तितलियों की नई प्रजातियों की खोज में उन्होंने यूपी के तराई के जंगलों में 8 नई प्रजातियों का पता किया है। इन तितलियों का ठिकाना पहले दक्षिण और पूर्वोत्तर के ही राज्यों में था, लेकिन अब इन्हें यूपी के तराई क्षेत्र में भी पाया जा रहा है। ( Uttar Pradesh State Tourism Corporation) रतींद्र पांडेय ने बताया कि इन नई प्रजातियों का अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुका है। इन तितलियों की खूबसूरती के साथ-साथ, इनका प्राकृतिक संरक्षण और प्रदूषण कम करने में भी योगदान है।
रतींद्र पांडेय का शोध यूपी के तराई क्षेत्र में तितलियों की संरक्षण और उनके प्रदूषण कम करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है। इससे न केवल तितलियों की संख्या में वृद्धि होगी, बल्कि प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में भी सकारात्मक परिणाम होंगे। ( Double Bande Judy) इस शोध के माध्यम से नए प्रजातियों की पहचान होने से प्रदेश के तराई क्षेत्र के जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा और यह स्थानीय पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
जून 23 से जनवरी 24 के बीच शोध करने वाले रतींद्र ने बताया है कि तराई क्षेत्र में मिली तितलियों की नई प्रजातियों में वाटर स्नो फ्लैट, ट्रीकलर्ड, पाइड फ्लैट, ट्री फ्लिटर, पैले पाल्म डर्ट, डबल बैंडे ज्यूडी, येलो कोस्टर, और कॉपर फ्लैश शामिल हैं। इनमें सबसे दुर्लभ प्रजातियों में वाटर स्नो फ्लैट और पाइड फ्लैट हैं। (Water Snow Flat) ये तितलियां दुधवा नेशनल पार्क में पाई गई हैं। इसके अलावा, ट्री फ्लिटर, पैले पाल्म डर्ट पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मिलीं हैं, जो दुर्लभ प्रजातियों में से हैं। डबल बैंडे ज्यूडी, येलो कोस्टर, कॉपर फ्लैश प्रजाति कतर्निया घाट और चंद्रप्रभा वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी चंदौली में पाई गई हैं। ये प्रजातियां भी बेहद दुर्लभ श्रेणी में आती हैं।
रतींद्र ने बताया कि इस अद्वितीय शोध का परिणाम तराई क्षेत्र में तितलियों की अद्भुत बायोडाइवर्सिटी को दर्शाता है, जिससे प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में नई दिशा मिलेगी। इससे न केवल वन्यजीवों की संरक्षण की जाएगी, बल्कि यह अनुसंधान भी स्थानीय और विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को और बेहतर उपाय ढूंढने में मदद करेगा।
यूपी के तराई क्षेत्र का वातावरण तितलियों को अच्छा लगने लगा है। तितलियों पर शोध करने वाले रतींद्र पांडेय ने बताया है कि जिन पौधों पर तितली के लार्वा को भोजन मिल जाता है, वही उसके जीवन के आधार बन जाते हैं। येलो कोस्टर तितली चट्टान पर उगे पौधे के पत्ते का सेवन करके अपना जीवन चलाती है। यह पौधा दुधवा के जंगलों में पाया जाता है। इसी तरह, डबल बैंडे ज्यूडी को अगपेंथस का पौधा पसंद है, जो कतर्नियाघाट के जंगलों में उपलब्ध हैं।