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कंक्रीट के जंगल और सोशल मीडिया के इस दौर में बागवानी एक पुरानी याद बनकर रह गई है। बागवानी करने वाले प्रकृति और पर्यावरण के महत्त्व को पहचानते थे। आज की युवा पीढ़ी इस खुशनुमा एहसास से कोसों दूर है। ऐसा नहीं है कि आज युवाओं को इसका शौक नहीं है लेकिन अब किसी के पास इतना समय ही नहीं है कि वे युवाओं को गार्डनिंग सिखाए।
कुछ ऐसा ही विचार बॉल हॉट्रिकल्चर कंपनी में काम करने वाले युवा ऐप डवपलर्स 28 वर्षीय मैसन डे और 34 साल के सेठ रीड के दिमाग में भी आया। दोनों ने महसूस किया कि बागवानी जैसे धैर्य वाले शौक के लिए एक ऐप बनाने की जरुरत है जो युवाओं को गार्डनिंग सिखा सके। दोनों ने ‘ग्रो इट’ नाम की ऐप बनाई है जो बच्चों को अनुभवी बागबान की तरह पौधों के बारे में सटीक जानकारी और टिप्स देती है।
मैसन और रीड का कहना है कि आज की पीढ़ी के पास बागवानी के लिए जगह बची ही कहां है? बागवानी शारीरिक और अनुभवजन्य व्यायाम है। लेकिन आज की पीढ़ी बागवानी की बजाय मोबाइल को ही चुनेगी। इसलिए जरूरी है कि इसे सिखाने के लिए डिजिटल माध्यम का उपयोग किया जाए क्योंकि युवा पीढ़ी इसमें सहज हैं। इसलिए दोनों ने यह ऐप बनाई।
हाल ही स्विज़रलैंड के दावोस में आयोजित वल्र्ड इकोनोमिक फोरम की सालाना बैठक में मशहूर प्रकृतिवादी और प्रसारक सर डेविड एटनबरो ने कहा कि गार्डनिंग केवल रुचि मात्र नहीं है बल्कि यह मानव जीवन का वह आवश्यक घटक है जो हमें बताता है कि स्वस्थ ग्रह हमारे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है।
ऐप में यह फीचर खास
यह ऐप आसपास के क्षेत्र में मिलने वाले ऐसे उपयुक्त पौधों के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाती है जो घर के वातावरण के अनुरूप आसानी से उग सके। अब तक इस ऐप के 7 लाख से ज्यादा यूजर हो गए हैं। इस ऐप को 15 वॉलंटीयर्स ने मिलकर तैयार किया है। इनमें से ज्यादातर पेड़-पौधों से अनजान थे।
ऐसे आया विचार
मैसन ने बताया कि एक क्लाइंट ने कुछ ऐसी प्रजातियों की मांग कर दी जो उनके पास उपलब्ध नहीं थे। नेट पर खोजबीन के बाद भी उस प्रजाति के पौधों का सही ठिकाना आसपास नहीं मिला। तब उनके मन में ऐसा ऐप बनाने का विचार आया जो लोगों को बागवानी के साथ पेड़-पौधों की भी सही जानकारी दे।
मार्केट रिसर्च कंपनी नील्सन की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में युवा औसतन दिन के 4 घंटे से ज्यादा का समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं। टीवी और रेडियो का समय शामिल करने पर यह 11 घंटे से ज्यादा हो जाता है, यानि 11 घंटे का कोई रचनात्मक उपयोग नहीं होता।
Published on:
16 Feb 2019 06:20 pm
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