सुप्रीम कोर्ट पहुंचा श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला, हिंदुओं के साथ धोखे की दलील, 1968 के समझौते को रद्द करने की याचिका
मथुरा. Mathura Shree Krishna Janmbhoomi रामजन्मभूमि से शुरू हुआ विवाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Shree Krishna Janmbhoomi) तक पहुंच गया है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है, जिसमें कृष्ण जन्म भूमि को समझौते के जरिए मुसलमानों को देने को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि कृष्ण जन्मभूमि की संपत्ति बिना किसी कानूनी अधिकार के अनधिकृत रूप से समझौता करके शाही ईदगाह को दे दी गई जो कि गलत है। याचिका में मांग की गई है कि इस मामले में एसआईटी की जांच कराई जाए और सेवा संस्थान के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा चलाया जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि कोर्ट घोषित करे कि श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान की ओर से 12 अगस्त, 1968 को शाही ईदगाह के साथ किया गया समझौता बिना क्षेत्राधिकार के किया गया था, इसलिए वह किसी पर भी बाध्यकारी नहीं है।
क्या है 1968 का समझौता 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को उस जमीन के कानूनी अधिकार सौंप दिए थे जिस पर मस्जिद खड़ी थी। 7 फरवरी 1944 को जुगल किशोर बिरला ने मदन मोहन मालवीय के कहने पर कटरा केशव देव की जमीन राजा पटनीमल के वंशजों से खरीद ली। जमीन की रजिस्ट्री गोस्वामी गणेश दत्त, मदन मोहन मालवीय और भीकनलाल अत्री के नाम से हुई। 1951 में जुगल किशोर बिड़ला ने कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट का गठन किया था। उनका परिवार कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट का आजीवन ट्रस्टी है। इसी साल यह तय हुआ कि यहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। लेकिन इसके पहले 1945 में ही मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने रिट दायर की थी जिसका फैसला 1953 में आया और उसके बाद ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो सका जो फरवरी 1982 में जाकर पूरा हुआ। इसी दौरान साल 1964 में इस संस्था ने पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इस समझौते के बाद मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और इसके बदले में मुस्लिम पक्ष को पास की जगह दे दी गई। इसी समझौते के खिलाफ याचिका दायर की गई है।