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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – बेबसी पर अट्टहास

हमारी सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे देश कितना सुरक्षित है, इसका उदाहरण बांग्लादेशी-रोहिंग्या की घुसपैठ से ही प्रमाणित हो चुका है। इससे भी इनका और पुलिस का पेट नहीं भरता।

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Gulab-Kothari

पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी (फोटो: पत्रिका)

हमारी सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे देश कितना सुरक्षित है, इसका उदाहरण बांग्लादेशी-रोहिंग्या की घुसपैठ से ही प्रमाणित हो चुका है। इससे भी इनका और पुलिस का पेट नहीं भरता। पाक ड्रोन से तस्करी, भारतमाला मार्ग से तस्करी, शराब, भू-माफिया हो या वाहन चोर, या फिर मानव तस्करी का मुद्दा- इन सबके केन्द्र में तो पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां ही रहेंगी। तस्कर-पुलिस गठबंधन देश को बेच रहा है, नई पीढ़ी को पंगु कर रहा है और सरकार में बैठे भ्रष्ट लोगों के धन से मौत के सौदागर के रूप में व्यस्त हो गया है।

यह सही है कि राजस्थान में नए पुलिस महानिदेशक के आने के बाद पुलिस कुछ आक्रामक हुई है। दूसरी ओर यह भी सही है कि पुलिस और राजनीति में भी माफिया के सरगना बैठे हुए हैं। पिछली सरकार में ऐसे लोग मंत्री पद को भी सुशोभित करते रहे हैं। भ्रष्टाचार का धन ही-जो राजनेता और अधिकारियों से ही आता है- माफिया और तस्करी का मूल कारण है। तब कौन रोके काले धंधों को? इनका ही धन फंसता है। वास्तव में तो यह धन भी चोरी का होता है जिस पर किसी का नाम लिखा नहीं होता। दूसरी बात यह है कि छापा मारने वाले अधिकारी भी इन्हीं के साथ के होते हैं। तब डर किसका?

खून के घूंट तो तब पीने पड़ते हैं जब ऐसे वफादार अधिकारियों को राष्ट्रपति पदक जैसे सम्मान प्राप्त होते हैं। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि मंत्री और मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार संवैधानिक पदों पर बैठे नेता-जनप्रतिनिधि भी इनके पक्षधर होते हैं? क्या तस्कर-माफिया को मंत्री पद की शपथ दिलवाने वाले मुख्यमंत्री वास्तविकता से अनभिज्ञ होते हैं, अथवा उनका अपना भी कोई क्षुद्र स्वार्थ होता है? इसके बाद कहने को क्या रह जाएगा?

जब नेता-अधिकारी मिलकर जनता के साथ आंखमिचौली खेल रहे हों, देश को घुसपैठियों के हाथों बेचा जा रहा हो, कर्णधारों को नपुंसक बनाया जाता हो। तब क्या यह देश को गुलामी के रास्ते में धकेलना नहीं कहलाएगा? ऐसा करने वाले राष्ट्रभक्तों को क्या डूबकर नहीं मर जाना चाहिए?

नशे में डूबी हुई युवा पीढ़ी को कोई कानून नहीं बचा सकता। अवैध शराब के कितने ही ट्रक पुलिस की देखरेख में प्रतिदिन सप्लाई बनाए रखते हैं। बीच में तो पुलिस के पास जब्त माल रखने को जगह नहीं थी। पुलिस क्वार्टर्स में रखते थे। और आज? गुजरात की कितनी सप्लाई राजस्थान से जाती है? गो-तस्करी के रोजाना कितने ट्रक निकलते हैं। देर रात तक कितने ठिकानों पर शराब-गांजा-हेरोइन बिकते हैं-क्या यह बंधी का नेटवर्क नहीं है?

सीमा पार की तस्करी एक मुद्दा है। देश में उपलब्ध नशे का वितरण उससे बड़ा है। तस्करी से जुड़े प्रभावशाली नेताओं-अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करना और भी साहस मांगता है। किसी को नौकरी का डर है, तो किसी को अपनी मौत का। इसी कारण जिम्मेदारों के विरुद्ध हत्या तक के मामले रफा-दफा होते रहते हैं। किन्तु नशे के सौदागर तो स्वयं पुलिस में भी बैठे हैं!

अधिकांश नेता-अधिकारी भी नेटवर्क की सूची में हैं, कुछ छिपे नहीं है। प्रश्न यही रह जाता है कि क्या इस भीतर के माफिया नेटवर्क का पेट भरना है, अथवा देश को बचाना है? इनके भरोसे तो बचने की संभावना बहुत दूर होती जा रही है। जनता भी मौन है। ये मौत के सौदागर अट्टहास करते रहते हैं, हमारी बेबसी पर।

बागबां ने आग दी जब आशियाने को मेरे।
जिनपे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे।।

gulabkothari@epatrika.com