
मध्य प्रदेश सरकार का धार्मिक नगरों में शराबबंदी का निर्णय सराहनीय है। यह कदम न केवल समाज को नशामुक्त बनाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि धार्मिक भावनाओं का भी सम्मान है। सरकार ने 19 धार्मिक स्थलों, जिनमें उज्जैन, अमरकंटक, महेश्वर, चित्रकूट और ओरछा जैसे पवित्र नगर शामिल हैं, उन्हे शराबबंदी की योजना की तैयारी में शामिल किया है। यह कदम धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से स्वागत योग्य है, लेकिन विडंबना यह है कि ऐसा कदम पहले भी उठाया गया और वह असफल रहा। नर्मदा नदी के किनारे शराबबंदी का दावा किया जाता रहा है। 2017 में नर्मदा नदी के किनारे शराब बिक्री पर रोक का निर्णय लिया गया था। नर्मदा किनारे के 5 किमी दायरे में दुकानें बंद की गईं, लेकिन इसके बाद अवैध ठिकानों की संख्या कई गुना बढ़ गई। पुलिस और आबकारी विभाग के बीच सांठगांठ ने अवैध शराब कारोबार को पनपने दिया। हाल ही में मंडला में पकड़ी गई 62 पेटी अंग्रेजी शराब इस विफलता का सबूत है। मंडला में हुई शराब की जब्ती इसका प्रमाण है कि शराबबंदी कानून का उल्लंघन किस स्तर पर हो रहा है। यह भी दर्शाता है कि शराब माफिया कितने ताकतवर हैं। ये स्थिति सिर्फ मंडला नहीं, बल्कि नर्मदा के उद्गम क्षेत्र अमरकंटक सहित प्रदेश के कई नर्मदा किनारे बसे धार्मिक नगरों की है। जब तक ऐसी समस्याओं पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी और अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं की जाएगी, तब तक शराबबंदी का प्रयास सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगा। शराबबंदी से सरकार को राजस्व का नुकसान होता है। राज्य को शराब से सालाना 13,900 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है, नशे से बर्बाद होती जिंदगियां, परिवारों का टूटना और स्वास्थ्य पर बढ़ता बोझ इस राजस्व की असल कीमत है। यह तथ्य भी नहीं छिपाया जा सकता कि शराब से होने वाले नुकसान की भरपाई में सरकार को और अधिक खर्च करना पड़ता है। शराब के कारण होने वाले अपराधों, दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य समस्याओं पर सरकार को करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। सरकार को समझना होगा कि शराब के राजस्व पर निर्भरता को खत्म करना आवश्यक है। खनिज, कृषि और अन्य उद्योगों को बढ़ावा देकर आय के वैकल्पिक स्रोत विकसित किए जा सकते हैं। इसके लिए ठोस नीति और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। साथ ही, शराबबंदी के आदेश को लागू करने के लिए प्रभावी निगरानी तंत्र विकसित करना होगा। धार्मिक नगरों में शराबबंदी अच्छा कदम है, लेकिन यह आदेश कागजों तक सीमित न रहे। अगर सरकार शराबबंदी को दिखावे के बजाय ईमानदारी से लागू करे, तो यह न केवल धार्मिक नगरों में शांति और पवित्रता बहाल करेगा, बल्कि समाज को नशामुक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास भी साबित होगा।
Updated on:
27 Jan 2025 09:33 pm
Published on:
27 Jan 2025 09:31 pm
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