Courts can grant anticipatory bail even fir lodged in another state: सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मिलने की व्यवस्था को सरल बनाने के लिए एक मामले में अदालतों को यह निर्देश दिया है कि एफआईआर किसी दूसरे राज्य में दर्ज की गई हो तो भी उसकी अग्रिम जमानत सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट दे सकते हैं।
Supreme Court on Anticipatory bail: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अगर एफआईआर किसी दूसरे राज्य में दर्ज की गई हो तो भी सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट अग्रिम जमानत दे सकते हैं। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि नागरिकों के जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की संवैधानिक अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए अदालतों को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अंतरिम सुरक्षा के रूप में अंतरिम अग्रिम जमानत देनी चाहिए। पीठ ने बेंगलूरु के सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।
इस मामले में आरोपी पति को मिली अग्रिम जमानत
सत्र अदालत ने याचिकाकर्ता महिला के आरोपी पति को अग्रिम जमानत याचिका की अनुमति दे दी थी जबकि उसके खिलाफ एफआईआर अन्य राज्य में दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी सभी अत्यावश्यक परिस्थितियों का हिसाब देना असंभव होगा जिसमें आवेदक के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए अप्रत्याशित आदेश दिया जाए। इस तरह की अग्रिम जमानत असाधारण और बाध्यकारी परिस्थितियों में ही दी जानी चाहिए। पीठ ने आरोपी और उस अदालत के अधिकार क्षेत्र के बीच क्षेत्रीय संबंध या निकटता स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जहां अग्रिम जमानत मांगी गई है। पीठ ने कहा, हम जानते हैं कि आरोपी अग्रिम जमानत के लिए अपनी पसंद की अदालत का चयन करेगा। क्षेत्राधिकार के साथ संबंध निवास स्थान या व्यवसाय से हो सकता है। आरोपी सिर्फ अग्रिम जमानत लेने के लिए दूसरे राज्य की यात्रा नहीं कर सकता।
पीठ के दिशा-निर्देश
* अंतरिम अग्रिम जमानत के आदेश पारित करने से पहले एफआइआर के जांच अधिकारी और लोक अभियोजक को नोटिस जारी किया जाए।
* अग्रिम जमानत के आदेश में उन कारणों को दर्ज किया जाए कि आवेदक को अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी की आशंका क्यों है और जांच पर अग्रिम जमानत का क्या प्रभाव पड़ सकता है।
* आवेदक को क्षेत्राधिकार वाली अदालत से जमानत मांगने में असमर्थता के बारे में हाईकोर्ट या सेशन कोर्ट को संतुष्ट करना होगा।
* जहां एफआइआर दर्ज की गई है, वहां जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन की आशंका या आवेदक के दिव्यांग होने पर अग्रिम जमानत की मांग की जा सकती है।
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