अल्प बरसात वाले क्षेत्र और अधिक गर्मी वाले स्थानों के अनुकूल इस पौधे या झाड़ी का राजस्थान में बहुत महत्व हैं। झाड़ी नुमा इस पौधे पर चैत्र मास में पुष्प आते हैं और नई पत्तियों का अंकुरण होता है। इसका महत्व गर्मी के मौसम में काफी बढ़ जाता है। इसकी जड़ों का जाल होता है, जो मरूस्थल की आंधियों में मृदा कटाव को रोकते हैं। फोगड़ा की टहनियों का उपयोग खेत की बाड़ बनाने, पत्तियों का उपयोग चारे और जड़ लुहार कोयले के रूप में उपयोग लेते हैं।
औषधीय उपयोग
इसकी पत्ती का लू, जड़ का गले की खरास, रस का अफीम उतारने और फूल का विष उतारने के रूप में औषधीय उपयोग होता है। इसका काढ़ा बनाकर मसूड़ों की सूजन की दवा के रूप में उपयोग किया जाता है।
आधुनिक खेती से होने लगा नष्ट
वर्तमान समय में यह वानस्पतिक पौधा अतिआधुनिक खेती के तरीकों के कारण विलुप्त होने लगा है। पहले आसानी से सभी जगह नजर आने वाला यह पौधा अब दिखाई नहीं देता है। खेती में उपयोग किए जाने वाले ट्रैक्टर और अन्य साधनों से इसकी जड़ जमीन से निकालकर फेंक दी जाती है।