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Operation Mahadev: मुठभेड़ से पहले आतंकियों को आ रही थी झपकी, इंडियन आर्मी ने परमानेंट सुला दिया, ऐसे मिला था दहशतगर्दों का सुराग

Operation Mahadev: 11 जुलाई को सेना को बैसरन घाटी में चीनी सैटेलाइट फोन के एक्टिव होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद बैसरन घाटी में सुरक्षाबलों ने सर्च अभियान तेज किया। बीते सोमवार को सर्चिंग के दौरान जब संयोग से 4 पैरा के जवान आतंकियों के नजदीक पहुंचे तो वह झपकी ले रहे थे।

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Jul 29, 2025
ऑपरेशन महादेव (फोटो- चिनार कॉर्प्स X)

Operation Mahadev: भारतीय सेना (Indian Army), सीआरपीएफ (CRPF) और जम्मू-कश्मीर पुलिस (J&K Police) ने ऑपरेशन महादेव के तहत श्रीनगर (Srinagar) के लिडवास इलाके में आतंकवाद विरोधी अभियान चलाकर 3 आतंकियों को मार गिराया। इनमें से एक हाशिम मूसा (Hasim Musa) भी है, जो पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam terror attack) का मास्टरमाइंड था। सेना की चिनार कॉर्प्स की अगुवाई में चलाए गए इस ऑपरेशन को बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है।

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11 जुलाई को एक्टिव मिला था चीनी सैटेलाइट फोन

11 जुलाई को सेना को बैसरन घाटी में चीनी सैटेलाइट फोन के एक्टिव होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस, CRPF और सेना ने सर्च अभियान शुरू किया। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी और खुफिया इनपुट के आधार पर उनके इलाके में होने का पता चला।

26 जुलाई को सेना को नई कम्युनिकेशन एक्टिविटी का पता चला। इसके बाद इलाके में सर्च अभियान तेज कर दिया गया। सर्च अभियान के दौरान सुरक्षा बलों को पता चला कि कम्युनिकेशन डिवाइस का यूजर पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ा था। इसके बाद 28 जुलाई को सुबह 11.30 बजे राष्ट्रीय राइफल्स और 4 पैरा की ज्वाइंट टीम ने 3 आतंकियों का पता लगाया।

बताया जाता है कि यह मुठभेड़ सुनियोजित नहीं थी, बल्कि संयोग से हुई। सुरक्षा बल सर्च अभियान के दौरान जब आतंकियों के नजदीक पहुंचे तब वह झपकी ले रहे थे। 4 पैरा के जवानों ने आतंकवादियों को देखा तो वह एक तंबू के अंदर आराम की मुद्रा में लेटे हुए थे। इसके बाद जवानों मोर्चा संभालते हुए बिना देर किए तीनों आतंकियों को मार गिराया।

क्यों ‘महादेव’ रखा गया कोड नेम?

सुरक्षा बलों ने 'ऑपरेशन महादेव' श्रीनगर के पास स्थित महादेव पीक के नाम पर रखा। यह जबरवान रेंज की एक प्रमुख और पर्वट चोटी है। यह चोटी सामरिक रूप से अहम है। यहां से लिडवास और मुलनार जैसे इलाके साफ तौर पर दिखाई देते हैं। स्थानीय लोगों की आस्था होने के कारण भी इसका नाम प्रतीकात्मक रूप से चुना गया।

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Published on:
29 Jul 2025 09:10 am
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