बनाने वाले ‘निशब्दम’ ( Nishabdham movie ) को हॉरर फिल्म बता रहे हैं, जबकि यह उतनी ही ‘हॉरिबल’ है, जितनी इससे पहले की दो भारतीय फिल्में रही हैं। किरदार उखड़े-उखड़े-से हैं, पटकथा में कई झोल हैं और घटनाएं इतनी बोझिल हैं कि देखने वालों का सब्र टूटने लगता है। निर्देशक हेमंत मधुकर अपनी पिछली हिन्दी फिल्मों ‘ए फ्लैट’ (2010) और ‘मुम्बई 125 किमी’ (2014) में भी रहस्य-रोमांच का माहौल रचने में नाकाम रहे थे। ‘निशब्दम’ में वे फिर निराश करते हैं। फिल्म भावनाओं और गहराई से काफी दूर खड़ी लगती है। शायद उन्हें इल्म हो गया था कि ‘हश’ के किस्से को वे भारतीय माहौल नहीं दे पाएंगे। इसलिए उन्होंने सिएटल (अमरीका) पहुंचकर यह किस्सा फिल्माया। भूगोल बदलने से किसी कमजोर फिल्म में ज्यादा रंग नहीं भरे जा सकते, यह ‘निशब्दम’ देखकर साबित हो गया।
कई जगह यह फिल्म सत्तर और अस्सी के दशक की उन हॉरर फिल्मों की याद दिलाती है, जो रामसे बंधु बनाया करते थे। उनकी फिल्में तर्कों को ताक में रखकर डराने की कोशिश में कई बार हास्यास्पद हो जाती थीं। ‘निशब्दम’ में भी कई घटनाएं ऐसी हैं, जो गले नहीं उतरतीं। मसलन नायिका उस सूने मकान में एक दुर्लभ पेंटिंग लेने अकेली क्यों जाती है, जहां कई साल पहले एक दम्पती की हत्या हो चुकी है।
फिल्म में अनुष्का शेट्टी ( Anushka Shetty ) ने मूक-बधिर पेंटर का किरदार अदा किया है। उनके साथ सुनसान इलाके के मकान में वही सब होता है, जो ‘हश’ की नायिका (केट सीगल) के साथ हुआ था। ‘बाहुबली’ में अनुष्का ने ठीक-ठाक काम किया था, लेकिन ‘निशब्दम’ में उनके चेहरे पर पीड़ा और परेशानी के भाव कहीं नजर नहीं आए, जो किरदार के हिसाब से जरूरी थे। उनके मंगेतर के किरदार में माधवन ( R Madhavan ) का काम जरूर अच्छा है। पुलिस अफसर बने हॉलीवुड के अभिनेता माइकल मैडसन (किल बिल, रेजर्वोर डॉग्स) सिर्फ खानापूर्ति के लिए हैं। उनकी डबिंग भी हास्यास्पद है।
शनील देव की फोटोग्राफी ‘निशब्दम’ का सबसे उजला पहलू है। उन्होंने सिएटल के खूबसूरत नजारे सलीके से कैद किए हैं। लेकिन पूरी फिल्म के नक्शे को देखते हुए बात वही है- ‘ये एक अब्र (घटा) का टुकड़ा कहां-कहां बरसे/ तमाम दश्त (जंगल) ही प्यासा दिखाई देता है।’