script‘पैरों में चप्पल, ढीली शर्ट-पैंट और बालों पर फैली सफेदी’ यही है चंपई सोरेन की पहचान, जानें खेतों में हल चलाने से लेकर सीएम पद का सफर | Champai Soren, famous as Jharkhand Tiger, lives a very simple life. | Patrika News
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‘पैरों में चप्पल, ढीली शर्ट-पैंट और बालों पर फैली सफेदी’ यही है चंपई सोरेन की पहचान, जानें खेतों में हल चलाने से लेकर सीएम पद का सफर

Champai Soren Lifestyle: झारखंड टाइगर के नाम से मशहूर चंपई सोरेन बेहद सादगी भरा जीवन जीते हैं। इस बात का अंदाजा इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 6 बार विधायक रहने के बाद भी आज भी सरायकेला के अपने गांव के मकान में रहते हैं।

Feb 05, 2024 / 12:21 pm

Akash Sharma

Champai Soren Lifestyle

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झारखंड टाइगर के नाम से मशहूर चंपई सोरेन बेहद सादगी भरा जीवन जीते हैं। इस बात का अंदाजा इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 6 बार विधायक रहने के बाद भी आज भी सरायकेला के अपने गांव के मकान में रहते हैं। चंपई सोरेन ‘झारखंड टाइगर’ के रूप में इतने मशहूर हैं कि जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन उन्हें चंपई बाबू कहकर पुकारते हैं। राज्य में उनकी लोकप्रियता और शिबू सोरेन परिवार से निकटता के कारण ही जेएमएम के अंदर और सहयोगी दल कांग्रेस-आरजेडी विधायकों को भी सीएम के लिए चंपई सोरेन के नाम पर कोई आपत्ति नहीं हुई।

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पिता के साथ खेतों में हल चलाते थे

चंपई सोरेन का जन्म 1956 में सरायकेला के जिलिंगगोड़ा में सेमल सोरेन और माधव सोरेन घर पर बड़े पुत्र के रूप में हुआ। इनके तीन छोटे भाइ और एक बहन थी। ये मैट्रिक पास हैं। मानको सोरेन से इनकी शादी हुई और इनके चार बेटे और तीन बेटियां हैं। एक सामान्य किसान परिवार के सदस्य की तरह पैरों में चप्पल, ढीली शर्ट-पैंट और सफेद बाल ही चंपई सोरेन की पहचान हैं। चंपई सोरेन अपने पिता सेमल सोरेन के साथ खेतों में हल चलाने का काम भी किया करते थे। उनके परिवार की आजीविका खेती पर ही निर्भर थी। इनके पिता सेमल सोरेन का निधन 101 साल की उम्र में 2020 में हो गया था।

ऐसी है चंपई सोरेन की दिनचर्या

चंपई सोरेन सुबह जल्द उठते हैं इसके बाद वे योगाभ्यास करते हैं। सुबह आठ बजे वे अपने घर पर लोगो से मिलते हैं और उनकी समस्या सुनते हैं। 11 बजे तक घर से निकल कर करनडीह चौक पर जाकरअपने कार्यकर्ता से मिलते हैं। पूरे दिन क्षेत्र का भ्रमण करते हैं। चंपई सोरेन के राजनीति करियर की शुरुआत करनडीह के इमली चौक से हुई। 80 के दशक में चौक के नीचे जेएमएम का कार्यालय था। यही पर चंपई सोरेन का ऑफिस भी था। इसी ऑफिस में आदिवासी-मूलवासी अपनी-अपनी फरियादें लेकर पहुंचते थे। चंपई सोरेन उनकी समस्या सुनकर उनका हल निकालते थे। चंपई सोरेन आज भी आदित्यपुर स्थित इमली गाछ चौक स्थित झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यालय जाते हैं। वहा जाकर लोगों की समस्या सुनकर उनका समाधान करते हैं।

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खुली जीप थी झारखंड टाइगर की पहचान

झारखंड आंदोलन के दौरान चंपई सोरेन अपने साथियों के साथ खुली जीप में घूमा करते थे। इस जीप को चंपई सोरेन के करीबी और बारीगोड़ा निवासी शिशिर गोप ने वर्ष 1986 में एक लाख 1 हजार रुपये में खरीदा था। यह जीप झारखंड टाइगर की पहचान बन गई। शिशिर बताते हैं कि जब जीप में डीजल भराने के पैसे नहीं होते थे, तब चंदा कर 20-25 रुपये का इंतजाम किया जाता था।

हेमंत सोरेन की सरकार मे परिवहन मंत्री थे चंपई सोरेन

बता दें कि चंपई सोरेन हेमंत सोरेन की सरकार में परिवहन मंत्री थे। फिलहाल 68 वर्षीय चंपई कोल्हान प्रमंडल के सरायकेला विधानसभा क्षेत्र के विधायक थे। जानकारी के अनुसार, चंपई सोरेन 8 सितंबर 1980 को गुवा गोलीकांड के बाद चंपई सोरेन की शिबू सोरेन से निकटता बढ़ गई। शिबू सोरेन चाईबासा आकर सर्किट हाउस में रुकते थे। यहां से ही शिबू सोरेन अपने करीबी नेता शैलेंद्र महतो के साथ करनीडीह होकर सोमाय झोपड़ी जाते थे। चंपई सोरेन उस समय करनडीह में ही रहते थे। वह शिबू सोरेन से मिलने आते थे। इसी के चलते चंपई सोरेन और शिबू सोरेन के बीच नजदीकियां बढ़ती चली गई।

विवादों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं

चंपई सोरेन का विवादो से कोई नाता नही रहा है। सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष भी इनके खिलाफ बयान देने से बचते हैं। चंपई सोरेन भी बिना किसी आधार पर बयानबाजी नही करते। इनको राज्य में ज्यादातर लोग पसंद करते हैं।
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