
यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की प्रतिनिधि सूची में भारत के लोकप्रिय ‘प्रकाश पर्व’ दीपावली का शामिल होना न केवल इस त्योहार के लिए, बल्कि भारत की सांस्कृतिक कूटनीति, वैश्विक विरासत संरक्षण और सदियों से चली आ रही जीवंत परंपराओं के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 140 से अधिक देशों के तत्वों वाली इस प्रतिष्ठित सूची में दीपावली का स्थान मिलना इस सार्वभौमिक संदेश को और अधिक सशक्त बनाता है कि प्रकाश सदैव अंधकार पर, ज्ञान अज्ञान पर और आशा निराशा पर विजय पाती है। यह उपलब्धि उस व्यापक चिंता को भी रेखांकित करती है कि तीव्र वैश्वीकरण और बदलती जीवनशैली के इस समय में अमूर्त सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करना क्यों आवश्यक है।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत भौतिक स्मारकों या पुरातात्विक संरचनाओं की तरह ठोस नहीं होती। यह उन जीवंत परंपराओं, अभिव्यक्तियों, अनुष्ठानों, कलाओं, ज्ञान और कौशल का समूह है, जिसे समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं। यूनेस्को की इस सूची में पांच प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं- मौखिक परंपराएं, प्रदर्शन कलाएं, सामाजिक प्रथाएं व अनुष्ठान, प्रकृति व ब्रह्मांड संबंधी ज्ञान और पारंपरिक शिल्प। दीपावली इन पांचों क्षेत्रों को किसी न किसी रूप में स्पर्श करती है। इसके अनुष्ठान, संगीत, सामुदायिक उत्सव, पकवान, कला- शिल्प और आध्यात्मिक कथाएं इसे सांस्कृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध बनाती हैं। इस सूची में शामिल होना किसी विशेष वस्तु का संरक्षण नहीं, बल्कि उन जीवंत अभ्यस्तियों का सम्मान है, जिन्हें करोड़ों लोग प्रतिदिन जीवित रखते हैं। भारत ने दीपावली का नामांकन वर्ष 2023 में 2024-25 चक्र के लिए भेजा था। इसका निर्णय 20वें अंतरसरकारी समिति सत्र में लिया गया, जिसका आयोजन ऐतिहासिक लाल किले में हुआ और यह पहली बार था जब भारत ने यूनेस्को के आइसीएच सत्र की मेजबानी की। यह पृष्ठभूमि स्वयं इस घोषणा को और अधिक महत्वपूर्ण बनाती है, क्योंकि इससे भारत के उस संकल्प का संकेत मिलता है, जिसमें वह सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने के साथ वैश्विक संवाद को भी बढ़ावा दे रहा है। दीपावली का यह समावेश अब भारत की कुल 16 अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों में जुड़ गया है। इससे पहले कुंभ मेले, दुर्गा पूजा, गुजरात का गरबा, वैदिक मंत्रोच्चार परंपरा, रामलीला और उत्तर प्रदेश की पारंपरिक धातु शिल्प कला जैसे तत्व इस सूची में शामिल हो चुके हैं। यह सूची भारत की सांस्कृतिक बहुलता और गहराई का प्रमाण है। आने वाले चक्र के लिए भारत ने बिहार के छठ पर्व का नामांकन भेजा है, जो इस बात का संकेत है कि भारत क्षेत्रीय परंपराओं को भी वैश्विक पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयासरत है।
दीपावली के चयन का सबसे बड़ा कारण इसका समावेशी और व्यापक सांस्कृतिक स्वरूप है। यह त्योहार धर्म, भाषा और क्षेत्र की सीमाओं को पार करता है। भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण- पूर्व एशिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका, यूरोप और अमरीका में बसे भारतीय समुदाय भी इसे पूरे उत्साह से मनाते हैं। विभिन्न समुदायों में इसके अर्थ और कथाएं अलग-अलग हो सकती हैं, कहीं इसे राम के अयोध्या लौटने का उत्सव माना जाता है, कहीं इसे लक्ष्मी पूजा का पर्व, कहीं कृष्ण द्वारा नरकासुर पर विजय का प्रतीक, तो कहीं जैन परंपरा में भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में। फिर भी, इन विविधताओं के बीच दीपावली का व्यापक स्वरूप एक ही है प्रकाश, नव आरंभ और मानसिक आध्यात्मिक परिष्कार का उत्सव। यूनेस्को ने इसी विविधता और जीवंतता को इसकी शक्ति बताया।
आज जब प्रवासन (माइग्रेशन), आधुनिक जीवनशैली और डिजिटल संस्कृति पारंपरिक उत्सवों के स्वरूप को बदल रही है, ऐसे समय में यूनेस्को की यह मान्यता सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। सूची में शामिल होना परंपरा को किसी एक रूप में जड़ नहीं कर देता, बल्कि समुदायों को इसे सुरक्षित, टिकाऊ और समावेशी तरीके से आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। दीपावली के मामले में यह मान्यता मौखिक इतिहासों के दस्तावेजीकरण, परंपरागत कारीगरों के समर्थन, क्षेत्रीय प्रथाओं के संरक्षण और कृषि, खगोल या पर्यावरण संबंधी ज्ञान के प्रसार को प्रोत्साहित कर सकती है। सांस्कृतिक कूटनीति के दृष्टिकोण से भी यह उपलब्धि भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत करती है। दीपावली विश्व स्तर पर पहले से ही एक लोकप्रिय सांस्कृतिक उत्सव है, कई देशों में सार्वजनिक कार्यक्रम, रोशनी की सजावटें, सांस्कृतिक शो और सामुदायिक आयोजनों के माध्यम से इसे मनाया जाता है। यूनेस्को का टैग इसे वैश्विक सांस्कृतिक मानचित्र पर आधिकारिक मान्यता प्रदान करता है। भारतीय प्रवासी समुदाय के लिए यह गौरव और सांस्कृतिक जुड़ाव का विषय है। इससे भारत और अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संवाद और सहयोग भी गहरा होता है।
आर्थिक दृष्टि से भी यह सूचीबद्धता महत्वपूर्ण है। दीपावली का समय भारत में कारीगरों, हस्तशिल्पियों, मिठाई उद्योग, कपड़ा उद्योग, परंपरागत दीया निर्माण, सजावट सामग्रियों और पर्यटन के लिए स्वर्णिम अवसर होता है। अंतरराष्ट्रीय पहचान पर्यटन को और गति दे सकती है, क्योंकि विश्वभर के लोग अब इस प्रकाश पर्व को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने में अधिक रुचि दिखा सकते हैं। जापान, मेक्सिको और फ्रांस जैसे देश पहले से अपनी अमूर्त सांस्कृतिक परंपराओं के माध्यम से सांस्कृतिक पर्यटन को मजबूत कर चुके हैं। भारत भी दीपावली के इस वैश्विक आकर्षण का उपयोग सतत पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है।
सततता का आयाम भी इस मान्यता से गहराई से जुड़ा है। पारंपरिक दीपावली प्राकृतिक सामग्रियों- मिट्टी के दीयों, प्राकृतिक रंगों, हस्तनिर्मित सजावटों और सामुदायिक आयोजनों पर आधारित होती है। आधुनिक समय में आतिशबाजी और प्लास्टिक सामग्रियों से जुड़े पर्यावरणीय संकट बढ़े हैं। यूनेस्को की मान्यता इस बात का अवसर देती है कि परंपरा में निहित पर्यावरण अनुकूल मूल्यों को फिर से प्रासंगिक बनाया जाए। इससे नीति- निर्माता, शिक्षक और सांस्कृतिक संस्थान एक संतुलित, पर्यावरण संवेदी दीपावली के लिए अधिक जागरूकता फैला सकते हैं। दीपावली की कलात्मक और सर्जनात्मक अभिव्यक्तियां भी इसकी अमूर्त सांस्कृतिक शक्ति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। नृत्य, संगीत, नाटक, कविता, कथाकथन और मंदिर परंपराएं दीपावली के दौरान विशेष रूप से जीवंत हो जाती हैं। ये अभिव्यक्तियां न केवल सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध करती हैं, बल्कि समुदायों में भावनात्मक और सामाजिक जुड़ाव भी पैदा करती हैं। यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची सांस्कृतिक क्षरण के भय के विरुद्ध एक सशक्त संदेश देती है। आधुनिकता के बीच परंपराएं कमजोर न हों, यही इस सूची का मूल उद्देश्य है। दीपावली का सूचीबद्ध होना केवल प्रतीकात्मक उपलब्धि नहीं, बल्कि यह विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के संरक्षण की वैश्विक आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।
इस तरह यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में दीपावली का शामिल होना व्यापक, बहुआयामी और ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह त्योहार की ऐतिहासिकता, सांस्कृतिक विविधता, कलात्मक समृद्धि और वैश्विक महत्ता को सुदृढ़ करता है। यह भारत के सांस्कृतिक कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ाता है, आर्थिक और पर्यटन संभावनाओं को विस्तार देता है, समुदायों के आत्मगौरव को मजबूती देता है और विश्व भर में साझा सांस्कृतिक विरासत के मूल्य को पुनस्र्थापित करता है।
Published on:
12 Dec 2025 05:23 pm
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