scriptGround Report : सियासी मझधार में फंस गई SP और कांग्रेस, सरयू से संगम तक BJP की दोहरी मार | Ground Report: SP and Congress stuck in political turmoil, BJP's double blow from Saryu to Sangam in Doab | Patrika News
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Ground Report : सियासी मझधार में फंस गई SP और कांग्रेस, सरयू से संगम तक BJP की दोहरी मार

Ground Report : प्रत्याशियों का सही चयन ही सपा-कांग्रेस के लिए बड़ा अवसर पैदा कर रहे हैं। वहीं भाजपा इस मामले में यहां कमतर साबित हुई है। प्रयागराज से आनंद मणि त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीJun 03, 2024 / 01:38 pm

Shaitan Prajapat

Ground Report : गोमती के कछार लखनऊ से निकल कर रायबरेली होते हुए जब हम दोआब के क्षेत्र इलाहाबाद पहुंचते हैं तो राजनीति का ताप और तासीर अलग हो जाते हैं। जाति, बाहुबल, साजिश और छल सब राजनीति की थाली में एकसार हो जाते हैं। जातीय गणित के साथ बाहुबल की सियासत यहां आम है और साजिश नसों में गंगा के पानी से भी तेज दौड़ती है। पूर्वांचल व बुंदेलखंड के इस अंचल की राजनीति ही दोहरी है। यहां गोमती कब सरयू के करीब होगी और कब गंगा के, कोई कह नहीं सकता है।
यही हाल इस क्षेत्र की राजनीति का भी है। कौशाम्बी से कैसरगंज तक समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ती तो नजर आई पर रायबरेली और अमेठी छोड़ पांचवें चरण में कहीं भी पॉवर पंच नजर नहीं आया। छठवें चरण की बात करें तो लालगंज से डुमरियागंज तक भाजपा के लिए लड़ाई बिल्कुल आसान नहीं है। इस चरण की सीटों के लिए सपा ने ऐसे बेहतरीन उम्मीदवारों का चयन किया जो भाजपा को कड़ी टक्कर देते रहे हैं।
प्रत्याशियों का सही चयन ही सपा-कांग्रेस के लिए बड़ा अवसर पैदा कर रहे हैं। वहीं भाजपा इस मामले में यहां कमतर साबित हुई है। यह अलग बात है कि इसके बावजूद मतदान के दिन लोग प्रत्याशियों को गालियां और वोट प्रधानमंत्री मोदी को देते नजर आए। मामला काफी करीबी है। इस चरण में हार-जीत का अंतर कम रहने वाला है। फिर चाहे बात बस्ती, डुमरियागंज की हो या संत कबीर नगर, अंबेडकरनगर की।
सरयू और संगम के बीच गोमती में मझधार बहुत है, जिससे पार्टियों को निकालने के लिए सभी को ताकतवर माझी की तलाश रही, फिर चाहे अतीक अहमद ही क्यों न हो? पानीदार राजनीति के लिए प्रसिद्ध रहे इस इलाके में पानी ऐसा सूखा कि आज भी हर जिले में एक-दो कुख्यात बाहुबली मिल जाएंगे, हालांकि योगी ने सफाई शुरू कर दी है। इससे भाजपा को बढ़त मिलती नजर आती है। वरना देश के प्रथम प्रधानमंत्री की सीट फूलपुर से कुख्यात अतीक अहमद भी संसद की देहरी तक पहुंचा। 2024 में उसके परिवार में कोई सदस्य वोट डालने भी नहीं पहुंचा।

रायबरेली और अमेठी में बंध गई कांग्रेस

कांग्रेस पांचवें चरण में रायबरेली और अमेठी में ही सिमट गई। अन्य सीटों पर ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया। भाजपा की रणनीति में कांग्रेस उलझ गई, यह कहना गलत नहीं होगा।

मोदी के साथ योगी भी

लखनऊ पहुंचते-पहुंचते भाजपा का पोस्टर बदल गया। अब अकेले नजर आए पीएम मोदी के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ भी दिखाई देने लगे। भाषण में योगी और उनके अनुशासित शासन का जिक्र होने लगा। अरविंद केजरीवाल के भाषण के बाद भाजपा के अंदरखाने हो रही सुगबुगाहट का भी इस कदम के साथ पटाक्षेप हो गया।

बसपा ने बदली रणनीति

7 मई को तीसरे चरण का चुनाव होते ही बसपा ने रणनीति बदल दी। तीन चरणों तक भाजपा का फायदा होता दिखाई दे रहा था, जो चौथे चरण में भी नहीं रुका। लेकिन इसके बाद बसपा ने भाजपा, सपा और कांग्रेस को डेंट करते हुए अपना स्टेक लेना शुरू किया। यहीं से सीटों की लड़ाई फंस गई। चौथे चरण तक लड़ाई दो दलों के बीच थी, पर पांचवें चरण से बसपा की चुनौती ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया। इसी कारण इन क्षेत्रों में चुनावी पंडित चित नजर आ रहे हैं।

गणित नहीं, केमिस्ट्री

लोकसभा चुनाव में भले ही बात गणित और संख्या की हो रही है पर सारा दारोमदार केमिस्ट्री पर टिका है। यूपी में योगी-मोदी जोड़ी की केमिस्ट्री अलग है, और अखिलेश-राहुल की अलग। इसमें राम-राशन और शासन-अनुशासन चुनावी खेल एक अलग स्तर पर ले जा रहे हैं।

इस बार नहीं फली बाहुबल की बेल

इस बार चुनाव में बाहुबल की एक अलग कारण से ही चर्चा हो रही है। कैसरगंज से बृजभूषण का टिकट काटने के साथ स्पष्ट संकेत दिया गया कि पार्टी ही बाहुबली है। भाजपा ने कौशाम्बी में उदयभान, सूरजभान और कपिलमुनि करवारिया का कारवां समेट दिया तो जौनपुर में धनंजय सिंह को भी एक घेर में ला दिया। भदोही से विजय मिश्रा भी सिमट चुके हैं। मजाल है कि इस चुनाव में किसी ने पटाखे भी बजाने की हिमाकत की हो। भाजपा ने ऐसी नकेल कसी कि सुरक्षा, मतदान का एक बड़ा फैक्टर बनकर उभरी।

पांचवां चरण (20 मई)

मोहनलालगंज (एससी), लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, जालौन (एससी), झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी (एससी), बाराबंकी (एससी), फैजाबाद, कैसरगंज, गोंडा।

छठा चरण (25 मई)

सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीर नगर, लालगंज (एससी), आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर (एससी), भदोही।

भाजपा और एनडीए
योगी और मोदी

पीएम मोदी इस चरण से सीएम योगी को आगे लेकर आए। इसके बाद कोई ऐसा मंच नहीं रहा, जहां से उन्होंने योगी की सुरक्षा नीति और सपा के अराजक राज की चर्चा न की हो। दोनों नेता यह संदेश देने में सफल रहे कि सरकार से ज्यादा बली अब कोई नहीं है।

जाति के मुकाबले धर्म

भाजपा ने जातीय राजनीति के बदले धर्म पर फोकस किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर अमित शर्मा कहते हैं कि यही रणनीति भाजपा को बढ़त दिला रही है। एक बात समझना जरूरी है कि राशन जैसी योजनाओं का तोड़ कोई भी नहीं निकाल पाया है। यह चुपचाप एक लंबी लकीर खींच रही है।

पैराशूट प्रत्याशी

भाजपा के लिए रिपीट और पैराशूट प्रत्याशी जोखिम भरे साबित हो सकते हैं। कई जगहों पर पूरी जिला और मंडल इकाई को दरकिनार कर चौंकाने वाले नाम प्रत्याशी बने हैं। यही वजह है कि कई जगह भाजपा के स्थानीय नेताओं ने विरोध नहीं किया, तो समर्थन भी नहीं किया।

सपा और कांग्रेस
मजबूत प्रत्याशियों का चयन

इस बार का चुनाव अगर जातीय गणित पर हुआ तो सपा का पलड़ा कई सीटों पर काफी भारी नजर आ रहा है। बुंदेलखंड से पूर्वांचल तक यादव और मुस्लिम के साथ अन्य कई जातियों का गठजोड़ बखूबी किया है।

जातीय समीकरण का पूरा खेल

सपा ने डुमरियागंज में कुशल तिवारी को टिकट देकर ब्राह्मण तो बस्ती में राम प्रसाद चौधरी को टिकट देकर कुर्मी वर्ग को साधा है। हर सीट पर यादव और मुस्लिम से इतर जाति पर फोकस किया है।

छवि नहीं सुधार पार अखिलेश

बहुत बेहतरीन जातीय गठजोड़ के बाद भी अखिलेश यादव आम जनता में यह संदेश देने में पीछे रह गए कि उनका राज अराजक नहीं था या आने वाले समय में गुंडई नहीं होगी। यहीं से भाजपा बहुत बढ़त ले रही है। बाकी कसर फायदे की योजनाओं ने पूरी कर दी है। अखिलेश और राहुल गांधी यह संदेश देने में नाकामयाब रहे कि उनके आने से यूपी में क्या बेहतर होगा।

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