
वन नेशन, वन राशन कार्ड, वन इलेक्शन की चर्चा के बीच सरकार अब वन नेशन, वन कैलेंडर यानी हिंदू पंचांग की अवधारणा पर आगे बढऩे जा रही है। इससे त्योहारों और व्रतों पर होने वाली छुट्टियां और उन्हें मनाने में आने वाली व्यावहारिक दिक्कतें दूर होने का दावा किया जा रहा है। एक रूप हिंदू पंचांग को बनाने की जिम्मेदारी केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय को सौंपी गई है। देश के अलग-अलग राÓयों में स्थापित केंद्रीय संस्थान के ज्योतिषाचार्यों ने एक साल की मेहनत से इस पंचांग को तैयार किया है। जल्द ही नई दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों इस पंचांग का विमोचन होगा।
तिथियों का भ्रम होगा दूर
ज्योतिषाचार्यों का कहना हैं,इस पंचांग के बाद तीज-त्योहार की तिथि को लेकर बनने वाला भ्रम दूर होगा। हिंदू पंचांग को देशभर की स्थितियों के आकलन के बाद नक्षत्र, योग, सूर्य और चंद्र गति के आधार पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने तैयार करने में बड़ी मेहनत की है।
तिथियों को लेकर उलझन क्यों
त्योहारों और व्रतों को लेकर भ्रम की स्थिति रहती है। कभी जन्माष्टमी दो दिन, कभी नवरात्रि नौ तो कभी आठ दिन की मनती है। तिथियों के उदय-अस्त के मान से कभी आठ तो कभी 10 दिन की नवरात्रि होती है। दीपावली की पूजा का समय भी अलग-अलग तय होते हैं। अब अमावस को लेकर तीसरे-चौथे साल विवाद की स्थितियां बन रही हैं। हालांकि असमजंस की स्थितियां पंचांगों और तिथि पत्रों के कारण ही नहीं होती। क्योंकि हिंदू धर्म में किसी भी त्योहार को उदया तिथि के हिसाब से मनाने की बात अक्सर लोग कहते हैं, लेकिन ये हर स्थिति में ठीक नहीं माना जाता। कुछ लोग त्योहार को काल व्यापिनी तिथि के आधार पर मनाने की बात करते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार कर्म, पूजा, व्रत, उत्सव, त्योहार उदया काल तिथि, मध्य व्यापिनी यानी मध्याह्न में जो तिथि हो, प्रदोष व्यापिनी तिथि यानी प्रदोष काल में जो तिथि, अद्र्ध व्यापिनी तिथि और निशीथ व्यापिनी तिथि यानी निशीथ काल में जो तिथि हो...में करने का विधान है। ऐसी मान्यता है।
राजा भोज के नाम से होगा प्रकाशन
संस्कृत विवि के निदेशक रमाकांत पांडे की मानें तो ज्योतिष की प्रमुख दो शाखाओं-सिद्धांत और फलित ज्योतिष के अधिगम के लिए प्रभावी और प्रायोगिक विधियों को माना जाता है। ज्योतिषाचार्य भारतीय ज्योतिष व्यावहारिक, वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। संस्थान में स्थानीय सूर्योदय के आधार पर गणितीय आकलन करभोजराज पंचांगम का प्रकाशन होता है। राष्ट्रीय पंचांग में तीज त्योहार पर बन रही भ्रम दूर करने का प्रयास किया है।
13 कैंपस निभाते हैं भूमिका
उत्तराखंड से आए प्रो. सुब्रमण्यम ने बताया, संस्कृत विवि के देश में 13 कैंपस हैं। इस पंचांग को बनाने में सभी की भूमिका है। राजा भोज खुद ज्योतिषी थे, इसलिए उनके नाम पर इस कैलेंडर का प्रकाशन होता है। विवि में हर डाटा का मिलान कर गणना होती है। डाटा के आधार पर घड़ी, पल, नक्षत्र, तिथि, स्टैंडर्ड टाइम, कर्ण, मद्रा, मुहूर्त की गणना होती है। गणना कार्य पूरे साल चलता रहता है।
प्राचीन वेधशाला कोलकाता से लेते हैं डेटा
पंचांग को अंतिम रूप देने के लिए भोपाल आए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय कर्नाटक के डायरेक्टर प्रो. हंसधर झा ने बताया कि भारतीय संस्कृति का मूल आधार पंचांग हंै। भारत के समयानुसार प्राचीन खगोलीय गणित के आधार पर इसे तैयार किया जाता है। इसका डेटा प्राचीन वेधशाला कोलकाता से लिया जाता है। जिसमें यह देखा जाता है कि सूर्य और चंद्र किस ग्रह में स्थित हैं। पंचांग को तैयार करते समय हम जिस शहर में हैं उसके समय का भी ध्यान रखा जाता है। क्योंकि राÓय के हिसाब से समय और ग्रह में भी परिवर्तन हो जाता है।
इनका है योगदान
प्रो. सुब्रमण्यम, प्रो. हंसधर झा, डॉ. रजनी, डॉ. उमेश कुमार पांडे, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. आशीष चौधरी, डॉ. भूपेंद्र कुमार पांडे और डॉ. रविंद्र प्रसाद।
Published on:
11 Feb 2024 08:55 am
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