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डिजिटल खेती में बनाए कॅरियर, फटाफट कमा सकते हैं पैसा

यूरोप, पश्चिमी एशिया, लेटिन अमरीका और अमरीका में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। नई तकनीकों और उपकरणों के इस्तेमाल के चलते इसमें शुरुआती लागत तो ज्यादा आती है, पर लंबे समय में खेती की लागत काफी घट जाती है।

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जयपुर

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Sunil Sharma

Mar 22, 2019

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कृषि क्षेत्र में बढ़ती समस्याओं और अनिश्चितताओं के बीच डिजिटल खेती को एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। खर्चीला होने के बावजूद भारत सहित कई एशियाई देशों में इसकी ओर किसानों का रुझान बढ़ रहा है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, गुजरात जैसे राज्यों में कई प्रगतिशील किसान डिजिटल खेती कर रहे हैं। रोबोट, ड्रोन,जीपीएस प्रणाली आदि के प्रयोग से कई देश स्मार्ट खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

डिजिटल खेती में बुवाई से लेकर कटाई तक की प्रक्रिया को बढ़ावा देने सहित लगभग हर जानकारियां शामिल हैं। हाल ही में एक शोध रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्मार्ट खेती बाजार के 2022 तक 1.64 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को छूने की उम्मीद है। इतना ही नहीं 2017 से 2022 तक लगभग 20 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर भी देखी जा रही है।

क्या है डिजिटल खेती
डिजिटल खेती में स्वत: काम करने वाले यंत्र, ड्रोन, जीपीएस और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) जैसी तकनीकों की मदद से खेती की जाती है। यूरोप, पश्चिमी एशिया, लेटिन अमरीका और अमरीका में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। नई तकनीकों और उपकरणों के इस्तेमाल के चलते इसमें शुरुआती लागत तो ज्यादा आती है, पर लंबे समय में खेती की लागत काफी घट जाती है।

क्यों है इसकी जरूरत
कृषि में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण के लाभ अनुमान से अधिक हैं। इससे मिट्टी की घटती उर्वरता और खादों व कीटनाशकों के बेजा इस्तेमाल जैसी समस्याओं से निजात मिल सकती है। संसाधनों की भी बचत होती है। खेती का तकनीक आधारित प्रबंधन ने किसानों का समय बचाने व खेती की अनिश्चितताओं को भी कम किया है।

क्या है मौजूदा समस्या
जलवायु परिवर्तन और आबादी का बढ़ता आंकड़ा मौजूदा कृषि के लिए बड़ी समस्या है। किसान अब भी पुराने तरीके से खेती कर रहे हैं। जिससे उन्हें परिस्थितियों के अनुकूल प्रयोगों के बारे में जानकारी नहीं हो पाती है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2024 तक कृषि ड्रोन का बाजार 70.99 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। इी तरह अकेले अमरीका में ही स्मार्ट खेती पर अंदाजन 05.82 लाख करोड़ रुपए 2015-25 तक खर्च किए जाएंगे।