दरअसल, तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर मोहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। यह इस्लामिक आंदोलन देवबंदी विचार धारा से प्रभावित है और उसके सिद्धांतों का दुनिया भर में प्रचार करता है।
बिहार सरकार अलर्ट: राज्य की सीमाएं सील, नीतीश बोले- न किसी को आने देंगे और न जाने देंगे मोहम्मद इलियास का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के कांधला गांव में 1885 में हुआ था। कांधला गांव में जन्म होने की वजह से उनके नाम में कांधलवी लगता है। उनके पिता मोहम्मद इस्माईल और माता का नाम सफिया था। बताया जाता है कि एक स्थानीय मदरसे में उन्होंने एक चौथाई कुरान को मौखिक तौर पर याद किया। अपने पिता के मार्गदर्शन में दिल्ली के निजामुद्दीन में संपूर्ण कुरान को याद किया।
कुरान याद करने के बाद उन्होंने अरबी और फारसी की धार्मिक किताबों को पढ़ा। इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों का शुरुआती अध्ययन करने के बाद वह रशीद अहमद गंगोही के साथ रहने लगे। 1905 में रशीद गंगोही का निधन हो गया। 1908 में मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाखिला लिया।
Lockdown : घर लौटे ओडिशा के 12 प्रवासी मजदूरों ने खेत में किया खुद को क्वारनटाइन, लॉकडाउन तोड़ने वालों के तबलीगी जमात हरियाणा से विशेष रिश्ता है। दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते हैं। उनके दौर में इनमें से अधिकांश ने मुगल शासनकाल में इस्लाम धर्म को स्वीकार किया था। 20वीं सदी में उस इलाके में मिशनरी ने अपना काम शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमान मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म छोड़कर इसाई बन गए। बस, यहीं से इलियास कांधलवी को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इस्लाम को मजबूत करने का मन में ख्याल आया।
जिस समय उनके मन में यह ख्याल आया उस समय वह सहारनपुर के मदरसा मजाहिरुल उलूम में पढ़ा रहे थे। उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सहारनपुर मदरसा में पढ़ाना छोड़ दिया। उसके बाद इलियास मेवात के मेव मुस्लिमों के बीच काम करने लगे। 1927 में तब्लीगी जमात की स्थापना की। ताकि गांव-गांव जाकर लोगों के बीच इस्लाम की शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जा सके।
बिहार के टीपू यादव की गुहार – मेरी मां का देहांत हो गया है और मैं यहां रास्ते में फंसा हूं, मुझे जल्दी घर पहुंचा दो जमात का मतलब जमात उर्दू भाषा का शब्द है। जमात शब्द का मतलब किसी खास उद्देश्य से इकट्ठा होने वाले लोगों का समूह है। तब्लीगी जमात के संबंध में बात करें तो यहां जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीगी जमात को समर्पित कर देते हैं। इस दौरान उनका अपने घर, कारोबार और सगे-संबंधियों से कोई संबंध नहीं होता है। लोगों के बीच इस्लाम की बातें फैलाते हैं और अपने साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं। इस तरह उनके घूमने को गश्त कहा जाता है। गश्त के बाद के समय का इस्तेमाल वे लोग नमाज, कुरान की तिलावत और प्रवचन में करते हैं।
जमात के बाद ये लोग अपनी अपनी सुविधा के मुताबिक तीन दिन, 40 दिन, कोई चार महीने के लिए तो कोई साल भर के लिए शामिल होते हैं। यह अवधि के समाप्त होने के बाद ही वे अपने घरों को लौटते हैं और रुटीन कामों में लग जाते हैं।
लॉकडाउन: 2 दिन में मौतों का आंकड़ा बढ़ने से अलर्ट मोड पर सरकारें, पुलिस-प्रशासन ने भी शुरू की सख्ती मरकज इस विचारधारा यानि तब्लीगी जमात के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। बड़े-बड़े शहरों में उनका एक सेंटर होता है जहां जमात के लोग जमा होते हैं। उसी को मरकज कहा जाता है। उर्दू में मरकज इंग्लिश के सेंटर और हिंदी के केंद्र के लिए इस्तेमाल होता है।
तब्लीगी जमात के सिद्धांत तब्लीगी जमात के सिद्धांत छह बातों पर आधारित हैं। इनमें ईमान यानी पूरी तरह भगवान पर भरोसा करना। नमाज पढ़ना, इल्म ओ जिक्र यानी धर्म से संबंधित बातें करना, इकराम-ए-मुस्लिम यानी मुसलमानों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना, इख्लास-ए-नीयत यानी नीयत का साफ होना और छठा रोजाना के कामों से दूर होना।
इज्तिमा या जलसा अमूमन सालों भर चलता रहता है। इसमें दुनिया भर के तब्लीगी जमात से जुड़े लोग शिरकत करते हैं। लाहौर के रायवंड में इज्तिमा का आयोजन अक्टूबर के महीने में होता है। यह जलसा तीन दिनों के लिए पाकिस्तान में होता है। बांग्लादेश का इज्तिमा साल के आखिर में आयोजित होता है। यह बांग्लादेश के कई अलग-अलग शहरों में कई दिनों तक जारी रहता है। इस इज्तिमा में पूरा बांग्लादेश उमड़ पड़ता है।
Lockdown: घर वापसी के लिए केरल की सड़कों पर उतरे प्रवासी कामगार, सरकार ने शिविरों में रहने के लिए किया राजी मध्य प्रदेश के भोपाल में इज्तिमा साल के आखिरी में यानी दिसंबर में होता है। पहले यह भोपाल की मस्जिद ताजुल मसाजिद में होता था। वहां जगह कम पड़ने लगी तो शहर के करीब में ईट खेड़ी नाम की जगह पर होने लगा। भारत में दिल्ली के निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद में तब्लीगी जमात का मरकज है। दुनिया भर में तब्लीगी जमात के बीच इस मरकज की हैसियत तीर्थस्थल जैसी है।