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Lok Sabha Elections 2024 : खानदान के लोगों ने छोड़ा साथ, सगे भाई ने भी सुनाई खरी-खरी, चाचा की पावरफुल चाल ने भतीजे पवार की बढ़ाई टेंशन

Lok Sabha Elections 2024 : चाचा की पार्टी एनसीपी पर कब्जा करने के बाद अजित पवार को अपने परिवार से ही लड़ाई लड़नी पड़ रही है। उनके प्रतिद्वंद्वियों ने भी उन्हें घेर रखा है। पढ़िए रामदिनेश यादव की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीMar 28, 2024 / 08:12 am

Shaitan Prajapat

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Lok Sabha Elections 2024 : राजनीति में अपने गुरु और चाचा शरद पवार को धक्का देकर आगे बढ़े अजित पवार को अब हर तरफ से झटका लग रहा है। एक तरफ उनके परिवार के सदस्य ही उन पर हमला बोल रहे हैं तो वहीं उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी पंख लग गए हैं। चाचा की पार्टी एनसीपी पर कब्जा करने के बाद अजित पवार को अपने परिवार से ही लड़ाई लड़नी पड़ रही है। उनके प्रतिद्वंद्वियों ने भी उन्हें घेर रखा है।

अजित पवार के भाई श्रीनिवास ने कहा कि शरद पवार ने उनके परिवार के लिए बहुत कुछ किया है और यह बात अजित पवार को नहीं भूलनी चाहिए। उम्र के इस पड़ाव पर जब शरद पवार को अजित पवार की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उसी समय वह भाग गए। चाचा ने उन्हें चार बार उपमुख्यमंत्री और 25 साल तक मंत्री बनाया। इतना सब करने के बावजूद ऐसे परोपकारी बुजुर्ग के बारे में बुरा बोलना किसी के लिए भी अनुचित है।

अजित के प्रतिद्वंद्वियों को ताकत उनके पावरफुल चाचा की चाल से मिल रही है। बारामती में अजित पवार को जहां शिवसेना शिंदे गुट के विजय शिवतारे से लगातार झटका मिल रहा है वहीं भाजपा में गए हर्षवर्धन पाटिल का परिवार भी उन्हें दबाने में जुटा है। पर अजित भी कम नहीं हैं। चाचा से सीखी हुई राजनीति का बखूबी इस्तेमाल कर शिवसेना शिंदे गुट व भाजपा के बीच बेहतर तालमेल बनाए हुए हैं।

शरद पवार को प्रदेश में मराठा वोट बैंक हमेशा मिलता रहा है। राज्य में एनसीपी के पुराने कार्यकर्ता अब भी शरद पवार के साथ रहना पसंद कर रहे हैं। पवार की राजनीति इमोशन की राजनीति भी मानी जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में बारिश में भीगकर भाषण देने वाले पवार ने बाजी पलट दी थी। सत्तापक्ष के भी कई नेताओं के साथ उनका अच्छा तालमेल है। ऐसे में चाचा-भतीजे की लड़ाई में एनसीपी के कार्यकर्ता चाचा की नई पार्टी एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के साथ रहना मुनासिब समझ रहे हैं। इस बार बारामती और शिरूर लोकसभा में अजित का खेल बिगड़ सकता है। भाजपा और एकनाथ शिंदे के साथ भी अजित पवार दांतों के बीच जीभ जैसे बने हुए हैं।

इस लोकसभा चुनाव में भाजपा अजित पवार को 4 सीटें देकर एक सीमित दायरे में रखना चाहती है तो एकनाथ शिंदे का भी यही हाल है। शिंदे भी अजित पवार की पकड़ वाली सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, बारामती में ही अजित पवार को टिकना मुश्किल लग रहा है। एक तरफ शिंदे गुट के नेता विजय शिवतारे उन्हें दिन में तारे दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा के नेता व पूर्व कांग्रेसी नेता हर्षवर्धन पाटिल भी पुरानी अदावत निकालने में लगे हैं। अजित को मुसीबत में डालने वाले ये दोनों नेता कभी शरद पवार के सान्निध्य में रह चुके हैं।

माना जा रहा है कि कई ऐसे भी नेता और विधायक हैं जो अजित पवार को कमजोर होता देख फिर से शरद पवार खेमे में लौट सकते हैं। ऐसे में अजित के लिए यह चुनाव ‘करो या मरो’ जैसा हो गया है। चाचा को झटका देने के लिए अजित ने शिरूर लोकसभा सीट से शिवसेना के पूर्व सांसद शिवाजीराव अधल राव पाटिल को मैदान में उतारा है। एक दिन पहले ही पाटिल ने एनसीपी अजित पवार गुट में प्रवेश किया। यहां से मौजूदा सांसद अमोल कोल्हे शरद पवार के करीबी हैं।

परिवार के ही 8 सदस्य कर चुके हैं आलोचना

खानदान से अजित पवार को साथ नहीं मिल रहा है। शरद पवार का साथ छोडऩे को लेकर सगे भाई श्रीनिवास पवार ने तो अजित को गद्दार तक कह दिया। चचेरी बहन सुप्रिया सुले और चचेरे भाइयों ने भी जमकर फटकार लगाई। परिवार से कुल 8 सदस्यों ने चाचा से बगावत के लिए अजित को खरी-खोटी सुनाई है। फिलहाल अजित के साथ पत्नी सुमित्रा और दोनों बेटे ही नजर आ रहे हैं।

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