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प्रत्यक्ष : स्कंधावार

कहीं किसी के चेहरे पर असंतोष नहीं था। 'तो हमारा सर्वमान्य निर्णय है कि धृष्टद्युम्न हमारे प्रधान सेनापति हों।Ó युधिष्ठिर बोले, 'अब हम अपनी सेना को प्रयाण का आदेश दे सकते हैं।Ó 'युद्धभूमि का चयन हो गया क्या?Ó अर्जुन ने पूछा। 

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Moti ram

Jul 16, 2015

कहीं किसी के चेहरे पर असंतोष नहीं था। 'तो हमारा सर्वमान्य निर्णय है कि धृष्टद्युम्न हमारे प्रधान सेनापति हों।Ó युधिष्ठिर बोले, 'अब हम अपनी सेना को प्रयाण का आदेश दे सकते हैं।Ó 'युद्धभूमि का चयन हो गया क्या?Ó अर्जुन ने पूछा।

'उसका चयन दुर्योधन ने कर लिया है।Ó कृष्ण बोले, 'उसकी सेनाएं कुरुक्षेत्र में अपना स्कंधावार बना रही हैं। वह वहीं व्यूहबद्ध होकर हमारी सेना पर आक्रमण करेगा।Ó युधिष्ठिर ने भीम की ओर देखा, 'ठीक है?Ó 'मेरे लिए सारे स्थान ठीक हैं।Ó भीम ने कहा, 'मुझे तो दुर्योधन की जंघा तोड़नी है, वह कार्य कहीं भी हो सकता है।Ó

'तो फिर ठीक है। धृष्टद्युम्न को सूचित करो। उपप्लव्य के दुर्ग की रक्षा के लिए खाइयों, परकोटों और रक्षक प्रहरियों की समुचित व्यवस्था करो ताकि हमारी अनुपस्थिति में उपप्लव्य के दुर्ग में रहने वाली स्त्रियों, बालकों तथा धन को लूटने का कोई प्रयत्न न कर सके।Ó युधिष्ठिर बोले, 'रथों, अश्वों तथा हाथियों को चलने के लिए तैयार किया जाए। सबके आगे मध्यम पांडव भीमसेन, प्रधान सेनापति धृष्टद्युम्न के साथ चलेंगे और प्रभद्रकगण उनकी रक्षा के लिए उन्हें घेर कर चलेंगे।

उनके साथ नकुल, सहदेव, अभिमन्यु और पांचों द्रौपदेय जाएंगे। उनके पश्चात् शकट्, हाट, डेरे, तंबू इत्यादि चलेंगे। कोष को विश्वस्त योद्धाओं की रक्षा में सावधानी से ले जाया जाए। शस्त्रास्त्रों का परिवहन भी कुशल योद्धाओं के संरक्षण में हो। चिकित्साकुशल वैद्य साथ चलें।Ó

युधिष्ठिर रुके, 'उसके पश्चात् मेरे साथ पांचों कैकेय कुमार, धृष्टकेतु, अभिभू, श्रेणिमान, वसुदान और शिखंडी चलेंगे। सेना के पिछले भाग में मत्स्यराज विराट, पंचालराज द्रुपद, महाराज कुंतिभोज, सुधर्मा और धृष्टद्युम्न के पुत्र चलेंगे। श्रीकृष्ण और अर्जुन सबकी देखभाल करते हुए, चलेंगे और उनकी रक्षा के लिए अनाधृष्टि, चेकितान तथा सात्यकी उनको घेरकर चलेंगे।Ó'ऐसा ही होगा धर्मराज!Ó भीम ने कहा।

'स्कंधावार के लिए हिरण्वती नदी के तट पर कोई समतल प्रदेश देखना, जहां घास और ईंधन का बाहुल्य हो। न हमारे पशुओं को खाद्य और जल का अभाव हो और न हमारे सैनिकों को। जल तो हिरण्वती से ही आएगा किंतु अन्न का पर्याप्त भंडार साथ लेकर चलो।

वहां घास मिल जाए तो ठीक, अन्यथा हमारे पास घास और भूसी का पर्याप्त भंडार होना चाहिए। शिविरों के लिए भूमि सात्यकी नापें, खाई इत्यादि खुदवाने का कार्य श्रीकृष्ण करें। स्कंधावार निर्माण में ध्यान रहे कि शिविरों के बीच आवागमन का सुरक्षित मार्ग हों ताकि खाद्य तथा शस्त्रास्त्रों के परिवहन में किसी प्रकार की बाधा न हो।Ó

'और यदि हमारे कार्य में दुर्योधन के सैनिक बाधा उपस्थित करें?Ó भीम ने पूछा।'तो बल प्रयोग कर सकते हो।Ó युधिष्ठिर बोले, 'युद्ध करना है तो स्कंधावार का निर्माण करना ही होगा। सुरक्षित, सुविधाजनक स्कंधावार का अर्थ है विजय की अधिक संभावना। अत: सैनिकों के लिए उचित व्यवस्था करो।Ó भीम ने प्रसन्न मुद्रा में हाथ जोड़कर आज्ञा स्वीकार की।

युद्धक्षेत्र में पांडवों का स्कंधावार स्थापित हो गया था। नई-नई वाहिनियों का आगमन हो रहा था। इन वाहिनियों के नायक, नियंत्रणमंडप से आवश्यक निर्देश लेकर, अपने-अपने सैनिकों के साथ अपने लिए नियत स्थान पर अपने-अपने शिविर स्थापित कर रहे थे।

हिरण्वती के तट पर धर्मराज युधिष्ठिर के शिविर में पांडव पक्ष के प्रमुख लोग उपस्थित थे। युद्ध संबंधी नीतियों को अंतिम रूप दिया जा रहा था और प्रबंध संबंध चर्चा हो रही थी।... 'तो हमारी सात अक्षौहिणी सेना के सात सेनापति होंगे- महाराज द्रुपद, महाराज विराट, सात्यकि युयुधान, महावीर धृष्टद्युम्न, चेदिराज धृष्टकेतु, महारथी शिखंडी, मगधराज जरासंधपुत्र सहदेव।Ó युधिष्ठिर बोले, 'प्रधान सेनापति होंगे धृष्टद्युम्न। उन सेनापतियों के अधिपति होंगे वीरवर अर्जुन। अर्जुन के नेता और नियंता होंगे वासुदेव श्रीकृष्ण।Ó

'और मध्यम पांडव भीम को आप कोई दायित्व नहीं देना चाहते?Ó कृष्ण ने पूछा।

'जहां बल का अभाव दिखाई देगा, जहां अपनी सेना पीछे हटती लगेगी, जहां सैनिकों का उत्साह मंद पड़ेगा, जहां सैनिकों को अपने साथ लेकर शत्रुओं में धंसने की आवश्यकता होगी, जहां शत्रु के व्यूह को बलपूर्वक तोड़ना होगा, वहां मध्यम पांडव सहायता भी पहुंचाएंगे और नेतृत्व भी करेंगे।Ó युधिष्ठिर बोले, 'भीम हमारी नासीर सेना के नायक हैं। उनकी आवश्यकता सबको रहेगी।...Ó सहसा द्वाररक्षक प्रवेश कर हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। सबकी दृष्टि उस ओर उठी, 'क्या है?Ó

'महाराज! वासुदेव बलराम पधार रहे हैं। वे बहुत शीघ्रता में लगते हैं।Ó वह बोला, 'उनके साथ कुछ अन्य यादव वीर भी हैं; किंतु वे लोग युद्धवेश में नहीं हैं।Ó

युधिष्ठिर ने कुछ चकित भाव से कृष्ण की ओर देखा, 'वे आने वाले थे क्या?Ó

'ऐसी कोई सूचना तो नहीं थी।Ó कृष्ण बोले, 'किंतु उनके कहीं आने-जाने पर कोई बंधन तो है नहीं।Ó

'संभव है कि उन्होंने अंतत: यह निर्णय कर लिया हो कि उन्हें हमारे पक्ष से युद्ध करना है।Ó भीम ने कहा, 'कहीं हमारा निमंत्रण देर से पहुंचा है, कहीं निर्णय अथवा व्यवस्था होने में विलंब हुआ है। योद्धा युद्धक्षेत्र को छोड़कर जाएंगे कहां?Ó युधिष्ठिर ने पुन: कृष्ण की ओर देखा।

'मुझे तो ऐसी कोई संभावना दिखाई नहीं देती।Ó कृष्ण बोले, 'फिर भी मध्यम की अपेक्षा से मेरा कोई विरोध नहीं है, पर तब दुर्योधन को दिए गए भैया के वचन का क्या होगा?Ó

'वे चाहें तो अपने वचन की रक्षा करते हुए भी हमारी सहायता कर सकते हैं।Ó अर्जुन ने कहा, 'दुर्योधन चाहे अपने पिता के आदेश की उपेक्षा कर दे, किंतु वह बलराम भैया के आदेश को चुनौती नहीं देगा। उनका एक आदेश दुर्योधन को इस युद्ध से विरत कर सकता है।Ó

'तुम जाओ।Ó युधिष्ठिर ने द्वारपाल से कहा, 'हम स्वयं बाहर आकर उनका स्वागत करेंगे।Ó

क्रमश: - नरेन्द्र कोहली