यह पैंगोलिन ( pangolin ) गहरे-भूरे या पीले-भूरे रंग का दुर्लभ प्रजाति का है. इसका वजन करीब 17 किलो व लंबाई तीन फीट है। देखने में यह कुछ-कुछ सांप और छिपकली की तरह दिखाई देता है. बहलोलपुर चौकी प्रभारी सुरेंद्र सिंह ने बताया कि एक सूचना के आधार पर वह बहलोलपुर गांव में पहुंचे थे। वहां नाली में दुर्लभ प्रजाति का पैंगोलिन था। आस पास मौजूद लोग उसे परेशान कर भगाने का प्रयास कर रहे थे। ग्रामीण के डर से वह नाली में छिप गया था । किसी तरह पैंगोलिन को नाली से बाहर निकाला गया। इसके वन विभाग के अधिकारियों को सूचित किया। प्रभागीय वनाधिकारी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि बहलोलपुर गांव से मिले पैंगोलिन को अब सुरक्षित स्थान पर भेजने की तैयारी की जा रही है। पैंगोलिन अधिकांश यमुना खादर क्षेत्र में पाया जाते हैं।
प्रभागीय वनाधिकारी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि पैंगोलिन उन दुर्लभ जीवों की प्रजाति में शामिल है़ जिनकी संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है. तस्कर पैंगोलिन की हड्डियों और मांस की तस्करी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में करते हैं. इसका सबसे ज्यादा प्रयोग ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन ( TCM ) में किया जाता है. इनका इस्तेमाल यौनवर्धक दवाओं के साथ कई अन्य तरह की दवाएं बनाने में किया जाता है. कई अन्य देशों में इसको नॉनवेज फ़ूड के तौर पर खाया जाता है. इसका मांस बाजार में 27 हज़ार रुपये प्रति किलो तक बिकता है। दो माह पूर्व भी एक पैंगोलिन मिला था। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत ज्यादा होने से इसकी तस्करी होती रहती है। इसलिए जीव की कीमत करीब चार करोड़ रुपये के आसपास है।