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एक संत और उनका एक शिष्य धर्म प्रचार के लिए गांव-गांव घूमते थे। उन्हें एक गांव में रहते हुए काफी दिन बीत गए। एक दिन संत ने शिष्य से कहीं और चलने के निर्देश दिए। शिष्य ने पूछा, ‘गुरुदेव, यहां तो बहुत चढ़ावा आता है और यहां के लोग भी अच्छे हैं। क्यों न कुछ दिन बाद चलें तब तक और चढ़ावा इकट्ठा हो जाएगा?’ संत बोले, ‘बेटा, हमें धन और वस्तुओं के संग्रह से क्या लेना-देना, हमें तो त्याग के रास्ते पर चलना है।’
गुरु की आज्ञा सुनकर शिष्य कुटिया को छोड़ चल दिया लेकिन चलते-चलते गुरु की आंखें बचाकर कुछ सिक्के चोरी से झोली में डाल लिए। दूसरे गांव में जाने के लिए उन्हें एक नदी पार करनी थी। जब वे नदी तट पर पहुंचे तो नाव वाले ने कहा कि मैं नदी पार कराने के दो सिक्के लेता हूं। संत के पास पैसे नहीं थे, इसलिए वे वहीं आसन लगा कर बैठ गए।
सुबह से शाम हो गई न तो कोई भक्त आया और न ही नाव वाले का दिल पसीजा। अंधेरा होता देख शिष्य ने अपनी झोली से दो सिक्के निकाले और नाव वाले को देकर बोला कि अब हमें पहुंचाओ। उसे देख कर संत मुस्कुराते हुए बोले कि जब तक सिक्के तुम्हारे झोली में थे, हम कष्ट में रहे, तुमने त्यागा, हमारा काम बन गया।
Published on:
09 Jun 2020 04:21 pm
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