B-2 stealth bombers: अमेरिका के ईरान पर जीबीयू-57 बम गिराए जाने के बाद अब बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर चर्चा में है। इसका डिजाइनर भारतीय मूल का पारसी इंजीनियर India-born engineer Noshir Gowadia है, जो तीन दशक से ज्यादा समय से जेल में है। यह बताया जाता है कि नोशिर ने सिर्फ 15 साल की उम्र में पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थी।
Who is the Indian Designer B-2 stealth bomber? ईरान के परमाणु ठिकानों पर 14 हजार किलो वजनी जीबीयू-57 बम गिराए जाने के बाद अमेरिकी बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर (B-2 stealth bomber) चर्चा में है। कम ही लोग जानते होंगे कि इस खतरनाक फाइटर एयरक्राफ्ट का स्टेल्थ प्रोपेल्सन सिस्टम को भारतीय मूल के अमरीकी एयरोस्पेस इंजीनियर नोशिर गोवाडिया (Mumbai Born Indian Engineer Noshir Gowadia) ने डिजाइन किया था। इससे भी बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि चीन को सैन्य डेटा लीक करने के आरोप में नोशिर अमेरिकी जेल में 32 साल (Noshir Gowadia in American Jail for last 32 years) की सजा काट रहे हैं। नोशिर पर आरोप था कि उन्होंने चीन के अलावा जर्मनी, इजरायल और स्विटजरलैंड को भी स्टील्थ प्रोपल्शन सिस्टम से जुड़ी जानकारी बेची थी।
रिपोर्टों के अनुसार चीन के लंबी दूरी के स्टेल्थ बॉम्बर एच-20 भी गोवाडिया की साझा की गई जानकारी के आधार पर विकसित किया गया। 11 अप्रेल 1944 को मुंबई के एक पारसी परिवार में जन्में नोशिर 19 वर्ष की उम्र में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अमेरिका चले गए और 1969 में यहां की नागरिकता ले ली। एक रिपोर्ट के अनुसार नोशिर ने महज 15 वर्ष की उम्र में पीएचडी पूरी कर ली। नागरिकता हासिल करने के एक साल बाद ही उन्होंने अमेरिकी स्टेल्थ बी-2 बॉम्बर बनाने वाली कंपनी नॉथ्रॅप जॉइन कर ली। 1986 में कंपनी छोड़कर उन्होंने मैक्सिको में एक डिफेंस कंसल्टिंग फर्म शुरू की, लेकिन इसकी सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार फाइटर जेट डिजाइन करने के दौरान नौसिर पर 2003 से 2005 के बीच चीन की यात्रा करने का आरोप था। रिपोर्टों में पता चला कि उन्हें एक लाख 10 हजार डॉलर (लगभग 91 लाख रुपए) दिए गए थे। 2005 में उनकी गिरफ्तारी के साथ ही उनके खिलाफ लंबा मुकदमा चला। अमरीकी वायुसेना की वेबसाइट के अनुसार 2010 में गोवाडिया को 17 में से 14 संघीय आरोपों में दोषी ठहराया गया। अभियोजक पक्ष ने दावा किया कि गोवाडिया के कृत्य से अमरीकी सुरक्षा को कमजोर किया। जबकि बचाव पक्ष का तर्क था कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा साझा किया था। उन्हें देशद्रोही के रूप में नहीं, एक इंजीनियर के रूप में देखा जाए।