बच्चों को गोद में उठाकर तो कंधे पर बिठाकर पैदल घर लौट रहे मजदूर परिवार
बच्चों को गोद में उठाकर तो कंधे पर बिठाकर पैदल घर लौट रहे मजदूर परिवार
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मंदसौर.
कोरोना की दस्तक से अनजान राजस्थान के आदिवासी बाहुल इलाके के मजदूर वर्ग बड़ी संख्या में अब मालवा से अपने घर लौट रहे है। घर से दो वक्त की रोटी और मजदूर की तलाश में निकलें परिवार अब निराश लौट रहे है। उन्हें तो पता ही नहीं था कि कोरोना से बंद के कारण साधन ही नहीं मिलेंगे। अब काम नहीं और न रहने का ठिकानों तो अपने घर की और जा रहे है। साधन नहीं है तो अब परिवार सहित पैदल ही जाना पड़ रहा है। खाने-पीने से लेकर ओढऩे के जो सामने थे वह भी वहीं छोडऩा पड़े। जो बच्चे साथ है उन्हें गोद में उठाकर चलने की मजदूरी के कारण साथ का सामान फेंककर निकलना पड़ा। अब कदम दर कदम चलकर राह नाप रहे है। रास्ते में कुछ जगहों पर समाजसेवियोंं द्वारा खाने की व्यवस्था की गई, लेकिन दिनभर चलने के बाद रात का पड़ाव जहां अंधेरा हो रहा है वहीं करना पड़ रहा है।
सड़क पर चैकिंग का डर इसलिए रेलवे ट्रेक के रास्ते पैदल कर रहे सफर
मालवा इलाके में दो वक्त की रोटी की तलाश में मजदूरी करने आए थे, लेकिन कोरोना वायरस के चलते २१ दिनों के लॉक डाउन में न इन्हें मजदूरी नसीब हुई ना रोटी। वापस अपने गांव लौटना चाहा तो परिवहन के तमाम पहिए भी थम चुके थे। ये ६०-७० से अधिक मजदूरों का एक समूह है इनमे १७ मासूम बच्चे भी है जो राजस्थान के बांसवाड़ा जिले से मध्यप्रदेश में रोजी रोटी की तलाश में निकला था। अपने गांव तक पहुचने का कोई संसाधन नहीं मिला तो पैदल ही गांव की राह पकड़ ली सड़क पर प्रशासन की सख्ती और पुलिस की बार बार चेकिंग से बचने के लिए इन्होंने रेलवे ट्रेक का रास्ता चुना।
बच्चों के लिए सामान भी फेंका
कंधों पर ओढऩे बिछाने के सामान और कुछ राशन सामग्री के बोझ को रास्ते मे ही फेक अपने मासूम बच्चों का बोझ कंधों पर लादना पड़ा। बीते तीन दिनों के पैदल सफर में रास्ते मे जो मिला खा लिया नहीं तो चलते रहे। ९० किमी पैदल चलने के बाद ये मंदसौर के ग्राम दलौदा पहुंचे। जहा सामाजिक लोगों ने इन्हें भोजन करवाया। वापस अपने गांव तक पहुंचने के लिए ये अब तक कि अपनी पूरी मजदूरी तक देने को तैयार है लेकिन प्रशासन ने नियमों का हवाला देते हुए मदद से हाथ खड़े कर दिए।
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