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कोरोना जांच: एंटीजन के बजाय RT-PCR टेस्ट है डॉक्टरों की पहली पसंद, क्यों आती है फॉल्स पाजिटिव या निगेटिव रिपोर्ट

कोरोना संक्रमण की जांच रिपोर्ट को लेकर भी समय-समय पर सवाल खड़े होते रहे हैं। इससे लोग शुरुआती दौर में उलझन में रहते हैं और जब तक कुछ पता चलता, पीडि़त व्यक्ति की मौत हो चुकी होती है।  

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Ashutosh Pathak

Jun 07, 2021

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नई दिल्ली।

भारत कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण की दूसरी लहर का कहर झेल रहा है। अच्छी खबर यह है कि कोरोना संक्रमण के नए केस अब कम हुए और रिकवरी रेट बढ़ी है। हालांकि, मौतों का आंकड़ा अब भी रोज करीब ढाई हजार रहता है। बीते करीब डेढ़ साल के कोरोना महामारी के दौर में देश में लगभग साढ़े तीन लाख मौतें हो चुकी हैं। वहीं, करोड़ों लोग इसकी चपेट में आए।

इस बीच, कोरोना संक्रमण की जांच रिपोर्ट को लेकर भी समय-समय पर सवाल खड़े होते रहे हैं। इससे लोग शुरुआती दौर में उलझन में रहते हैं और जब तक कुछ पता चलता, पीडि़त व्यक्ति की मौत हो चुकी होती है। दरअसल, हाल ही में आस्ट्रेलिया के मेलबर्न से जुड़े कोरोना संक्रमण के दो मामलों को बाद में फॉल्स पॉजिटिव रिपोर्ट में डाल दिया गया। यही नहीं, इसे सरकारी आंकड़ों से भी हटा दिया गया।

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विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना महामारी की जांच करने का सबसे सटीक तरीका आरटी-पीसीआर (रियल टाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलिमरेज चेन रिएक्शन) टेस्ट है। उनके मुताबिक, यदि किसी को कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि रिपोर्ट निगेटिव आएगी और जो लोग वायरस से संक्रमित हैं, उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी। वैसे विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि कुछ केस अपवाद हो सकते हैं। ऐसे में संक्रमण नहीं होने पर भी कुछ लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाती है। इसे फॉल्स पॉजिटिव रिपोर्ट कहते हैं। वहीं, कुछ लोगों को संक्रमण होने के बाद भी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आती है और इसे फॉल्स निगेटिव कहते हैं।

कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए दो तरह की जांच का प्रावधान है। पहला, आरटी-पीसीआर जांच और दूसरी एंटीजन टेस्ट। डॉक्टर आरटी-पीसीआर टेस्ट को सबसे अच्छा मानते हैं। आरटी-पीसीआर टेस्ट में नाक या गले से स्वैब का नमूना लिया जाता है। इस स्वैब को आगे की जांच के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है।

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आरटी-पीसीआर टेस्ट के तहत यह देखने वाली बात होगी कि फॉल्स पॉजिटिव या फॉल्स निगेेटिव रिपोर्ट का प्रतिशत कितना है। आंकड़ों पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि फॉल्स पॉजिटिव की दर शून्य से करीब साढ़े सोलह प्रतिशत है, जबकि फॉल्स निगेटिव रिपोर्ट की दर 1.8 प्रतिशत से 5.8 प्रतिशत तक है।

अब ज्यादातर मामलों में सटीक रिपोर्ट आती है। यानी संक्रमण है तो पॉजिटिव और नहीं है तो निगेटिव। मगर कुछ मामलों में रिपोर्ट फॉल्स पॉजिटिव भी आ जाती है। इसकी वजह है लेबोरेट्री एरर ऑर ऑफ टारगेट रिएक्शन। इसका मतलब है जांच किसी ऐसी चीज के साथ क्रॉस रिएक्शन करता है, जो कोरोना वायरस यानी एसएआरएस-सीओवी-2 नहीं है। लैब में रिपोर्ट भरने में गलती, गलत नमूने का परीक्षण किया जाना या फिर ऐसा कोई व्यक्ति जिसे कोरोना संक्रमण हुआ है और वह ठीक हो गया है, तो वह जांच रिपोर्ट फॉल्स पॉजिटिव आ सकती है।