
मुंबई। अगर हमें अपने देश को आगे बढ़ाना है तो ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को वर्कफोर्स का हिस्सा बनना होगा। लेकिन बहुत सी महिलाएं दफ्तर या पारिवारिक परेशानियों के चलते काम छोड़ देती हैं। दरअसल, हमारी मानसिकता ही ऐसी है कि महिलाओं को दफ्तर के साथ परिवार की दोहरी जिम्मेदारी अकेले उठानी पड़ती है। फिर समान कार्य के लिए समान वेतन भी महिलाओं के लिए बड़ा मुद्दा है। देखा जाए तो दोनों ही परेशानियो΄ का हल हमारे परिवार और सामाजिक संरचना मे΄ छिपा हुआ है। हमें सबसे पहले घर पर महिलाओं को समान अधिकार देना होगा। उन्हें घर पर प्रोत्साहन मिलना चाहिए कि वे काम न छोड़ें और यह आश्वासन भी साथ में हो कि परिवार वाले उसकी मदद के लिए हमेशा आगे रहेंगे। यह केवल पति की बात नहीं है, उसे तो अपनी पत्नी पर गर्व महसूस करना ही है, घर की दूसरी महिलाएं भी यह समझें कि अगर उनकी बहू या बेटी काम पर जा रही है तो वे उसका सहयोग करें। महिलाएं भी यह सोचें कि हम किसी से कम नहीं हैं क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा सोच लिया तो वे सच में किसी से कम नहीं होंगी।
मेंटोर होना जरूरी
अगर महिलाओं को कार्यस्थल पर अनुभवी मेंटोर मिले तो वे काफी आगे बढ़ सकती हैं। मेंटोर के जरिए वे काम में आने वाली परेशानियों से लेकर मानसिक और व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझा सकती हैं। जो काम करो, उसे ऐसा करो कि आपसे बेहतर तो उसे कोई कर ही नहीं सकता। जो भी करो, दिल लगा कर करो। लोग अपने आप आपको तवज्जो देने लगेंगे।
लोगों ने सोचा था मैं टाइमपास करने के लिए आई हूं
जब मैंने वेलस्पन में काम करना शुरू किया तो सबने सोचा कि चेयरमैन की पत्नी हैं, टाइमपास करने आई हैं। शुरुआत में किसी ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया। टेक्सटाइल का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं सबसे ज्यादा होती है΄ लेकिन इस इंडस्ट्री में महिलाएं बहुत कम हैं। मैं एक महिला होने के नाते अपने ग्राहकों की, जो कि ज्यादातर महिलाएं ही होती हैं, का मनोविज्ञान अच्छी तरह से समझती थी। मैंने अपने आत्मविश्वास के बलबूते पर इस इंडस्ट्री में बदलाव किया और वही कंपनी को सफलता की नई ऊंचाइयों पर लेकर जा रहा है।
Published on:
17 Jan 2021 10:27 am
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