
- राहुल लाल, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
वर्तमान में क्रेडिट कार्ड वित्तीय समावेशन और उपभोक्ता क्रय शक्ति का महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। क्रेडिट कार्ड ने उपभोक्ताओं के लिए खरीदारी और वित्तीय लेनदेन को सुगम बनाया है लेकिन इसके साथ कुछ गंभीर वित्तीय चुनौतियां भी उत्पन्न हुई हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती क्रेडिट कार्ड के ओवरलिमिट शुल्क से जुड़ी है, जो ग्राहकों के लिए अनियोजित खर्च और भारी वित्तीय बोझ का कारण बनती है। इसने ग्राहकों को अनजाने में ही महंगे ऋण के जाल में फंसा दिया था।
बैंकों द्वारा बिना सहमति के ओवरलिमिट सुविधा को सक्रिय करने और इसके लिए शुल्क वसूलने की प्रथा ने उपभोक्ताओं को आर्थिक दुष्चक्र में फंसा दिया था। आरबीआइ ने इस मामले में कठोर हस्तक्षेप किया। इस निर्णय के तहत अब बैंक या क्रेडिट कार्ड जारीकर्ता बिना ग्राहक की स्पष्ट व लिखित अनुमति के ओवरलिमिट सुविधा चालू नहीं कर सकेंगे। साथ ही, डिजिटल प्लेटफार्मों पर ग्राहकों को यह सुविधा ऑन-ऑफ करने का विकल्प दिया जाएगा, जिससे लेन-देन पर ग्राहक का पूर्ण नियंत्रण रहे। तकनीकी गड़बड़ी या त्रुटि की स्थिति में भी अब अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा। आरबीआइ के हस्तक्षेप से पहले, ओवरलिमिट शुल्क और ब्याज दरें किस तरह लोगों को कर्ज के जाल में फंसा रही थी, इसे गहराई से समझना आवश्यक है। यह तंत्र मुख्य रूप से पारदर्शिता की कमी और उच्च वित्तीय लागतों पर आधारित था। ग्राहक प्राय: अपने मासिक बजट और क्रेडिट कार्ड सीमा का प्रबंधन सावधानी से करते थे लेकिन एक अप्रत्याशित बड़े खर्च या महीने के अंत में की गई खरीदारी उन्हें सीमा पर ले जाती थी। बैंक इस 'उल्लंघन' को तुरंत दर्ज कर लेते थे और बिलिंग चक्र के अंत में एक भारी ओवरलिमिट शुल्क लगा देते थे। मान लीजिए, एक लाख की सीमा वाले ग्राहक ने एक लाख 500 रुपए खर्च कर लिए। बैंक ने 500 या 750 रुपए का एक फ्लैट शुल्क लगा दिया। यह शुल्क तत्काल ग्राहक के कुल बकाया में जुड़ जाता था। असली समस्या तब शुरू होती थी, जब ग्राहक पूरा बकाया बिल समय पर नहीं चुका पाता था।
क्रेडिट कार्ड की ब्याज दरें जिन्हें रिवॉल्विंग क्रेडिट पर लागू किया जाता है, बहुत अधिक होती है। ओवरलिमिट शुल्क स्वयं ब्याज अर्जित करना शुरू कर देता है। ओवरलिमिट उपयोग की गई मूल राशि पर भी उच्च ब्याज दर लगाता था। यह ब्याज दर दैनिक आधार पर संयोजित होता था। फलत: एक छोटी-सी अतिरिक्त खर्च की गई राशि, कुछ महीनों में भारी वित्तीय देनदारी में बदल जाती थी। बैंक ग्राहकों को केवल 'न्यूनतम देय राशि' का भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। ग्राहक यह मानकर कि वे अपने दायित्वों को पूरा कर रहे हैं, न्यूनतम राशि का भुगतान करते थे लेकिन इस भुगतान का बड़ा हिस्सा ब्याज और शुल्कों को कवर करता था, मूलधन वही बना रहता था। ओवरलिमिट के मामले में यह चक्र और भी घातक हो जाता था। आरबीआइ के दिशा-निर्देश स्पष्ट करते हैं कि यदि ग्राहक ने ओवरलिमिट सुविधा के लिए सहमति नहीं दी है, तो किसी भी परिस्थिति में कोई ओवरलिमिट शुल्क, ब्याज या अन्य लेवी नहीं लगा सकता है। सभी क्रेडिट कार्ड जारीकर्ताओं को अपना मोबाइल बैंकिंग एप्लीकेशन और इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल पर एक 'ट्रांजेक्शन कंट्रोल' या 'कार्ड मैनेजमेंट' फीचर प्रदान करना आवश्यक है। आरबीआइ के विस्तृत और बाध्यकारी दिशा निर्देश भारतीय क्रेडिट कार्ड बाजार में महत्वपूर्ण सुधार हैं। इन्होंने बैंकों को मनमानी प्रथाओं से दूर कर एक उपभोक्ता केंद्रित और पारदर्शी प्रणाली की ओर अग्रसर किया है। इससे ग्राहकों को वित्तीय सुरक्षा मिली है, क्योंकि अनियोजित खर्च की संभावना न्यूनतम होगी।
हालांकि, इन नियामकीय पहलों के साथ-साथ वित्तीय साक्षरता भी महत्वपूर्ण है। ग्राहकों को अपने क्रेडिट कार्ड एग्रीमेंट को ध्यान से पढऩा चाहिए। अपने डिजिटल 'ट्रांजेक्शन कंट्रोल' फीचर्स का उपयोग करना सीखना चाहिए और अपनी क्रेडिट सीमा के भीतर ही खर्च करने की आदत डालनी चाहिए। यदि बैंक अब भी इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं, तो ग्राहक सशक्त हैं और आरबीआइ के एकीकृत लोकपाल योजना पोर्टल पर प्रभावी ढंग से शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जिससे उन्हें पूर्ण सुरक्षा और रिफंड सुनिश्चित होता है। आरबीआइ का यह कदम भारतीय वित्तीय परिदृश्य में उपभोक्ता हितों की रक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह भारतीय बैंकिंग को अधिक जिम्मेदार, पारदर्शी और सुरक्षित बनाता है।
Published on:
11 Dec 2025 02:02 pm
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