
एएमयू को एससी एसटी आयोग का नोटिस, क्यों नहीं दे रहे दलितों को आरक्षण
लखनऊ. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक बार फिर से सियासी अखाड़ा बनने को तैयार है। इस बार मामला एएमयू में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण लागू किये जाने की मांग से जुड़ा हुआ है। कई दलित संगठनों की मांग पर बुधवार को उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति आयोग ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को नोटिस जारी कर पूछा है कि विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति और जनजाति के विद्यार्थियों को आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा है। आयोग ने नोटिस का जवाब न मिलने पर कार्रवाई की बात कही है।
एएमयू पर आरक्षण के नियम नहीं मानने का आरोप
एएमयू के रजिस्ट्रार को भेजे नोटिस में कहा गया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय संवैधानिक उपबंधों और न्यायिक निर्णयों को नजरअंदाज करते हुए आरक्षण के नियमों का अनुपालन नहीं कर रहा है। आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने बताया कि सन 1977 में सर सैयद अहमद ने एएमयू को मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कालेज के रूप में शुरू किया था। इसके बाद विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए फाउंडेशन का गठन किया गया और धन इकट्ठा करने का काम शुरू हुआ। उस समय महाराजा विजयनगरम, ठाकुर गुरु प्रसाद सिंह, कुंवर जगजीत सिंह, महाराजा पटियाला, महाराजा दरभंगा, राय शंकर दास, महाराजा महेंद्र प्रताप सिंह सहित कई राजाओं ने जमीन और पैसे दान में दिए थे। इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 1920 के अधिनियम के माध्यम से इसकी स्थापना हुई।
इन नेताओं ने भी एएमयू को नहीं माना था अल्पसंख्यक संस्थान
आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि डॉ भीमराव आम्बेडकर ने संविधान सभा में घोषित किया कि एएमयू, बीएचयू की तरह संविधान की सातवीं अनुसूची में संघीय सूची में रखा गया है, जिसका तात्पर्य यह है कि उस पर संघीय कानून लागू होगा। तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद का भी यह मत था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। डॉ जाकिर हुसैन ने भी उनकी राय का समर्थन किया था। तत्कालीन शिक्षा मंत्री मोहम्मद करीम छागला ने 1965 में संसद में दिए गए भाषण में कहा था की एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसके बाद के तत्कालीन शिक्षा मंत्री नुरुल हसन ने यह कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने की मांग न तो देश के हित में हैं और न ही मुसलमानों के हित में।
राष्ट्रपति ने ख़ारिज कर दी थी मुस्लिमों को आरक्षण की मांग
आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने कहा कि 1990 में एएमयू द्वारा मुसलमानों को विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था की गई थी। दिनांक 20.08.1989 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कोर्ट ने विद्यार्थियों के प्रवेश में 50 प्रतिशत आरक्षण मुसलमान विद्यार्थियों के लिए करने का एक प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा था। एएमयू के इतिहास में यह पहला मौक़ा था जब मुस्लिम आरक्षण का प्रस्ताव तैयार किया गया था। इस पत्र के जवाब में राष्ट्रपति ने लिखा था कि विश्वविद्यालय में मुस्लिम आरक्षण असंवैधानिक है। बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ किया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बासा बनाम भारत संघ के मामले में 1967 में सर्वसम्मति से यह स्पष्ट कर दिया था कि इसे न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया और न ही यह विश्वविद्यालय कभी मुसलमानों द्वारा संचालित किया गया।
जवाब न मिलने पर कार्रवाई करेगा आयोग
आयोग ने एमएमयू को भेजे नोटिस में कहा है कि एएमयू एक अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है और यहाँ अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है। आयोग ने एएमयू को कहा है कि वह 8 अगस्त तक बताये कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के लोगों को आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा है। आयोग के अध्यक्ष ने कहा है कि समय सीमा के भीतर जवाब न मिलने पर विश्वविद्यालय को समन भेजने के साथ ही मुकदमा भी चलाया जाएगा।
Published on:
04 Jul 2018 02:30 pm
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