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थानों में नफरी की तंगी और बढ़ी, गिने-चुने डीओ को लगातार देनी पड़ रही ड्यूटी

आपराधिक मामलों के अनुसंधान की रीढ़ कहे जाने वाले एएसआई व हैड कांस्टेबल थानों में और कम हो गए हैं। प्रमोशन के लिए परीक्षा व ट्रेनिंग की उलझन कहें या फिर बदहाल व्यवस्था।

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प्रमोशन की उलझन या फिर तबादलों की गड़बड़ी से थाने हुए खाली

किसी थाने में दो तो किसी में तीन ही बचे डीओ

ग्राउण्ड रिपोर्ट

नागौर. आपराधिक मामलों के अनुसंधान की रीढ़ कहे जाने वाले एएसआई व हैड कांस्टेबल थानों में और कम हो गए हैं। प्रमोशन के लिए परीक्षा व ट्रेनिंग की उलझन कहें या फिर बदहाल व्यवस्था। कई थानों में ड्यूटी अफसर (डीओ) दो-तीन रहे हैं, जो लगातार ड्यूटी कर रहे हैं पर अन्य काम प्रभावित हो रहा है। हालत यह है कि अवकाश तक मिलना मुश्किल हो गया है। किसी मामले का अनुसंधान या आरोपी को दूर-दराज से पकड़कर लाने जितना जाब्ता/हौसला गायब सा हो चला है।

सूत्रों के अनुसार तकरीबन छह माह पहले सात-आठ साल से रूकी पदोन्नति की राह खुली। कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल तो हैड कांस्टेबल से एएसआई पद पर पदोन्नति की परीक्षा/इंटरव्यू भी हुए। इस दौरान 57 हैड कांस्टेबल एएसआई बन गए। सोचा यह था कि एएसआई बढ़ गए अब थानों में आईओ (अनुसंधान अधिकारी) की तंगी दूर हो जाएगी। वो इसलिए कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में एएसआई के पद करीब 280 हैं, जबकि कार्यरत चालीस हैं।

जानकारी के अनुसार अधिकांश थाने बिना एएसआई के चल रहे हैं। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी यही सोच रहे थे कि इन 57 एएसआई को थाने में लगाने पर तंगी कम हो जाएगी। कोढ़ में खाज वाली कहावत यहां भी चरितार्थ हो रही है। ट्रेनिंग का शिड्यूल ऐसा बना कि इनमें से चालीस फीसदी तो अभी ट्रेनिंग के लिए गए ही नहीं। देर से गए ट्रेनिंग से लौटे नहीं। यही हाल कांस्टेबल से पदोन्नत हुए हैड कांस्टेबलों का है। एक बार की परीक्षा में 15-16 पदोन्नत हुए पर उसके बाद कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल की परीक्षा ही रुक गई। बताया यह जा रहा है कि वरिष्ठता को लेकर कुछ कांस्टेबलों ने जोधपुर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी, इसके चलते यह नहीं रूकी हुई है।

तबादलों ने बढ़ाई मुश्किल

सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों जारी तबादला सूची से यह मुश्किल ज्यादा बढ़ी है। कई थानों में जितने कार्मिक स्थानांतरित हुए उसके आधे भी यहां नहीं लौटे। कुछ तबादले के बाद लंबी छुट्टी पर चले गए तो कुछ राजनीतिक एप्रोच के चलते मनचाही जगह पर स्थानांतरित हो गए। महत्वपूर्ण थाने तो सामान्य हो गए और सामान्य थाने बदहाल।

आ रही है परेशानी

अब आलम यह है कि डीओ हैड कांस्टेबल अथवा इससे ऊपर के अधिकारी होते हैं। अब कई थानों में तो एएसआई है ही नहीं, एसआई प्रभारी बने हैं। हैड कांस्टेबल भी गिने-चुने दो या तीन। ऐसे में अदालत, अनुसंधान समेत अन्य कामकाज प्रभावित हो रहा है। कई जगह तो हर दूसरे दिन डीओ बनना पड़ रहा है। ऐसे मामले भी देखे गए जहां दो-दो दिन तक हैड कांस्टेबल/एसआई ड्यूटी पर रहे।

अनुसंधान समय पर कैसे हो पूरा...

नागौर (डीडवाना-कुचामन) में एक अनुमान के मुताबिक हजार की आबादी पर एक पुलिसकर्मी तक नहीं है। यहां आबादी करीब 38 लाख से अधिक है। कुल पुलिसकर्मियों की संख्या 22 सौ के आसपास है। पिछले दिनों करीब सौ कांस्टेबल आए हैं, वो अभी प्रशिक्षण पर हैं। एएसआई के स्वीकृत पद 280 हैं पर कार्यरत है चालीस। करीब 65 फीसदी से भी अधिक एएसआई के पद रिक्त हैं , जबकि अनुसंधान में एएसआई की कड़ी को सबसे मजबूत माना जाता है। यही नहीं सीआई/एसआई के पद भी खाली पड़े हैं। हैड कांस्टेबल के भी पद रिक्त हैं। ऐसे में किसी भी मामले का अनुसंधान समय पर कैसे पूरा हो।

लम्बित जांच बड़ा सिरदर्द

लम्बित जांच पुलिस के लिए बड़ा सिरदर्द, ठगी-धोखाधड़ी हो या चोरी/नकबजनी और हत्या या फिर बलात्कार के अनेक मामलों में अनुसंधान की रफ्तार काफी धीमी रहती है। अनुसंधान का ज्यादातर काम हैड कांस्टेबल/एएसआई के जिम्मे रहता है। उस पर आए दिन की डीओ ड्यूटी, कोर्ट-कचहरी का काम तो जनता से जुड़ी वारदात, राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम की जवाबदेही ही नहीं चुनाव समेत अन्य पाबंदी के काम। ऐसे में चोरी/नकबजनी/लूट ही नहीं हत्या समेत कई बड़ी वारदात के आरोपी तक पकड़ में नहीं आते ।

इनका कहना

ट्रेनिंग पूरी करने वाले एएसआई को जल्द थानों में लगाया जाएगा। अभी कुछ नागौर से डीडवाना स्थानांतरित किए गए हैं, जल्द ही सारी व्यवस्था सुचारू हो जाएगी। प्रमोशन के लिए परीक्षा व ट्रेनिंग के कारण थोड़ी स्टाफ की कमी दिख रही है।

-नारायण टोगस, एसपी, नागौर।