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Maharaja Dalip Singh Story: कौन है सिक्खों का ब्लैक प्रिंस जिन्होंने अपनाया था ईसाई धर्म, जाने क्या थी वजह?

Maharaja Dalip Singh Story: सिख साम्राज्य के आखिरी महाराजा दलीप सिंह (दुलीप सिंह) का ज्यादातर जीवन लंदन में बीता। आखिरी दिनों में बहुत तंगी से गुजर रहे थे। जानिए पूरा कारण।

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Maharaja Dalip Singh Story : पंजाब के आखिरी सिख महाराजा दलीप सिंह (Maharaja Dalip Singh) की कहानी काफी दिलचस्प है। महाराजा दलीप सिंह सिख साम्राज्य की नींव रखने वाले महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे और महारानी जींद कौर के इकलौते बेटे थे। पिता और भाइयों की मौत के बाद महज 5 साल की उम्र में साल 1843 में उन्हें गद्दी पर बिठाया गया था। हालांकि वह मुश्किल से 6 साल गद्दी पर रह पाए थे। साल 1849 में जब अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा जमाया तो उनसे गद्दी छीन ली गयी और उनकी मां को कैद कर लिया गया। उन्हें लंदन भेज दिया गया और महाराजा का बाकी का जीवन निर्वासन में ही गुजरा।

क्वीन विक्टोरिया से थे करीब

ब्रिटेन आने के बाद महाराजा दलीप सिंह की क्वीन विक्टोरिया से करीबी बढ़ी, दोनों को काफी जगहों पर साथ देखा जाने लगा था। महारानी हर पार्टी में दलीप सिंह को अपने साथ ले जातीं थी। इतिहासकारों का कहना है की दोनों के बिच दोस्ती से ज्यादा रिश्ता था। रानी विक्टोरिया ने एक जर्नल में महाराजा दलीप सिंह के लिए लिखा, ”उनकी आंखें और दांत बेहद खूबसूरत हैं…’ उस समय लंदन में महाराजा दलीप सिंह को आर्मी के डॉक्टर सर जॉन स्पेंसर और उनकी पत्नी की देखरेख में रखा गया था।

क्यों अपनाया था ईसाई धर्म?

सर जॉन स्पेंसर और उनकी पत्नी को महाराजा दलीप सिंह को अंग्रेजी तौर-तरीके सिखाने का जिम्मा सौंपा गया था। वो अक्सर महाराजा को बाइबिल पढ़ने को देते थे। इसी दौर में उनकी ईसाई धर्म के प्रति दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने सिख धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था। लंदन में निर्वासन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत, महाराजा दलीप सिंह को सालाना 25000 यूरो भत्ता दिया करती थी। 19 साल की उम्र तक यही भत्ता जारी रहा बाद में इसमें इजाफा हुआ था।

सिख धर्म में वापसी

लंदन में महाराजा दलीप सिंह ”ब्लैक प्रिंस” के नाम से मशहूर थे। वह आलीशान जिंदगी जीते थे। महाराजा ने साल 1864 में एक जर्मन बैंकर की बेटी बम्बा मुलर से शादी कर ली थी। दोनों ने रहने के लिए एक आलीशान बांग्ला लिया था। महाराजा दलीप सिंह और बम्बा मुलर के 6 बच्चे हुए। बम्बा के निधन के बाद महाराजा ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम अडा डगलस था। दूसरी शादी से दो बच्चे हुए। महाराजा दलीप सिंह ने जब ईसाई धर्म स्वीकार किया तो काफी बवाल हुआ था उसके बाद उन्हें खुद अपनी गलती का एहसास हुआ और साल 1886 में उन्होंने ईसाई धर्म छोड़कर दोबारा सिख धर्म अपना लिया।

मां से मिलने की कोशिश

ब्रिटेन जाने के बाद महाराजा ने काफी बार अपनी माँ से मिलने की कोशिश की थी। जब महाराजा 18 साल के हुए थे तब उन्होंने अपनी माँ को खत लिख कर लंदन आने के लिए कहा था हालाँकि चिट्ठी मां तक पहुंचने से पहले ही अंग्रेज़ो के हाथ लग गयी थी। कई प्रयास के बाद महाराज ने खुद अपनी मां से मिलने का फैसला किया। बाद में अंग्रेजों को लगा कि अब उनकी मां से साम्राज्य को कोई खतरा नहीं है तो जनवरी 1861 में कलकत्ता में मां-बेटे को मिलने की इजाजत दे दी गयी थी।

पेरिस में निधन, इंग्लैंड में दफनाया

सिर्फ 55 साल की उम्र में महाराजा दलीप सिंह का निधन हो गया। उस वक्त वह पेरिस में थे और मुफलिसी के दौर से गुजर रहे थे। महाराजा दलीप सिंह लंदन निर्वासन के बाद सिर्फ दो बार ही भारत आ पाए थे। पहली बार थोड़े ही वक्त के लिए अपनी मां से मिलने और फिर 1863 में जब उनकी मां का निधन हुआ तब। महाराज की इच्छा थी कि निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार पंजाब में हो, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। उनका शव पेरिस से एल्वेडन लाया गया और ईसाई तौर तरीके से दफनाया गया।

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