खाद्य पदार्थों के नमूनों की जांच में यदि निम्न गुणवत्ता या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने की रिपोर्ट मिल भी जाए तो मिलावटखोर के खिलाफ कार्रवाई होना मुश्किल होता है। सामान्य तौर पर चिकित्सा विभाग के अधिकारी ऐसे प्रकरणों को एडीएम के समक्ष पेश करते हैं, जहां अधिकतम 50 हजार तक का जुर्माना लगाया जाता है। मिलावटियों के खिलाफ सख्त एवं कठोर कार्रवाई का प्रावधान नहीं होने से उनके हौसले बुलंद हैं। अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामाग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट करते हैं, जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं। सामन्यात: दैनिक उपभोग वाले खाद्य पदार्थ जैसे दूध, छाछ, शहद, मसाले, घी, खाद्य तेल, चाय-कॉफी, मावा, आटा आदि में मिलावट की जाती है।
खाद्य सुरक्षा अधिकारी राजेश जांगीड़ के अनुसार इस वर्ष जनवरी से अब तक कुल 93 सैम्पल लिएग गए, जिनमें से 85 की लेबोरेट्री से जांच रिपोर्ट प्राप्त हुई है। इसमें 33 नमूने निम्न गुणवत्ता (स्वास्थ्य के लिए हानिकारक) के पाए गए हैं। इनमें से 15 प्रकरण न्यायालय में पेश कर दिए हैं, जिन पर निर्णय आना है।
इसी प्रकार गत वर्ष 130 नमूने लिए गए, जिनमें से 44 निम्न गुणवत्ता के पाए गए। मिलावटियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभागीय अधिकारियों ने सभी प्रकरण न्यायालय में पेश कर दिए।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार खाद्य अपमिश्रित आहार का उपयोग करने से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और शारीरिक विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है। खाद्य अपमिश्रण से आखों की रोशनी जाना, हृदय सम्बन्धित रोग, लीवर खराब होना, कुष्ठ रोग, आहार तंत्र के रोग, पक्षाघात व कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों हो सकती हैं।
चिकित्सा विभाग के खाद्य सुरक्षा अधिकारी खाद्य पदार्थों में मिलावट की नियमित जांच करते हैं। कई बार मैं खुद भी साथ गया हूं। जिला बड़ा है और अधिकारी एक है, इसलिए थोड़ी परेशानी रहती है। जांच में जो भी नमूने सब स्टैण्डर्ड के पाए जाते हैं, उनके खिलाफ सक्षम न्यायालय में प्रकरण पेश किए जाते हैं।
– डॉ. सुकुमार कश्यप, सीएमएचओ, नागौर