Rajya Sabha Vs Lok Sabha MP difference: राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही भारतीय लोकतंत्र की मजबूत नींव हैं। लोकसभा में जनता की सीधी भागीदारी होती है, जबकि राज्यसभा राज्यों की आवाज को संसद में उठाने का मंच देती है।
Rajya Sabha Vs Lok Sabha MP Difference: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में राज्यसभा के लिए चार नए सदस्यों को मनोनीत किया है। इसमें प्रसिद्ध वकील उज्ज्वल निकम, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, समाजसेवी और शिक्षाविद सी. सदानंदन मास्टर और शिक्षाविद डॉ. मीनाक्षी जैन शामिल हैं। इनका कार्यकाल छह साल का होगा। इस मौके पर आम लोग जानना चाहते हैं कि राज्यसभा और लोकसभा सांसदों में क्या अंतर है, कौन सा सदन ज्यादा शक्तिशाली है और सांसदों को हर साल कितनी विकास निधि मिलती है।
भारतीय संसद दो सदनों से मिलकर बनती है – राज्यसभा (ऊपरी सदन) और लोकसभा (निचला सदन)। लोकसभा को ‘जनता का सदन’ कहा जाता है, जहां सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। वहीं, राज्यसभा को ‘राज्यों का सदन’ कहा जाता है, जिसमें सदस्य राज्यों की विधानसभाओं के द्वारा चुने जाते हैं। राज्यसभा में राष्ट्रपति को अधिकार है कि वे कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले 12 सदस्यों को नामांकित कर सकते हैं।
लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें 530 राज्य, 20 केंद्र शासित प्रदेश और 2 नामित होते थे। वर्तमान में लोकसभा में 543 सदस्य हैं। राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा नामित होते हैं। वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं।
लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सांसद चुना जाता है। यह चुनाव ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली से होते हैं। लोकसभा का कार्यकाल 5 साल का होता है। वहीं, राज्यसभा के सदस्य राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत प्रणाली से चुने जाते हैं। राष्ट्रपति द्वारा नामांकित सदस्य बिना चुनाव के सीधे नियुक्त किए जाते हैं।
लोकसभा का कार्यकाल 5 साल का होता है, लेकिन आपातकाल में इसे बढ़ाया जा सकता है। 5 साल पूरे होने पर लोकसभा भंग कर दी जाती है और नए चुनाव कराए जाते हैं। दूसरी ओर, राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जो कभी भंग नहीं होती। हर 2 साल में इसके एक-तिहाई सदस्य रिटायर होते हैं और नए सदस्य चुने जाते हैं। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 साल का होता है।
लोकसभा के पास वित्तीय मामलों में अधिक अधिकार होते हैं। बजट और धन विधेयक सिर्फ लोकसभा में ही पेश किए जा सकते हैं। लोकसभा सरकार बनाने और गिराने का भी अधिकार रखती है, क्योंकि प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। वहीं, राज्यसभा को राज्यों के हितों की रक्षा करने की शक्ति प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 249 के तहत राज्यसभा अगर दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे, तो संसद को किसी राज्य विषय पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है। सामान्य विधेयकों में दोनों सदनों की भूमिका समान होती है, लेकिन धन विधेयकों में लोकसभा का वर्चस्व होता है।
सांसदों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए MP Local Area Development Scheme (MPLADS) के तहत हर साल 5 करोड़ रुपये मिलते हैं। लोकसभा सांसद इस फंड का इस्तेमाल अपने निर्वाचन क्षेत्र में कर सकते हैं, जबकि राज्यसभा सांसद अपने राज्य में किसी भी जिले में इस फंड का उपयोग कर सकते हैं। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत राज्यसभा सदस्य देश के किसी भी हिस्से में यह फंड खर्च कर सकते हैं। इस फंड से सांसद सड़क, पानी, स्कूल, अस्पताल और सामुदायिक भवन जैसे विकास कार्यों में सहयोग कर सकते हैं।