
Lok Sabha Elections 2024 : तीन दक्षिणी राज्यों का दौर पूरा हुआ तो कर्नाटक से सिंधु दुर्ग का रुख किया। यह महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में है जो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे और रामदास कदम जैसे बड़े नेताओं की राजनीतिक कर्मस्थली रही है। इसे शिवसेना का गढ़ भी माना जाता है। एक जमाने में राणे और कदम बालासाहेब ठाकरे के सेनापति थे, लेकिन आज राणे भाजपा तो कदम शिवसेना (शिंदे) के साथ खड़े होकर उद्धव ठाकरे को चुनौती दे रहे हैं। बीते तीन दशक में महाराष्ट्र की राजनीति कांग्रेस-एनसीपी और भाजपा-शिवसेना की जोर-आजमाइश का केन्द्र रही है। लेकिन बीते पांच सालों में यहां की राजनीति राजनीतिक गठबंधनों के बिखराव के दौर से गुजर रही है। सिंधदुर्ग से सावंत बाड़ी रोड के बीच 60 किलोमीटर की दूरी ऑटो से तय की। लोगों से बातचीत कर समझना चाहा कि आखिर इस बार मराठा राजनीति किस दिशा में जा रही है। मुंबई में व्यवसायी उमेश जाधव से मुलाकात हुई। इन दिनों अपने घर आए जाधव से राज्य की राजनीति पर चर्चा हुई तो छूटते ही बोले, इस बार यहां कौन जीतेगा, कौन हारेगा से अधिक उत्सुकता 'असली' को लेकर है।
बात समझ में नहीं आई तो पूछा 'ये असली' क्या है? जाधव ने समझाया, तीन दशक में यह पहला मौका है जब राज्य के दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों में 'असली' पर ठप्पा लगेगा। मतदाता इस बार भाजपा-कांग्रेस के भविष्य का फैसला तो करेंगे ही, तय ये भी करेंगे कि 'असली' शिवसेना और असली एनसीपी कौन है? जाधव ने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही शिंदे और पवार को मान्यता दे दी हो, लेकिन मतदाताओं की मान्यता भी मायने रखती है। सवाल पूछा, आपकी नजर में कौन है असली, जवाब आया, जमीन पर तो आज भी उद्धव और शरद के साथ ही कार्यकर्ता हैं। कोंकण इलाके में तमाम लोगों से हुई बातचीत का निचोड़ यही निकला कि यहां तो उद्धव का ही जोर है।
चार-पांच घंटे कोंकण इलाके में घूमने के बाद ट्रेन पकड़कर मुंबई की राह पकड़ी। अगले पूरे दिन मुंबई में दादर, परेल, निर्मल पार्क और मीरा रोड पर चक्कर लगाए। अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है और सभी दल गठजोड़ में व्यस्त हैं। एक-एक सीट को लेकर मुंबई से लेकर दिल्ली तक माथापच्ची चल रही है। चिंचपोकली में अशोक वाघमारे से मुलाकात हुई। वे ट्रेवल्स व्यवसाय से जुड़े हैं। बात 'असली' की चली तो बोले, लोग नरेन्द्र मोदी को पसंद करते है, लेकिन बाल ठाकरे को पसंद करने वाले अधिकांश लोग अब भी उद्धव के साथ हैं। एकनाथ शिंदे के साथ विधायक हैं तो उद्धव के साथ कार्यकर्ता। यही हालत पवार की एनसीपी को लेकर है। अधिकांश लोगों का मानना है कि अजीत पवार विधायक तोड़ सकते हैं, लेकिन कार्यकर्ता तो अब भी 'साहेब' (शरद) के ही साथ हैं। मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन की हर इलाके में चर्चा है, लेकिन इसका हल होता दिख नहीं रहा।
चर्चा कांग्रेस के प्रदर्शन की चली तो कोलाबा इलाके में नारियल पानी बेच रहे इकरामुद्दीन से बात हुई। मूलत: गुजरात में वलसाड़ा के रहने वाले इकरामुद्दीन का मानना है कि कांग्रेस का प्रदर्शन पिछली बार से आधा रहेगा। उनका ये भी मानना था कि कांग्रेस नेता किसी लालच में ही भाजपा में जा रहे हैं। कांग्रेस समर्थक रोहित कानेटकर का विश्वास था कि अगले सप्ताह राहुल गांधी की रैली होगी तो इससे माहौल बदलेगा। भाजपा में ऊपर से भले एकजुटता दिखाई देती है, लेकिन भीतरखाने खींचतान कम नहीं है।
प्रमोद महाजन-गोपीनाथ मुंडे समर्थक कार्यकर्ताओं को पूरा महत्व नहीं मिलने के साथ नितिन गडकरी का कद घटाए जाने की चर्चा भी खूब सुनने को मिली। बावजूद इन तथ्यों के यह तो मानना ही पड़ेगा कि प्रचार और चुनावी तैयारियों में भाजपा दूसरे दलों से काफी आगे निकली हुई है। सीटों के लिहाज से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य चुनाव के लिए धीरे-धीरे रंगत में आता दिख रहा है। यह बात जरूर है कि चुनावी माहौल फिलहाल पार्टी कार्यालयों की हलचल तक सिमटा नजर आ रहा है।
मतदाता परिवारवाद से त्रस्त
दो दशक पहले तक राज्य में चौथी पायदान पर रहने वाली भाजपा आज पहले पायदान पर खड़ी है। भाजपा की रणनीति शिवसेना और एनसीपी को कमजोर करके अपनी ताकत बढ़ाने की रही है। मीरा रोड पर रहने वाले निरंजन मोर का मानना है कि उद्धव ठाकरे से अलगाव के बावजूद भाजपा का प्रदर्शन पहले के मुकाबले सुधरने की उम्मीद है। तीन दशक पहले कुचामन (राजस्थान) से आकर यहां व्यवसाय कर रहे मोर का मानना है कि राज्य के मतदाता यहां नेताओं के परिवारवाद से त्रस्त हैं। कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी परिवार की पार्टी में तब्दील हो चुकी है। भाजपा में भी परिवारवाद का चलन बढ़ा है, फिर भी संतोष इस बात का है कि शीर्ष नेतृत्व पर परिवारवाद हावी नहीं है। मोर की राय है कि इस चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और उद्धव वाली शिवसेना के बीच ही मुकाबले के आसार हैं।
बिखराव के दौर से गुजर रही
कांगेस राज्य में लंबे समय तक सत्ता की बागडोर संभाल चुकी कांग्रेस इस समय बिखराव के दौर से गुजर रही है। पहले मिलिंद देवड़ा, फिर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और बाबा सिद्दीकी के कांग्रेस छोडऩे से पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल है। ऐसे वक्त में जब कांग्रेस को चुनावी तैयारियों की तरफ ध्यान देना चाहिए पूरी पार्टी राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' में लगी है। इस यात्रा का समापन चार दिन बाद मुंबई में होना है। सीटों के तालमेल को लेकर भी महाअगाड़ी गठबंधन में अभी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है।
लोकसभा चुनाव 2019
किस दल को कितनी सीटे मिली
बीजेपी - 23
शिवसेना - 18
कांग्रेस - 01
एनसीपी - 04
एआईएमआईएम - 01
निर्दलीय - 01
किस दल को कितने प्रतिशत मत मिले
एनसीपी - 16. 41
कांग्रेस - 16.41
एआईएमआईएम - 0.73
निर्दलीय - 3.72
Updated on:
13 Mar 2024 10:28 am
Published on:
13 Mar 2024 09:03 am
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