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17 वर्षों से बिना रुके चल रहा भंडारा, 400 लोग सेवा कार्य में दे रहे सहयोग

मंदिर परिसर में हर दिन दो समय दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे निशुल्क भंडारा आयोजित होता है। चाहे साधु-संत हों, गरीब, राहगीर या कोई जरूरतमंद हर कोई यहां आकर सम्मानपूर्वक पेट भर भोजन कर सकता है।

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भोजन कराते हुए

जिले का हरपालपुर कस्बा न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि मानवीय सेवा का अद्भुत उदाहरण भी बन चुका है। यहां स्थित श्री देवभूमि बरियाधाम हनुमान मंदिर में बीते 17 वर्षों से एक ऐसा सेवा अभियान लगातार चल रहा है, जो न केवल भूखों को भोजन देता है बल्कि समाज में सेवा भावना की मिसाल भी बन गया है। मंदिर परिसर में हर दिन दो समय दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे निशुल्क भंडारा आयोजित होता है। चाहे साधु-संत हों, गरीब, राहगीर या कोई जरूरतमंद हर कोई यहां आकर सम्मानपूर्वक पेट भर भोजन कर सकता है। इस आयोजन को सफल बनाने में लगभग 400 स्थायी सहयोगी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, जिनमें मासिक, वार्षिक और आजीवन सदस्य शामिल हैं।

2007 में हुई शुरुआत, सेवा से जुड़ते गए आमजन

मार्च 2007 में श्री मारुति मानस संघ सेवा धर्म सद्भाव ने साधु-संतों के लिए नि:शुल्क भोजन सेवा की शुरुआत की थी। यह सोच थी कि मंदिर के आस-पास ठहरने वाले साधु भूखे न रहें। धीरे-धीरे जैसे-जैसे यह कार्य आगे बढ़ा, आमजन भी इससे जुड़ते गए। भक्तों ने नकद और वस्तु दोनों रूपों में सहयोग करना शुरू कर दिया। कोई अनाज की बोरियां लाता है, तो कोई सब्जियां, मसाले और ईंधन। जो भी श्रद्धालु मंदिर में कोई मन्नत पूरी होने के बाद आता है, वह यथाशक्ति इस सेवा में भागीदार बनता है।

सेवा का दायरा अब और विस्तृत

श्री मारुति मानस संघ की सेवाएं सिर्फ भोजन तक सीमित नहीं रहीं। आज यह संस्था पौधारोपण, गर्मियों में स्टेशन पर जल सेवा, गरीब कन्याओं के विवाह, निशुल्क नेत्र परीक्षण शिविर जैसे कार्य भी नियमित रूप से करवा रही है। संघ से जुड़े कार्यकर्ता भोजन की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखते हैं। ताजी सब्जियां हर सुबह मंगाई जाती हैं और भंडारे के लिए समुचित साफ-सफाई रखी जाती है।

सामूहिक सेवाभाव का परिणाम

इस सेवा कार्य को सफल बनाने में नगर के 400 से अधिक लोग नियमित रूप से आर्थिक, श्रम और सामग्री सहयोग करते हैं। यह एक ऐसा उदाहरण है, जहां प्रशासनिक सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि समाज ने स्वयं सेवा का बीड़ा उठाया और उसे लगातार आगे बढ़ाया।

हर जरूरतमंद के लिए खुला है द्वार

इस मंदिर में कोई भूखा वापस नहीं लौटता। समिति की ओर से साफ तौर पर निर्देश है कि भोजन के लिए किसी की जाति, धर्म, स्थिति या पहचान नहीं पूछी जाएगी। सेवा का उद्देश्य केवल भूख मिटाना और सम्मान देना है। बरियाधाम मंदिर की यह पहल न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता, करुणा और सहयोग की मिसाल भी है।