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बस्तर अब हाथियों का नया ठिकाना

बस्तर के दरगाहन, कोटेला, कुरुटोला और भिरोद गांव में हाथी को देखे गए हैं। ये हाथी पखांजूर, दुर्गकोंदल और कापसी में पहुंचे थे। हालांकि स्थाई तौर पर इन्होंने अपना रहवास यहां नहीं बनाया है।

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Ajay Shrivastav

Aug 28, 2023

बस्तर अब हाथियों का नया ठिकाना

बीते छह माह के भीतर 18 हाथियों के एक दल की हलचल ने इन संभावनाओं को बल दे दिया है। बस्तर के चारामा वन परिक्षेत्र के दरगाहन, कोटेला, कुरुटोला और भिरोद गांव में हाथी को देखे गए हैं।

अजय श्रीवास्तव जगदलपुर .बस्तर के घने व विस्तृत जंगल अन्य वन्य प्राणियों के साथ ही साथ अब विशालकाय हाथियों का नया ठिकाना बनने जा रहे हैं। इनकी दस्तक उत्तर बस्तर संभाग के कांकेर व भानुप्रतापुर में रिकार्ड की जा चुकी है। अब मध्य बस्तर भी इनके होम रेंज में आने की संभावना जताई जा रही है। बीते छह माह के भीतर 18 हाथियों के एक दल की हलचल ने इन संभावनाओं को बल दे दिया है। बस्तर के चारामा वन परिक्षेत्र के दरगाहन, कोटेला, कुरुटोला और भिरोद गांव में हाथी को देखे गए हैं। ये हाथी पखांजूर, दुर्गकोंदल और कापसी से घूमते हुए बालोद जिले के सीमावर्ती गांव से चारामा परिक्षेत्र में पहुंचे थे। हालांकि स्थाई तौर पर इन्होंने अपना रहवास यहां नहीं बनाया है।
कांकेर के बाद केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, बीजापुर के विस्तृत जंगल सुरक्षित आवास, आहार की बेहतर सुविधा, जल संसाधन व मानव से कम संघर्ष की वजह से इन्हें आसानी से लुभाएंगे। वन्य प्राणी विशेषज्ञों का आंकलन है कि इनके आमद की गति अभी धीमी है, पर अप्रत्याशित तरीके से यह बढ़ सकती है। शाकाहारी व कमोबेश शांत प्रवृति होने की वजह से हाथी जल्द ही पर्यावरण से अपना सामंजस्य बिठा लेते हैँ।
जैवविविधता होगी समृद्ध: राज्य में हाथियों की संख्या बढती जा रही है, इससे उनके सामने भोजन, पानी और आवास का संकट गहराता जा रहा है। खनन परियोजनाओं के दोहन में भला इन विशालकाय स्तनपायी की परवाह किसे है? इसलिए या तो वे आक्रामक हो चले हंै या नए आवास की तलाश में जुट गए हैं। बस्तर इनके लिए होम रेंज की सारी काबिलियत रखता है, यदि ऐसा होगा तो यहां की जैवविविधता और समृद्ध हो जाएगी।

अब तक सरगुजा, अंबिकापुर, रायगढ़, जशपुर, कोरबा को जंगली हाथियों का ठिकाना रहा है। यहां इनकी खासी संख्या भी है। राज्य गठन के बाद इन इलाकों में एक के बाद एक कोयला खदानों की संख्या बढ़ गई है। नई या विस्तारित कोयला खदानों के कारण हाथियों का रहवास प्रभावित होने लगा और उनके आवागमन के रास्ते भी छीन लिए गए हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान की एक रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ में हाथियों का 'होम रेंजÓ यानी रहवास का दायरा प्रभावित हुआ है।

१९८८ में 18 हाथी बिहार से सरगुजा में प्रवेश किए थे
२००२ में राज्य में कुल 32 हाथी थे
2007 में यहां आंकड़ा 122 तक पहुंच गया
2017 में आंकड़ा 247 तक जा पहुंचा
वर्तमान में यह आंकड़ा 550 तक है।

नए इलाकों में उपस्थिति दर्ज: वन्य प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो पिछले 100 सालों में भी राज्य के जिन इलाकों में हाथियों की उपस्थिति कभी दर्•ा नहीं की गई थी। उन इलाकों में लगातार हाथी पहुंच रहे हैं। उन्हें एक जंगल से दूसरे जंगल में, एक बस्ती से दूसरी बस्ती में खदेड़ा जा रहा है। विस्थापित हाथी, भोजन-पानी और जीवन की तलाश में एक से दूसरी जगह भटक रहे हैं। इसी तर्ज में चारामा वन परिक्षेत्र के दरगाहन, कोटेला, कुरुटोला और भिरोद गांव में हाथी को देखा गया है। ये हाथी पखांजूर, दुर्गकोंदल और कापसी में घूमते हुए बालोद जिले के सीमावर्ती गांव से चारामा परिक्षेत्र में आ पहुंचे हैं। वन विभाग के दस्तावे•ाों की मानें तो छत्तीसगढ़ गठन के 12 साल पहले, 1988 में 18 हाथियों के एक दल ने अविभाजित बिहार के इलाके से सरगुजा इलाके में प्रवेश किया। इसके बाद हाथियों का कुनबा बढ़ता गया। सितंबर 2002 में राज्य में केवल 32 हाथी थे. 2007 में यह आंकड़ा 122 और 2017 में 247 पहुंच गया. छत्तीसगढ़ में कम से कम 550 हाथी स्थाई रूप से रह रहे हैं। इन्हीं में से 18 हाथी का दल बस्तर से नाता जोड़ रहा है।