जिले में टीबी मरीजों की संख्या में हो रही वृद्धि के पीछे कई अन्य कारण भी हैं, जिनमें टीबी मरीज को दवा देने से पहले निजी अस्पताल को उसका आधार कार्ड नम्बर लेना जरूरी है। दवा दुकानदार को भी पाबंद किया गया है कि वह डॉक्टर की पर्ची देखकर मरीज से जुड़ी पूरी जानकारी अपने रजिस्टर में संधारित करेगा। दवा दुकानदार हर महीने ड्रग इंस्पेक्टर के माध्यम टीबी विभाग को उनकी सूचना देंगे। जानकारी छिपाने पर दुकान के केमिस्ट व डॉक्टर को छह माह की जेल का प्रावधान किया गया है।
नागौर में जिला मुख्यालय सहित डीडवाना में सीबी नेट मशीन लगाई गई है, जिसकी सहायता से कफ की जांच हाथों हाथ हो जाती है और यह पता चल जाता है कि मरीज को किस केटेगरी की टीबी है, उसी के अनुरूप दवा शुरू कर दी जाती है, जबकि पहले कफ की जांच के लिए नमूने अजमेर भेजने पड़ते थे, जिसकी जांच आने में ही चार से पांच महीने लग जाते थे और उपचार शुरू करने में छह महीने लग जाते थे। नागौर में स्थापित सीबी नेट मशीन से वर्ष 2018 में 481 जांच की गई, जबकि वर्ष 2017 में 1154 तथा वर्ष 2018 में 2090 लोगों की जांच कर उन्हें उपचार दिया गया। यह आंकड़े बताते हैं कि जांच भी हर साल बढ़ती गई।
जिले के टीबी मरीजों को बेहतर उपचार दिया जा रहा है। इसके लिए तीन साल पहले जिला मुख्यालय पर करीब 60 लाख रुपए की आधुनिक सीबी नेट मशीन स्थापित की गई, जिससे मरीजों के कफ की हाथों-हाथ जांच की जाती है। जांच के बाद यह पता चल जाता है कि मरीज को किस केटेगरी की टीबी है और कौनसा इलाज शुरू करना है। सीबी नेट मशीन लगाने के बाद काफी सुधार आया है और हाल ही डीडवाना में भी यह मशीन स्थापित कर दी गई है। साथ ही मरीजों को हर महीने पोषण भत्ता के रूप में 500 रुपए दिए जा रहे हैं।
– डॉ. श्रवण राव, प्रभारी, जिला क्षय निवारण केन्द्र, नागौर