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इस समय पूरे देश में अगर किसी एक खास फील्ड पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है तो वो इंजीनियरिंग है। देशभर में चल रहे विभिन्न सरकारी व प्राइवेट कॉलेजों में इंजीनियरिंग कोर्सेज में इस समय हर वर्ष लगभग 80 एंट्रेंस टेस्ट होते हैं, इनमें जेईई मेन में 10 लाख से भी अधिक स्टूडेंट्स भाग लेते हैं। बाकी एंट्रेंस एग्जाम अलग से प्राइवेट कॉलेज व विभिन्न यूनिवर्सिटीज कंडक्ट करवाती है।
छात्रों तथा उनके अभिभावकों के बीच इंजीनियरिंग के प्रति बढ़ते रूझान का कारण इंजीनियरिंग में उपलब्ध कॅरियर ऑप्शन्स भी हैं। यही एक ऐसा फील्ड है जहां आप डिप्लोमा (ITI) से भी शुरूआत कर एम.टेक. तक कर सकते हैं और अपनी योग्यता के अनुसार लाखों रूपया सालाना का पैकेज हासिल कर सकते हैं। यहां जानिए इंजीनियरिंग के फील्ड से जुड़ी जानकारी के बारे में
टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज का ओवरव्यू
इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स का सबसे बड़ा सपना होता है आइआइटी में एडमिशन और वो भी टॉप-6 आइआइटीज में। इसके लिए जेईई एडवांस्ड एग्जाम कंडक्ट होता है, इसमें अपीयर होने के लिए जेईई मेन में टॉप 2 लाख 24 हजार स्टूडेंट्स में रैंक लानी होती है। जेईई एडवांस्ड एग्जाम के केवल टॉप 5500 रैंक तक के स्टूडेंट्स को टॉप-6 आइआइटी में सीट मिलने की सम्भावना होती है। इसके बाद की रैंक वाले स्टूडेंट्स या तो नई आइआइटीज में एडमिशन लेते हैं या जेईई मेन की रैंक के बेस पर एनआइटीज व ट्रिपलआइटी के लिए कोशिश करते हैं। इनमें अच्छी सीटों पर एडमिशन लगभग 30 हजार रैंक तक हो जाता है। इसके बाद प्राइवेट इंस्टीट्यूशन्स को प्रिफरेंस दी जाती है। देश के कई प्राइवेट कॉलेजों को स्टूडेंट्स एनआइटी के बराबर या इससे अधिक प्रिफरेंस देते हैं।
प्लेसमेंट पैकेज और एल्युमिनाई बेस देखना जरूरी
टॉप लेवल पर जेईई मेन सबसे जरूरी है, क्योंकि इसकी तैयारी से बाकी सभी एग्जाम की तैयारी अपने आप हो जाती है। प्राइवेट कॉलेजों के एंट्रेंस एग्जाम में अपीयर होने से पहले प्लेसमेंट व एलुमनाई बेस को चेक कर लेना चाहिए। अगर एवरेज प्लेसमेंट पैकेज 5 लाख या अधिक हो और एल्युमिनाई बेस इम्प्रेसिव हो, तो उस कॉलेज का फॉर्म भरा जा सकता है। कई प्राइवेट कॉलेजों का एवरेज प्लेसमेंट पैकेज 8 से 10 लाख तक का भी होता है, लेकिन स्टूडेंट्स इन कॉलेजों का फॉर्म अवेयरनेस की कमी के कारण नहीं भर पाते।
इन ब्रांच में ज्यादा स्कोप
ज्यादातर स्टूडेंट्स आजकल कम्प्यूटर साइंस को प्रिफर करते हैं, क्योंकि इसमें व्हाइट कॉलर जॉब का अट्रैक्शन रहता है। एक्सपट्र्स के अनुसार, स्टूडेंट्स को अगर कम्प्यूटर साइंस, इलेक्ट्रोनिक्स या इलेक्ट्रिकल ब्रांच में से कोई भी मिल रही है, तो पहले प्रिफरेंस ब्रांच की बजाय कॉलेज को देना चाहिए, क्योंकि कॉलेज का एन्वायर्नमेंट बीटेक के चार सालों में स्टूडेंट्स की ग्रोथ में ज्यादा रोल प्ले करता है। इनके बाद दूसरी कोर ब्रांचेज जैसे मैकेनिकल, कैमिकल, प्रोडक्शन, इंस्ट्रूमेंटेशन, मेटलर्जी, मैटेरियल साइंस और सिविल को प्रिफरेंस दी जा सकती है। इनके अलावा ऑफ बीट ब्रांचेज जैसे मरीन इंजीनियरिंग, ओशियन, मिनरल, सिरामिक, डिजाइन, पेट्रोलियम, एनर्जी, टेक्सटाइल, माइनिंग और एग्रीकल्चर भी काफी अच्छी ब्रांचेज हैं, इनको कई बार स्टूडेंट्स प्रिफर नहीं करते। कम रैंक पर भी कई बार ये ब्रांचेज मिल जाती हैं और इन ब्रांचेज के प्लेसमेंट भी काफी अच्छे होते हैं।
जिन स्टूडेंट्स को कम्प्यूटर साइंस में इंटरेस्ट है, वे किसी भी ब्रांच से बीटेक करके आगे कम्प्यूटर साइंस में हायर स्टडीज कंटीन्यू कर सकते हैं। आज इंजीनियरिंग की करीब सभी ब्रांचेज में सॉफ्टवेयर के कोर्सेज इन्क्लूड कर दिए गए हैं, तो कम्प्यूटर साइंस का बेस किसी भी ब्रांच से बन जाता है। मास्टर्स डिग्री कम्प्यूटर साइंस में की जा सकती है और इसी जॉब के लिए भी अप्लाई किया जा सकता है।
- आशीष अरोरा, कॅरियर काउंसलिंग एक्सपर्ट
Published on:
17 Jun 2019 04:33 pm
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