगा या भुगतना होगा खामियाजा

लखनऊ. तीन तलाक पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की खूब फजीहत हुई थी। इसके बाद अब पर्सनल लॉ बोर्ड शरिया कोर्ट को लेकर चर्चा में है। बोर्ड ने सिविल विवाद को निपटाने के लिए देश के हर जिले में शरिया कोर्ट स्थापित करने की घोषणा की है। इस कोर्ट को दारूल कज़ा कहा जाएगा, यह किसी भी विवाद को शरियत के मुताबिक फैसला सुनाएगी। कोर्ट खोलने के संबंध में पहले 15 जुलाई को लखनऊ में बैठक होने वाली थी। लेकिन, अब दिल्ली में बैठक बुलाई गयी है। बोर्ड के शरिया कोर्ट खोलने के बयान पर राजनीति शुरू हो गयी है। भाजपा का कहना है कि इससे बोर्ड सियासत तो चमक सकती है लेकिन आम मुसलमानों को इसका खामियाजा भुगतना होगा।
शरई कोर्ट की जरूरत क्यों
मुस्लिमों की संस्था दारुल कजा कमेटी के ऑर्गेनाइजर काजी तबरेज आलम के अनुसार देश की अदालतों पर मुकदमों का बहुत बोझ है। इसलिए मुसलमानों को शरई कोर्ट में अपने मुकदमें लेकर जाना चाहिए। इससे जल्द न्याय मिलेगा और सरकार का पैसा भी बचेगा। इसीलिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश के हर जिले में (दारुल कजा) शरई अदालत खोलने जा रहा है।
अभी देश में 60 शरई कोर्ट
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस समय देशभर में 60 शरई अदालतें हैं। जो उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में चल रही हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 31 और उत्तर प्रदेश में 17 अदालतें हैं। जल्द ही राजस्थान के डोंक और मेवात में दो नई शरई अदालत खोलने की तैयारी है। लेकिन, शरिया अदालत का फैसला मानना दोनों पक्षों की मजबूरी नहीं है। क्योंकि शरिया अदालत के पास कानूनी अधिकार नहीं है। शरिया अदालत का फैसला तभी अमल में आ सकता है,जब दोनों पक्ष उसको मान लें।
क्या मकसद है दारूल कज़ा का
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ट्रिपल तलाक के मसले पर अदालत में लड़ाई हार चुका है। ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून लोकसभा में पास हो चुका है। माना जा रहा है कि पर्सनल लॉ बोर्ड शरियत कानून के तहत कई सिविल मामले निपटाएगा। ज्यादातर मुस्लिम समाज के भीतर तलाक ज़मीन जायदाद और विरासत का मसला आता है। इसमें शरिया कानून के तहत फैसला किया जाएगा।
क्या होता है काजी
काजी को इस्लामी हुकूमत में जज कहते हैं। इनके पास असीमित अधिकार होते हैं। पर लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा नहीं होता है। मु ती या काजी शादी से जुड़े मामलों और विरासत (संपत्ति में हिस्सा) आदि के शरई मामलों को आपसी बातचीत से सुलझवाने का प्रयास करते हैं। अपराध से जुड़े मामले यहां नहीं सुने जाते हैं।
शरिया कोर्ट पर क्या है सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने 8 जुलाई 2014 को शरिया अदालतों पर पांबदी लगाने से इंकार कर दिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि किसी को शरिया कोर्ट की बात मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर कोई शरिया कोर्ट में जाना चाहता है तो उसको रोका भी नहीं जा सकता है। यानी शरिया कोर्ट के फैसले का कानूनी नजरिए से कोई महत्व नहीं है।
देश की न्यायिक व्यवस्था में विश्वास
पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि शरिया अदालतें देश के न्यायिक व्यवस्था को मानती है। यह एक पंचायत की तरह है, जिसको धार्मिक कानून के दायरे में देखा जाना चाहिए।
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
एआईएमपीएलबी का हर जिले में शरिया कोर्ट बनाने का फैसला ऐसे समय में लिया जाना चौंकाता है, जब लोकसभा चुनाव महज कुछ महीने दूर हों। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एआईएमपीएलबी के सदस्य भाजपा के साथ मिलकर कुछ खेल रचने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए ऐसे मुद्दों को प्राथमिकता दी जा रही है जिससे भाजपा को फायदा मिल सके और समाज में साप्रंदायिक ध्रुवीकरण संभव हो। कुल मिलाकर उलेमाओं का एक धड़ा, जानबूझकर या अनजाने में भाजपा को जनाधार वापस दिलाने में मदद कर रहा है।
पैसे और समय की बचत
पर्सनल लॉ बोर्ड मेंबर जफ़रयाब जिलानी कहते हैं कि अभी उप्र में कुछ शरिया कोर्ट काम कर रही हैं। बोर्ड की चाहत पूरे देश में इस तरह की कोर्ट खोलने की है। ताकिलोगों के छोटे मसलों का निपटारा किया जा सके। इससे मुसलमानों को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने की ज़रूरत नहीं होगी। पैसे और समय की भी बचत होगी।

कानपुर में खुलेगी प्रदेश की पहली महिला शरई कोर्ट
इसी ह ते कानपुर में मुस्लिम महिलाओं के हितों को लेकर बड़ी घोषणा हुई। कहा गया कि उप्र की पहली महिला 'शरई कोर्ट' कानपुर में खुलेगी। यह ऐलान पहली महिला शहरकाजियों को बनाने वाली संस्था वॉतीन बोर्ड ने की। बताया गया कि कोर्ट में निकाह-तलाक और विरासत के मामलों पर सुनवाई होगी। इस कोर्ट में सिर्फ महिलाएं ही आवेदन कर सकेंगी। गौरतलब है कि दारुल कजा या शरई पंचायत के नाम से भी पहचान रखने वाली इन शरई कोर्ट में मु ती और काजी विवादों का हल निकालते हैं। इन्हें किसी भी पक्ष पर मानने की बाध्यता नहीं होती है पर सामान्य तौर पर धार्मिक कारणों से दोनों पक्ष फैसले को मान लेते हैं। यह जानकारी वॉतीन बोर्ड की सदर सैय्यदा तबस्सुम ने दी थी। उनके मुताबिक शरई कोर्ट में मर्द काजी और मुफ्ती होने की वजह से महिलाएं अपना पक्ष ठीक ढंग से रख पातीं। लेकिन शरई कोर्ट में वह अपनी बात आसानी से रख सकेंगी। सुन्नी उलमा काउंसिल पहली महिला शरई कोर्ट की सरपरस्ती के लिए राजी है।

मुख्तार अब्बास नकवी की बहन आयीं समर्थन में
शरीयत और शरिया अदालत की सुखिऱ्यो के बीच मुस्लिमों में एक तबका शरिया अदालत के विरोध में है तो एक तबका समर्थन कर रहा है। माना जा रहा है इस मामले को भाजपा भी पर्दे के पीछे रहकर तूल दे रही है। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की बहन फरहत नक़वी इसके लिए बाकायदा अभियान चला रही हैं। बरेली शरीफ दरगाह आला हजरत खानदान की तलाक़शुदा बहू निदा खान का कहना है कि "एक देश, एक कानून" की जरूरत है। वे कहती हैं कि तमाम मुस्लिम देशों में शरीयत कानून को नही माना जाता। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी 3 तलाक़, और हलाला पर पाबंदी है, तो भारत में ऐसा क्यों नहीं? वे फतवों पर भी पाबंदी लगाने की मांग काती हैं। हालांकि कि वह महिला काजी की वकालत करती हैं। निदा की बात को आगे बढ़ाते हुए फरहत नकवी भी कहती हैं कि हर जिले में शरिया अदालत बने और इसमें महिला काजी हों। महिला काजी होने से महिलाओं का उत्पीडऩ रुकेगा।


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