सियालदह (साउथ) स्टेशन से लोकल ट्रेन से करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद जब इस खंड का आखिरी स्टेशन डायमंड हार्बर पहुंचा तो स्थानीय बाजार में सामान्य चहल-पहल दिखी। उमस भरी गर्मी के बीच डायमंड हार्बर मेन रोड के फुटपाथ पर रेहड़ी-खोमचे वाले (बंगाल में हॉकर) आम, लीची वगैरह बेचते दिखे। सिर्फ और सिर्फ अभिषेक बनर्जी के बड़े-बड़े पोस्टर और बैनर दिखे। स्टेशन के सामने चश्मा विक्रेता नीलमणि नस्कर से बात हुई। मेरे सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि भाजपा ने कमजोर प्रत्याशी को मैदान में उतारकर एक तरह से ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी को वॉकओवर देने की कोशिश की है। यदि दमदार प्रत्याशी होता तो बेहद दिलचस्प मुकाबला देखा जाता।
ई रिक्शा (बंगाल में टोटो) से कॉलेज की ओर रुख किया। ई रिक्शा चालक रहमत हुसैन से पूछने पर बताया कि यहां अभिषेक दादा के मुकाबले में कोई नजर नहीं आता है। कॉलेज के पास छात्र राना घोष ने बताया कि दादा और दीदी दोनों ने अपने अपने क्षेत्र में काम किया है। दीदी ने सडक़, अस्पताल, कॉलेज की स्थिति को सुधारा है तो पीएम मोदी के नेतृत्व में देश ने कई उपलब्धियां हासिल की है। पास से गुजर रहे कोचिंग पढ़ाने वाले निर्मल घोष से चुनावी चर्चा की तो वे बोले कि वोट बैंक की राजनीति से हमें निराशा हाथ लगी है। वैसे तो अभिषेक का तीसरी बार संसद में जाने का सफर आसान लग रहा है, पर उनकी राह में कुछ चुनौतियां भी हैं।
आईएसएफ उम्मीदवार के मैदान में उतरने से अल्पसंख्यक वोटों का बंटवारा हो सकता है। इससे तृणमूल को नुकसान हो सकता है। यदि मतदाताओं को पूरा मौका मिला तो वे खेला कर सकते हैं। रिवरसाइड पहुंचा तो वहां नदी की लहरों की तरह लोगों की भावनाएं उमड़ती दिखीं। बुजुर्ग मोहम्मद करीम ने कहा कि पेयजल और परिवहन के साधन की कमी है, पर यहां भाइपो (भतीजे) बाजी मारेंगे। वे ममता बनर्जी परिवार की विरासत की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पहले माकपा का किला अब तृणमूल का गढ़
डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र पहले माकपा का किला था, लेकिन 2009 में यहां के राजनीतिक हालात बदल गए। तृणमूल ने 2009 में यह सीट माकपा से छीन ली। फिर अभिषेक बनर्जी ने 2014 और 2019 में लगातार दो बार इस सीट से जीत हासिल की। अब वे विकास कार्य और लोक कल्याणकारी योजनाओं के सहारे तीसरी बार संसद पहुंचने की कोशिश में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर माकपा दूसरे स्थान पर रही, लेकिन 2019 में भाजपा ने दमदार प्रदर्शन कर दूसरे स्थान पर कब्जा जमाया। भाजपा को मोदी फैक्टर तो माकपा को अपने पार्टी संगठन पर भरोसा है। अल्पसंख्यक मतों के ध्रुवीकरण के जरिए आईएसएफ मुकाबले को बहुकोणीय बनाने की कोशिश में है।
डायमंड हार्बर मॉडल की चर्चा
अंग्रेजों के जमाने में बसाया गया डायमंड हार्बर कच्चे माल को यूरोप भेजे जाने का केंद्र हुआ करता था। अंग्रेजों ने यहां बंदरगाह का निर्माण कराया था। बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता था। अब ज्यादातर लोग कृषि कार्य पर निर्भर है। इलाके में कल-कारखाने की कमी है। युवा रोजगार की तलाश में महानगर और दूसरे प्रदेशों का रुख करते हैं। हालांकि डायमंड हार्बर मॉडल की चर्चा अक्सर होती रहती है। अभिषेक यहां बुजुर्गों को पेंशन समेत अन्य सुविधाओं के जरिए विकास के मामले में नंबर वन क्षेत्र बनाने का लक्ष्य रखते हैं।
क्षेत्र में सत्तारूढ़ पार्टी का दबदबा
18 लाख से ज्यादा मतदाता इस बार मतदान के पात्र हैं। डायमंड हार्बर के अंतर्गत 7 विधानसभा सीटें हैं जिनमें मटियाब्रुज, बजबज, महेशतला, विष्णपुर, सतगछिया, फलता और डायमंड हार्बर शामिल हैं। सभी पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है। मटियाब्रुज, बजबज, महेशतला, फलता, सतगछिया मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। 2011 की जनगणना के अनुसार क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी करीब 38 फीसदी थी। 12 वर्ष के बाद उनकी संख्या काफी बढ़ गई है। वे क्षेत्र में जीत-हार में निर्णायक स्थिति में नजर आ रहे हैं।