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अटलांटिक के पार भू-अर्थनीति

फ्रांस और इटली में राष्ट्रवादी दलों की जीत, अमरीका में कंजर्वेटिव पार्टी की जीत का ही अगला चरण मानी जा सकती है। ऐसे में अमरीका और उसके पैतृक गृह (यूरोप) के बीच खाई नहीं पनप सकती।

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Sunil Sharma

Aug 13, 2018

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- मनन द्विवेदी, विदेश मामलों के जानकार

अमरीका ने यूरोपीय महाद्वीप के ‘जटिल गठबंधनों’ से दूर अपनी अलग पहचान गढ़ी है। यह एक ऐसे शक्तिशाली देश के रूप में उभरा है, जिसने अपनी क्षमताओं के बल पर ही अपने चारों ओर सुरक्षित आवरण तैयार किया है। इसके संस्थापकों में से एलेक्जेंडर हैमिल्टन, थॉमस जैफरसन और जॉन जे का उद्देश्य यही था कि अपने मूल महाद्वीप यूरोप से अलग होने पर अमरीका अपनी सैन्य, आंतरिक, राजनीतिक व आर्थिक ताकत बढ़ाए।

इस तरह जब एक बार एक प्रभावशाली देश के तौर पर अमरीका स्थापित हो गया, अपेक्षाकृत कमजोर शेष विश्व पर उसका वर्चस्व स्थापित होने लगा। इसके बावजूद यूरोपीय देशों और अमरीका के बीच आपसी हितों को लेकर कोई खास टकराव नहीं देखा गया। अमरीका अब प्रवासियों का नया ठिकाना बन चुका था। पुराने और नए घर (यूरोप व अमरीका) के बीच जन्मा यह ट्रांस अटलांटिक ‘सौहार्द्र’ स्वाभाविक ही था। मूल घर और नए घर के बीच नस्लीय, धार्मिक और जातीय समानता ने इसे जन्म दिया।

अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भी ‘अमरीका फस्र्ट’ का चुनावी वादा निभाते हुए संरक्षणवादी नीति अपनाई और यूरोप व चीन से इस्पात व एलुमिनियम के आयात पर कई तरह के शुल्क लगा दिए। इससे एक तरह का व्यापारिक युद्ध छिड़ गया। फ्रांस और इटली में हुए चुनावों में जिस तरह राष्ट्रवादी दलों ने चुनाव जीता है, वे एक प्रकार से अमरीका में हुई कंजर्वेटिव पार्टी की जीत का ही अगला चरण माना जा सकता है। ऐसे में अमरीका और उसके पैतृक गृह के बीच खाई नहीं पनप सकती। दूसरी ओर, ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे ब्रेक्सिट (बहु-सांस्कृतिक क्षेत्रीय संघ यानी यूरोपीय संघ से ब्रिटेन को अलग करने) का समर्थन कर रही हैं, जबकि अमरीका में भी चरमपंथ प्रगति पर है।

अटलांटिक महासागर में नस्लीय व धार्मिक परिवर्तन के चलते यूरोप से अलग हुए पश्चिमी देशों और अमरीका के बीच आतंक के खिलाफ युद्ध जीडब्लूओटी (ग्लोबल वार ऑन टेरर), जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर एक सहमति बनी है। क्योटो संधि से अमरीका के अलग होने के बाद आपसी संबंधों का यह पुल कुछ टूट सा गया था। नतीजा यह हुआ कि जर्मनी जैसी उदारवादी व प्रगतिशील सरकारों ने अमरीका की निर्वासन और आव्रजन विरोधी नीतियों की आलोचना की। खास तौर पर उस वक्त, जब पड़ोसी एशियाई देशों से कई आव्रजक यूरोप आ रहे थे। अमरीका पर आव्रजकों के प्रति पत्थर दिल होने का आरोप लगा क्योंकि कुछ एशियाई देशों के प्रवासियों को लेकर ट्रंप का रवैया ही कुछ ऐसा था। इसके अलावा हाल ही जिस व्यापार युद्ध पर इतनी बहस छिड़ी, वह भी यूरोपीय हितों और अमरीकी इरादों के बीच मतभेद का ही नतीजा रहा और यह कोई पहली बार नहीं है।

काफी पहले अमरीका का जापान के साथ भी ऐसा व्यापार युद्ध हो चुका है। अमरीकी संरक्षणवादी नीति के तहत ही फ्रांस व अन्य राष्ट्रों के साथ व्यापार के दौरान कृषि एवं कृषि उत्पादों को केवल अमरीकी किसानों के लिए सुरक्षित रखा गया। इसीलिए अमरीका व यूरोपीय देशों के बीच संबंधों मेें खटास आ गई। परंतु क्या अब बात एक कदम आगे निकल कर मुख्य घर (यूरोप) बनाम अमरीका तक पहुंच गई है?

अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था संबंध यानी कि ‘समृद्धि और ताकत के संदर्भ में विभिन्न राष्ट्रों के बीच होने वाले आपसी संवाद’ के बारे में रॉबर्ट गिलपिन ने टिप्पणी की थी कि 20वीं सदी के अंत तक विश्व भर के देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों का आशय सिमट कर सिर्फ अमरीका और यूरोपीय महाद्वीप के बीच संबंध रह जाएगा। माना जा रहा है कि गैर यूरोपीय संघ देशों को यूरोपीय सरकारों और अमरीका के बीच के क्षेत्र का मानते हुए विकसित किया जाए। इससे दो महाशक्तियों के बीच ‘मुक्त व्यापार’ की आदर्श अवधारणा विकसित की जा सकेगी। ब्रेक्सिट का मामला अलग है।

यूरोप के साथ व्यापार संबंधों से उपजे राजनीतिक परिदृश्य के बीच संपन्न मार्च 2018 के फ्लोरिडा सम्मेलन में तकनीक का व्यापार सुधार में योगदान व आपसी संबंधों के आम पहलुओं पर प्रमुखता से चर्चा की गई। ट्रंप की नीतियों के चलते अमरीका व मैक्सिको तथा अमरीका व कनाडा के बीच नाफ्टा संधियों पर जरूर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन विश्व राजनीति में अमरीका के भौगोलिक-आर्थिक अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता।

यूरोपीय अर्थव्यवस्था के बीच बहुत से पुल नहीं बनाए गए, जिनका विज्ञान से बहुत अधिक सरोकार नहीं है। जबकि अमरीका में जो चलन और विचारधारा है, उसके अनुसार, विज्ञान और अनुभव को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने आशंका जताई थी कि ईयू से अलग होने के बाद ब्रिटेन का क्या वजूद रह जाएगा? ट्रंप को कहीं यह भी कहते सुना गया कि ब्रिटेन के साथ करीबी व्यापारिक संबंध बनाए जा सकते हैं, अगर यूनाइटेड किंगडम, ब्रसेल्स और यूरोपीय संघ के साथ घनिष्ठता रखे। देखा जाए तो भौगोलिक अर्थव्यवस्था का दबदबा फिलहाल कायम है जबकि ट्रांसअटलांटिक परिदृश्य में भौगोलिक राजनीति का महत्त्व कम होता दिखाई दे रहा है।