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जम्मू-कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश, कहा- मनमाने ढंग से नहीं लगाई जा सकती इंटरनेट पर पाबंदी

धारा 144 लगाने पर भी दिखाई सख्ती
सभी पाबंदियां सार्वजनिक करे सरकार
सात दिनों में समीक्षा रिपोर्ट देने को कहा

नई दिल्लीJan 11, 2020 / 10:58 am

Navyavesh Navrahi

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जम्मू-कश्मीर से पिछले साल 5 अगस्त को आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। इसके बाद पैदा हुए हालात के मद्देनजर केंद्र सरकार ने दोनों प्रदेशों में कई तरह की पाबंदियां लगाईं। इनके खिलाफ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। इन पर आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) अहम आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने घाटी में इंटरनेट पर लगाई गई पाबंदी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर कड़ा आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की बैंच ने इसकी तत्काल समीक्षा करने के आदेश के साथ कहा कि- इंटरनेट अभिव्यक्ति की आजादी का भी जरिया है। यह संविधान के आर्टिकल 19 के तहत आता है। इंटरनेट पर अनिश्चित काल के लिए रोक नहीं लगाई जा सकती। इसे मनमाने ढंग से लागू नहीं किया जा सकता।
बैंच ने जम्मू-कश्मीर में जारी सभी पाबंदियों की 7 दिनों के अंदर समीक्षा करके रिपोर्ट देने का सख्त आदेश दिया है।

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धारा 144 पर भी सख्ती
जम्मू-कश्मीर में धारा 144 लगाए जाने पर बैंच ने कहा कि मजिस्ट्रेट को धारा 144 के तहत पाबंदियों के आदेश देते समय नागरिकों की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरे की अनुपातिका देखकर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि बार-बार एक ही तरह के आदेश जारी करना भी कानून का उल्लंघन है। इस पर सख्त आदेश देते हुए अदालत ने कहा कि- जम्मू कश्मीर में धारा 144 लगाने के फैसले को सरकार पब्लिक करे। इस बात का उल्लेख भी किया कि चाहे तो प्रभावित व्यक्ति उसे चुनौती दे सकता है।
जहां दुरुपयोग कम, वहां शुरू हो इंटरनेट सेवा

बैंच ने अपने आदेश में कहा कि- वर्तमान में व्यापार पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर है। इसलिए जिन जगहों पर इंटरनेट का दुरुपयोग कम है, वहां सरकारी और स्थानीय निकाय में इंटरनेट की सेवा शुरू हो, ताकि व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित ना हों।
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इंटरनेट अभिव्यक्ति का जरिया

अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि- जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध की तत्काल प्रभाव से समीक्षा की जाए। यह अभिव्यक्ति की आजादी का जरिया है और संविधान के आर्टिकल 19 के तहत आता है।
इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता

तीन जजों की बैंच ने कहा कि- इंटरनेट पर लगी रोक क समय-समच पर समीक्षा होनी चाहिए। इस पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। इंटरनेट और बुनियादी स्वतंत्रता के निलंबन को मनमाने ढंग से नहीं चलाया जा सकता।
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सरकार का दावा

गौर हो, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खतम करने के बाद केंद्र सरकार ने दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं। हालांकि धारा 144 पर केंद्र सरकार का दावा है कि कई जगहों से इसे हटा दिया गया है। केवल कुछ ही जगहों पर यह प्रतिबंध जारी है।
सिर्फ ब्रॉडबैंड से ही हा रहा संपर्क

बता दें, पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करके उसे दो केंद शासित राज्यों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था। तब से घाटी में इंटरनेट सेवा बंद है। इस दौरान केवल ब्रॉडबैंड से ही संपर्क कायम था। सरकार ने लैंडलाइन फोन और पोस्टपेड मोबाइल सेवा भी हाल में ही शुरू की है।

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