सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का मकसद यह भी कतई नहीं है कि नौकरशाही अदालतों की परवाह करना बंद कर दे। अदालतों का डर उन लोगों में तो जरूर रहना चाहिए जो बार-बार अदालती आदेशों की अवमानना करते रहते हैं।
सरकारी अफसरों को बार-बार अदालतों मेंं तलब करने की परिपाटी पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रवृत्ति के कारण अदालती गरिमा पर विपरीत असर पडऩे की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट के इस कथन को भले ही सिस्टम में सुधार की पहल के प्रयासों को आगे बढ़ाने वाला माना जाए लेकिन सच यह भी है कि सरकारी मशीनरी अदालती निर्देशों की अवहेलना की आदी होती जा रही है। ऐसे में जरूरत इस बात की भी है कि सिस्टम से जुड़े जो लोग अदालतों की बार-बार अवमानना कर रहे हों उनके साथ सख्त रवैया अपनाया जाना चाहिए।
पटना हाईकोर्ट की खण्डपीठ की ओर से पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को अनावश्यक रूप से अदालत में बुलाने से उनका समय बर्बाद होता है। बिहार शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का मकसद अदालतों में उस चलन को हतोत्साहित करना जरूर रहा है जहां बात-बात में अफसरों को व्यक्तिश: तलब कर लिया जाता है। इसीलिए कहा कि बिना सोचे-समझे ऐसा किया जाना न्यायालय की गरिमा बरकरार रखने के बजाए उसे कमजोर ही करता है। एक तथ्य यह भी है कि पेशी दर पेशी के दौर में नौकरशाही भी अदालतों के प्रति विमुख होकर पेशी को अपने दैनिक सरकारी कामकाज से दूर रहने का बड़ा जरिया बनाती रही है। ऐसे में नुकसान सीधे-सीधे आम जनता को ही होता है जो सरकारी दफ्तरों में जिम्मेदारों के नदारद रहने से परेशान होती है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का मकसद यह भी कतई नहीं है कि नौकरशाही अदालतों की परवाह करना बंद कर दे। अदालतों का डर उन लोगों में तो जरूर रहना चाहिए जो बार-बार अदालती आदेशों की अवमानना करते रहते हैं। अदालती आदेशों की अवमानना के कई उदाहरण हैं। निचली अदालतों से लेकर शीर्ष कोर्ट तक के आदेशों की नाफरमानी करने वाले लापरवाह अफसरों को जब तक महज पदनाम से ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से अदालतों में तलब नहीं किया जाएगा तब तक अदालतों का डर बना रहना मुश्किल है।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट की यह मंशा जरूर स्वागत योग्य है कि अनावश्यक रूप से अफसरों को अदालतों में तलब नहीं किया जाए। पर आदेशों की पालना में घोर लापरवाही के मामले जहां भी हो, वहां तो अफसरों के खिलाफ सख्ती दिखानी ही होगी।